बर्तनांकमापी या अपवर्तंनांकमापी (Refractometer) अपवर्तनाक (refractive index) को मापने का प्रकाशीय उपकरण है। शून्य में और किसी पदार्थ में प्रकाश के वेगों का अनुपात उस पदार्थ का अपवर्तनांक कहलाता है। इसे , द्वारा निदर्शित करते हैं, जहाँ (i) और (r) क्रमश: आपतन (incidence) और अपवर्तन के कोण हैं। पदार्थ आपाती किरणपुंज को अपने पथ से कितना विचलित कर सकता है, इसकी माप अपवर्तनांक है। किसी पदार्थ का अपवर्तनांक आपाती प्रकाश के तरंगदैर्ध्य, ताप और दाब पर निर्भर करता है। अपवर्तनांक की तरंगदैर्ध्य पर निर्भरता पदार्थों में वर्णविक्षेपण (dispersion) का गुण उत्पन्न करती है। काँच के प्रिज़्म के वर्ण विक्षेपण गुण का उपयोग करते हुए, न्यूटन ने अपने ऐतिहासिक प्रयोग द्वारा निदर्शित किया था कि श्वेत सूर्य प्रकाश सात रंगों से बना है (देखें फलक)। अपवर्तनांकमापी मुख्य रूप से दो वर्गों में विभाजित किए जा सकते हैं : (१) व्यतिकरण प्ररूप के (interference type) और (२) विचलन (deviation) प्ररूप के।

(१) व्यतिकरण अपवर्तनांकमापी - इस प्ररूप के अपवर्तनांक मापियों का सामान्य सिद्धांत इस प्रकार है : यदि किसी एकवर्णी (monochromatic) प्रकाश के किरणपुंज को दो संबद्ध (coherent) किरणपुंजों में रेखाछिद्र (slit) आदि से विभाजित कर दिया जाए और भिन्न पथों पर चलनेवाले इन दो पुंजों को अध्यारोपित (superimposed) होने दिया जाए, तो व्यतिकरण फ्रजें (fringes) बनती हैं (देखें व्यतिकरणमापी)। अब यदि m अपवर्तनांक के मूल माध्यम में ही तुलनीय दूरी तक जाने दिया जाए, तो किरणपुंजों के अध्यारोपण के सभी बिंदुओं पर पुंजों के पथांतर (path difference) के बदलाव के कारण फ्रंजों में पार्श्वीय विस्थापन (lateral displacement) होगा। उन बिंदुओं का, जिनपर किरण पुंज कला (phase) में अधिकतम तीव्रता में है, अर्थात् फ्रंज बनाने की स्थिति में है, बिंदुपथ परिवर्तित हो जाता है और फलत: फ्रंजों के विस्थापन की मात्रा स्पष्ट ही एक किरणपुंज के परिवर्तित प्रकाशीय पथ की लंबाई पर और इसलिए (m-m) पर निर्भर करती है। चूँकि फ्रंजों के क्रम में एक का बदलाव अर्थात् एक फ्रंज अंतराल का पार्श्विक विस्थापन, एक तरंगदैर्ध्य से किरणपुंजों के सापेक्ष मंदन (relative retardation) के तदनुरूपी होता है, इसलिए प्रेक्षित (n) फ्रंजों का विस्थापनों अपवर्तनांक m से इस सूत्र के अनुसार संबद्ध हैं :

इसमें l प्रकाश का तरंगदैर्ध्य है और (t) मध्यस्थ पदार्थ की मोटाई है। l न, म और m ज्ञात रहने पर मध्यस्थ पदार्थ का अपवर्तनांक m इस अपवर्तनांकमापी द्वारा ज्ञात किया जा सकता है।

(क) रेलि (Rayleigh) का अपवर्तनांकमापी - इसका उपयोग गैसों और द्रवों के अपवर्तनांक ज्ञात करने में प्रचुरता से होता है। चित्र १. में इसके अनिवार्य अंशों का आरेखी निदर्शचित्र प्रस्तुत किया गया है। चित्र १ () में अनुविक्षेप दृश्य है। रेखाछिद्र उद्गम (slitsource) से प्राप्त प्रकाश लंबी फोकस दूरी के अवर्णक (achromatic) लेंस द्वारा समांतरित (collimated) होकर लगभग एक सेंमी. के अंतर पर स्थित दो चौड़े रेखाछिद्रों, या द्वारकों

