वषट्कार यज्ञ कई प्रकार के होते थे जिनमें देवोद्देश्य हवि देने के लिए स्वाहा, श्रौषट्, वौषट्, वषट् तथा स्वधा-ये पाँच शब्द प्रयुक्त होते थे। ऐसे ही देवयज्ञ को वषट्कार कहते थे और उसे ही वषट्कृत भी कहा जाता था। यथा-'अग्नौ हुतं तु यद्द्रव्य तत्स्यात् त्रिषु वषट्कृतम्'। (रामज्ञा द्विवेदी)