वाकर गिल्बर्टं टॉमस, सर (Walker, Gilbert Thomas, Sir, सन् १८६८-१९५८) ब्रिटिश वैज्ञानिक का जन्म लैंकाशिर के राचडेल (Rochdale) नामक कस्बे में हुआ था। केंब्रिज से गणित की उच्चस्तरीय स्नातक परीक्षा में सीनियर रैंगलर का स्थान प्राप्त कर आप ट्रिनिटी कॉलेज के फेलो तथा सन् १८९२ में लेक्चरर नियुक्त हुए। विद्युच्चुंबक तथा गतिविज्ञान में कार्य के लिए आपको डी. एस-सी. की उपाधि मिली तथा ऐडैम्स पुरस्कार भी मिला।

सन् १९०३ में आप भारत में डाइरेक्टर जेनरल ऑव ऑब्ज़र्वेटरीज नियुक्त हुए। सन् १९०८ में आपने कलकत्ता विश्वविद्यालय में विद्युच्चुंबकीय सिद्धांत पर व्याख्यान दिए। सन् १९०४ में रायल सोसायटी के आप फेलो निर्वाचित हुए। सन् १९२० में जब आप सेवानिवृत्त हुए, तो भारत सरकार ने आपको नाइट की उपाधि दी।

इंग्लैंड लौटने पर आप लंदन के इंपीरियल कॉलेज में मीटिऑरोलॉजी के प्रोफेसर नियुक्त हुए। इस पद पर दस वर्ष रहकर आपने वैज्ञानिक क्षेत्र में सक्रिय भाग लिया और बाद में सेवानिवृत्त होने पर भी आप अनुसंधान और वैज्ञानिक विवेचन में लगे रहे। द्वितीय विश्वयुद्ध के समय आपने इंग्लैंड के वायुमंत्रालय को ऋतुविज्ञान से संबंधित विषयों पर बहुमूल्य सुझाव और सहायता दी।

सन् १९१८ में आप इंडियन सायंस कांग्रेस के अध्यक्ष निर्वाचित हुए तथा सन् १९२६-२७ में इंग्लैंड की रॉयल मीटिऑरोलॉजिकल सोसायटी के अध्यक्ष रहे थे। (भगवानदास वर्मा)