चित्र १. रेले का अपवर्तनांकमापी

१. अनुविक्षेप तथा १ सम्मुख दर्शन चित्र।

(apertures) में से गुजारा जाता है। यह युक्ति आपतित (incident) तरंगाग्र (wave front) को दो बराबर आयामों (amplitudes) के भागों में बाँटती है, जो समांतर नलिकाओं और में और जामें की प्रतिकारी प्लेटों (Jamin's compensating plates), और , में से निकलकर अवर्णक लेंस के फोकस समतल में पुन: संयुक्त होते हैं, जिससे व्यतिकरण फ्रंजें बनती हैं। फ्रंजों को उच्च आवर्धन (magnification) के बेलनी लेंस (cylindrical lens) द्वारा देखा जा सकता है। स्पष्ट है कि इन फ्रंजों के निर्माण में तरंगाग्र का विभाजन समाविष्ट है, न कि आयाम (amplitude) का।

चित्र १ (ख) अपवर्तनांकमापी का सम्मुख दर्शन चित्र है। दृश्य क्षेत्र के ऊपरी आधे भाग में और नलिकाएँ हैं, जिनमें वह नमूना (sample) भरा होता है जिसका अध्ययन अपेक्षित है। नत (tilted) काँच प्लेट की सहायता से बिंदुरेखा द्वारा निदर्शित किरणपुंजों, और , में जो दृश्य क्षेत्र के निम्नार्ध भाग में चंक्रमण करते हैं, सापेक्ष पथांतर निर्मित किया जा सकता है। लऱ् के फोकसतल के निम्नार्ध क्षेत्र में, अर्थात् में, फ्रंज निकाय (system), जिसका संदर्भ निकाय के रूप में उपयोग हो सकता है, बनता है। यह ऊपरी अर्धभाग में बने फ्रंजों के समान होता है। प्लेट को ठीक प्रकार से नत करने पर में स्थित फ्रंजों के संदर्भ निकाय को में स्थित सर्पी (movable) फ्रंज निकाय के निकट लाया जा सकता हैं। निम्नार्ध की फ्रंजें संदर्भ स्थिर रेखाओं का काम करती हैं। इनके सापेक्ष ऊर्ध्वांर्ध की फ्रंजों का विस्थापन सुविधापूर्वक, दुविधारहित और यथार्थतापूर्वक मापा जा सकता है।

और लघुकोण पर नत समरूप (similar) काँच के प्लेट हैं और ऊर्ध्वार्ध भाग के दो व्यतिकारी किरणपुंज, और नलिकाओं में से पारित होने के बाद, इन दो प्लेटों में से अलग अलग पारित होते हैं। जिस गैस का अध्ययन करना होता है, उसे दो सर्वसम नलिकाओं और में भर देते हैं। गैस के घनत्व या सांद्रता पर निर्भर रूप से अपवर्तनांक में होनेवाले विचरण के कारण यदि नलिकाओं में विभेदक गैस भराव (differential gas filling) हो, तो उनमें से गुजरनेवाले किरणपुंजों में स्पष्ट रूप से सापेक्ष पथांतर उत्पन्न हो जाएगा। प्लेट प और को जरा सा घूर्णित करने से, इनमें से किसी एक किरणपुंज के पथ में पथांतर उत्पन्न होता है, जिससे विभेदक गैसभराव के कारण उत्पन्न सापेक्ष मंदन का प्रतिकार होता है। इस रीति से जिस तरंगदैर्ध्य l के लिए गैस का अपवर्तनांक ज्ञात करना है, उसे प्रति अंश घूर्णन के साथ फ्रंज विस्थापन यथार्थतापूर्वक माप लिया जाता है। अंतम प्रेक्षण श्वेत प्रकाश फ्रंजों के साथ किए जाते हैं, क्योंकि केंद्रीय श्वेत-प्रकाश-फ्रंज के उपयोग से जामें प्रतिकारक (Jamin's compensator) द्वारा पुन: स्थापित किया जानेवाला यथार्थ प्रकाशीय पथ निस्संदिग्ध रूप से निर्धारित किया जा सकता है। अब यदि इनमें से एक नलिका को निर्वात किया (evacuate) जाए, अर्थात् यदि संगत अपवर्तनांक m = १, तो ऊर्ध्वार्ध की फ्रंजें विस्थापित होंगी। प्रतिकारक को उपयुक्त और समुचित रूप से घूर्णित करके विस्थापित फ्रंजें अपनी मूल स्थितियों में, निम्नार्ध की फ्रंजों के स्थिर तंत्र के संदर्भ के उपयोग से, लाई जा सकती हैं। यह घूर्णन प्रत्यक्ष रूप से अभीष्ट फ्रंज विस्थापन न बताता है, क्योंकि प्रतिकारक पहले से l के लिए अंशांकित (calibrated) है। इस प्रकार फ्रंज विस्थापन न ज्ञात होने पर और नलिका की लंबाई ल माप कर गैस का अपवर्तनांक सूत्र (m-१) = श्से ज्ञात किया जा सकता है। चूँकि फ्रंज के वें भाग का विस्थापन मापा जा सकता है, अत: १०० सेंमी लंबी नलिका के उपयोग से अपवर्तनांक में ११०- का परिवर्तन पहचाना जा सकता है।

(ख) जामें अपवर्तनांकमापी - इस अपवर्तनांकमापी में अपवर्तनांक मापने के लिए समान नति के ब्रूस्टर फ्रंजों का उपयोग किया जाता है। ब्रूस्टर फ्रंज तब बनते हैं जब आपस में अल्प नत दो समरूप (identical) समतल समांतर प्लेटों से परावर्तित होकर प्रकाश लौटता है। चित्र २. में जामें के व्यतिकरण का आरेखी

चित्र २. जामें का व्यतिकरण अपवर्तनांकमापी

निदर्श चित्र प्रस्तुत किया गया है, जिसमें ४५ आपतन के तदनुरूपी ब्रूस्टर फ्रंजों का अध्ययन किया गया है। दो समरूप मोटे काँच के प्लेट और आपस में अल्पनत (लगभग समांतर) स्थापित किए जाते हैं। प्लेटों के और फलक घने रजतित (silvered) होते हैं। प्लेट के बिंदु पर प्रकाश का एक समांतरित सँकरा किरणपुंज ४५ कोण पर आपतित होता है। पर परावर्तन और पागमन (transmission) के कारण यह दो संबद्ध (coherent) किरणपुंजों में विभाजित हो जाता है। आरेख से स्पष्ट है कि परावर्तित और पारगमित किरणपुंज क्रमश: ई फ ग ह और ई आ ज ह पथों पर चंक्रमण (traverse) करने के बाद म ह दिशा में समान तीव्रता के दो किरणपुंजों के रूप में पर पुन: संयोग करते हैं। इस प्रकार से समान नति की सरल रेखाफ्रंजें बनती हैं ( म ह दिशा में), जिन्हें अनंत पर स्थापित दूरदर्शक द्वारा देखा जा सकता है। जल, ह क और फ न जैसे किरणपुंजों को सुविधानुसार रोकों द्वारा काटकर अवांछनीय प्रभाव को बचाया जाता है। प्लेट और जामें प्रतिकारक कहलाते हैं। और नलिकाओं को पहले निर्वातित किया जाता है और श्वेत प्रकाश के प्रयोग से केंद्रीय अवर्णक श्वेत प्रकाश फ्रंज को दूरदर्शक के क्रॉसतार (cross wire) से संपाती (coincide) कराया जाता है। अब यदि इनमें से एक नलिका में गैस भर दी जाए, तो व्यतिकारी किरणपुंजों में से एक के परिवर्तित प्रकाशीय पथ के कारण फ्रंजें विस्थापित हो जाएँगी। प्रतिकारक की सहायता से (जैसे रेलि अपवर्तनांकमापी में) फ्रंजों को अपनी अपनी मूल स्थिति में लाया जाता है। प्रतिकारक पहले से ही l तरंगदैर्घ्य के अवर्णक प्रकाश द्वारा, जिसमें गैस का अपवर्तनांक ज्ञात करना है, समांतरित किया रहता है। इस प्रकार , l और के ज्ञात हो जाने पर गैस का अपवर्तनांक गणना द्वारा मालूम हो जाता है।

(ग) प्रकाश सेल (Photo cell) अपवर्तनांकमापी - कोई भी व्यतिकरण-अपवर्तनांकमापी, जिसमें नेत्रों के बजाय प्रकाश-वैद्युतसेल प्रकाशसंसूचक (detector) के रूप में प्रयुक्त हो रहा हो, स्वचालित अभिलेखन युक्ति के रूप में काम आ सकता है। ऐसे उपकरण विज्ञान और उद्योग में प्रवाही गैसों और द्रवों के अपवर्तनांक के अल्प परिवर्तनों की संसूचना के लिए काम आ सकते हैं।

(घ) फैब्री पेरॉट (Fabry Perot) अपवर्तनांकमापी - फैब्री पेरॉट व्यतिकरणमापी का उपयोग प्लेटों के बीच स्थित माध्यम, अर्थात् हवा का अपवर्तनांक ज्ञात करने के लिए भी हो सकता है। निर्वात में तथा हवा या गैस के प्रविष्ट हो जाने पर, नए प्रकाशपथ में प्लेटों का यथार्थ मापीय अलगाव (metrical separation) निर्धारित करके अपवर्तनांक आसानी से ज्ञात किया जा सकता है। इसमें समाननति की बहुकिरणपुंज फ्रंजें अत्यंत तीक्ष्ण (sharp) होती हैं, अत: अपवर्तनांक के मापन में अत्यधिक यथार्थता संभव है। उदाहरणार्थ, लाल कैडमियम रेखा के लिए हवा का अपवर्तनांक (७६ सेंमी. पारे के दबाव, १५ सें. ताप और ०.०३ प्रतिशत कार्बन डाइआक्साइड अंश पर) बैरेल और सियर्स (Barrell and Sears) द्वारा १.०००२७६३८० मापा गया है।

उपर्युक्त व्यतिकरण-अपवर्तनांकमापी गैसों के अपवर्तनांक मापने के लिए अनिवार्य हैं। ये पारदर्शी द्रव और ठोसों के लिए भी उपयोगी हैं। व्यतिकरणमापी विधियों से अत्यंत तनु विलयनों में पदार्थों की सांद्रता बड़ी सुविधा से ज्ञात हो सकती है।

१० लाख में एक अंश तक की कोटि का अपवर्तनांक में विचरण व्यतिकरण अपवर्तनांकमापी द्वारा आसानी से पहचाना जा सकता है। इनका उपयोग विस्फोटन निवारण युक्ति के रूप में कोयले की खानों में हवा में मेथेन (Methane) के १ प्रतिशत अल्पांश (traces) को पहचानने के लिए किया गया है। हवा के औद्योगिक विश्लेषण में भी अपवर्तनांकमापी बहुत काम आते हैं।

२. विचनल प्ररूप के अपवर्तनांकमापी - अपवर्तनांक ज्ञात करने के लिए अपवर्तनांक के कारण आपाती किरणपुंज का विचलन प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से इन उपकरणों द्वारा मापा जाता है। स्नेल (Snell) का अपवर्तन का नियम अर्थात् श्है, जिसमें और क्रमश: आपतन और अपवर्तन के कोण हैं। इनमें से मुख्य अपवर्तनांकमापियों का संक्षिप्त वर्णन प्रस्तुत है :

(क) प्रिज़्मीय अपवर्तनांकमापी - इस विधि में उस पारदर्शक पदार्थ को जिसका अपवर्तनांक ज्ञात करना है, जैसे काँच, प्रिज़्म के रूप में लिया जाता है। स्पेक्ट्रमितीय प्ररूप के उपकरण में अभीष्ट तरंगदैर्घ्य l की प्रकाश किरणें सँकरे रेखाछिद्र से निकलती हैं और उपयुक्त लेंस तंत्र द्वारा समांतरित होती हैं। प्रिज़्म द्वारा अपवर्तित किरणों का स्थान निर्धारण एक समुचित रूप से समायोजित (adjusted) दूरदर्शक द्वारा होता है। यह आसानी से दिखाया जा सकता है कि न्यूनतम विचलन के प्रतिबंधों में, अर्थात् जब आपाती

चित्र ३. अपवर्तनांक मापने की प्रिज़्मीय रीति

और निर्गत (emergent) किरणों के बीच का कोण न्यूनतम होता है (देखें चित्र ३) प्रिज़्म के पदार्थ का अपवर्तनांक श्होता है, जिसमें प्रिज़्म के अपवर्ती फलकों के बीच का कोण और dल न्यूनतम विचलन का कोण है। सममित रूप से समायोजित प्रिज़्म के दो अपवर्ती फलकों से रेखाछिद्रों के परावर्तित प्रतिबिंबों की स्थिति निर्धारित करके प्रिज़्म का कोण आसानी से मापा जा सकता है। न्यूनतम विचलन का कोण प्रिज़्म के अद्वितीय दिक्विन्यास (unique orientation) के तदनुरूपी होता है और यदि प्रिज़्म को घूर्णित करके आपतन के कोण को जरा भी बढ़ाया जाए, तो अपवर्तन किरण 'वापस लौटने' की स्थिति में होती है। इस प्रकार यह कोण यथार्थ रूप से मापा जा सकता है और m की गणना की जा सकती है।

(ख) पूर्ण परावर्तन अपवर्तनांकमापी - प्रकाश जब एक घने माध्यम से विरल माध्यम में जाता है और आपतन का कोण क्रांतिक कोण से अधिक होता है, अर्थात् उसका तदनुरूपी अपवर्तन कोण ९० होता है, तब प्रकाश पूर्णतया घने माध्यम में परावर्तित हो जाता है। अत: आपतन के ठीक क्रांतिक कोण पर विरल माध्यम का घने माध्यम के संदर्भ में अपवर्तनांक स्नेल के नियम के अनुसार श्= ज्या आक्र होता है। अत: इस अपवर्तनांकमापी में आपतन का क्रांतिक कोण यथार्थता से माप कर १/m ज्ञात किया जाता है, जो विरल

चित्र ४. पूर्ण परावर्तन का सिद्धांत

यह परावर्तन घने माध्यम से विरल माध्यम

में जानेवाली प्रकाशकिरण का माध्यमों

की सीमा पर होता है।

माध्यम की तुलना में घने माध्यम का अपवर्तनांक होता है। आपतन के क्रांतिक कोण पर अपवर्तित किरण दोनों माध्यमों की सीमा पर पृष्ठसर्पण (grazing) करती है। दूरदर्शक की सहायता से इस सीमा पर अँधेरे और उजाले क्षेत्रों के बीच एक तीक्ष्ण क्रांतिक सीमा देखी जा सकती है। यह स्पष्ट प्रेक्षण विलोमत: क्रांतिक कोण और उसके द्वारा १/m के निर्धारण में काम आता है। इस विधि से पानी का अपवर्तनांक हवा के संदर्भ में पानी तथा हवा के पार्थक्यपृष्ठ (interface) पर उचित प्रेक्षणों द्वारा सरलता से ज्ञात हो सकता है।

(ग) ऐवि (Abbe) अपवर्तनांकमापी - यह भी जो सुधरे हुए रूप में बहुत प्रचलित है, क्रांतिक कोण उपकरण है। यह मुख्यत: घने फ्लिट काँच के दो समान प्रिज़्मों (जिनके कोण ३०, ६० और ९० होते हैं) से बना होता है, इनके कर्णफलक सटे हुए होते हैं और बीच में अपवर्ती द्रव की एक पतली परत होती है। एक एकवर्णी प्रकाश-किरणपुंज दर्पण से परावर्तित होकर, प्रिज़्म के लघुफलक पर पड़ती है, जिससे इसका कुछ भाग के लघुफलक से निर्गत होता है। स्पष्ट ही, प्रिज़्म में, किरणपुंज अधिकतम अपवर्तन कोण और अत: से निर्गत हो सकनेवाले प्रकाश

चित्र ५. ऐबि के अपवर्तनांकमापी का आरेखी चित्र

की सीमांत दिशा (limiting direction) उस स्थिति की तनुरूपी है जिसमें आपाती किरणपुंज द्रव परत और प्रिज़्म के कर्णपृष्ठ की सीमा पर पृष्ठसर्पण करता है। अपवर्तन का सीमांत कोण स्पष्ट ही कांच और द्रव के लिए आपतन का क्रांतिक कोण है।

प्रिज़्मों से निर्गत होनेवाले प्रकाश को ग्रहण करने के लिए एक दूरदर्शक का उपयोग किया जाता है, जिसे एक उपयुक्त अक्ष पर घुमा कर सीमांत दिशा प्राप्त की जा सकती है। स्पष्ट है कि इस क्रांतिक दिशा के उच्चकोण पार्श्व में अंधकार होगा और निम्नकोण पार्श्व में प्रकाशित क्षेत्र होगा, जैसा कि चित्र ५, में दिखाया गया है। स्पष्ट है कि उपर्युक्त प्रेक्षणों को प्रिज़्मों के दो समुचित सममित दिक्विन्यासों में लेने पर, क्रांतिक कोण यथार्थता से निर्धारित हो सकता है, जिससे परिबद्ध द्रव परत के अपवर्तनांक की गणना की जा सकती है।

चूँकि अपवर्तनांक और अत: क्रांतिक कोण, प्रकाश के तरंगदैर्ध्य पर निर्भर करता है, इसलिए सफेद प्रकाश का उपयोग करने पर छायाकोर (shadow edge) अस्पष्ट और रंगीन होता है। छाया को अवर्णीकृत (जैसे पीले सोडियम प्रकाश के अनुरूप) और वर्णप्रभाव को किसी बराबर परंतु विपरीत प्रकीर्णन (dispersion) द्वारा निष्प्रभावित किया जा सकता है। यह प्रकीर्णन दो प्रत्यक्ष दृष्टि प्रिज़्मों (चित्र में प्रदर्शित नहीं) द्वारा प्राप्त होता है।

निचले प्रिज़्म को हटाकर, ऊपरी प्रिज़्म के कर्णफलक पर पदार्थ को रखकर और किसी उच्च अपवर्तनांक के द्रव की पतली परत को पृष्ठों के बीच रखकर ऐबि अपवर्तनांकमापी का उपयोग ठोसों का अपवर्तनांक ज्ञात करने के लिए हो सकता है। इसका उपयोग पारभासी (translucent) पदार्थों, जैसे तेल, मक्खन, मुरब्बा (jam) आदि का अपवर्तनांक ज्ञात करने में भी हो सकता है। उपकरण का सबसे बड़ा लाभ यह है कि द्रव प्रतिदर्श (sample) की चंद बूँदों से ही काम चल जाता है और पाँच मिनट से भी कम समय में अपवर्तनांक ज्ञात हो जाता है। उपकरण का परास प्रिज़्म के अपवर्तनांक द्वारा सीमित होता है और प्राय: १.३ से १.७ तक के अपवर्तनांक ही निर्धारित हो सकते हैं।

(घ) पुल्फिच (Pulfrich) अपवर्तनांकमापी - यह क्रांतिक कोण अपवर्तनांकमापी बिल्कुल उसी सिद्धांत पर आधारित है जिसपर ऐबि अपवर्तनांकमापी निमित है। प्रायोगिक व्यवस्था और विधि भी लगभग ऐबि अपवर्तनांकमापी जैसी ही है।

परिशुद्ध अपवर्तनांकमिति में अनेक कारकों को जिनके प्रति अपवर्तनांक बड़ा ही संवेदनशील है, जैसे ताप, प्रकाश का तरंगदैर्ध्य, और दाब (गैसों के लिए) को, यथार्थतापूर्वक नियंत्रित और निर्दिष्ट करना पड़ता है। अपवर्तनांक लगभग सदैव ही पीली सोडियम रेखाओं के औसत तरंगदैर्ध्य (५,८९३ A) के संदर्भ में बताया जाता है।

सं. ग्रं. - डिक्शनरी ऑव् ऐप्लाइड फ़िजिक्स, भाग ४ (१९२३), सर ग्लेजब्रुक द्वारा संपादित; ए. वाइसबर्गर: फ़िजिकल मेथड्स ऑव ऑर्गेनिक केमिस्ट्री, भाग १, अध्याय १६, द्वितीय संस्करण (१९४९); मॉडर्न इंटरफियरोमीटर्स (1951) ए. सी. कैंडलर : (विनोदकुमार श्रीवास्तव)