वनस्पति उद्यान से तात्पर्य एक ऐसे उद्यान से है, जहाँ देश विदेश के विभिन्न प्रकार के पौधों का संकलन हो और साथ ही वनस्पति संबंधी विभिन्न समस्याओं पर अन्वेषण कार्य करने की सुविधा हो। वनस्पति उद्यान में वह सब कुछ तो होता ही है जो एक साधारण उद्यान में, परंतु उसके साथ साथ वनस्पति से अधिक से अधिक लाभ उठा सकने के उद्देश्य से, यह अनुसंधान कार्य का केंद्र भी होता है। इस प्रकार जहाँ साधारण उद्यान मात्र मनोरंजन के लिए एक सुंदर स्थल होता है, वहाँ वनस्पति उद्यान एक जीति जागती उपयोगी शैक्षणिक संस्था होता है। उदाहरण के लिए हमारे देश में लखनऊ का राष्ट्रीय वनस्पति उद्यान एक ऐसी प्रमुख संस्था है जिसमें वनस्पति विज्ञान की विभिन्न शाखाओं के अंतर्गत निरंतर उपयोगी अनुसंधान कार्य चलता रहता है। शिवपुर (कलकत्ता), दार्जिलिंग, ऊटकमंड, सहारनपुर, पूर्णें और बंगलुरु में भी वनस्पति उद्यान हैं। विदेश के प्रख्यात वनस्पति उद्यानों में क्यू (इंग्लैंड) का रॉयल बोटैनिक गार्डन, अमरीका के मिजुरी बोटैनिक गार्डन, आरनोल्ड आरबोरेटम और न्यूयार्क बोटैनिक गार्डन, जापान का टोकियो बोटैनिक गार्डन और जावा का बोगोर गार्डन इत्यादि के नाम गिनाए जा सकते हैं।

वनस्पति उद्यान का इतिहास अति प्राचीन है। मनुष्य शुरू में शिकार करके पेट पालता था, परंतु धीरे धीरे उसका ध्यान ऐसे पौधों की ओर आकर्षित होने लगा जो खाने के और दवाइयों के काम में आ सकें और इस प्रकार के पौधे वह अपने आसपास लगाने लगा। संभवत: वनस्पति उद्यान से विकसित हुए हैं जो प्राचीन काल में मंदिरों के आसपास मुख्यत: औषधोपयोगी पौधे उगाने के विचार से लगाए जाते थे। कारनक (मिस्र) के मंदिर के साथ, ईसा से लगभग १,५०० वर्ष पूर्व, एक वनस्पति उद्यान था। यूनान के प्रसिद्ध दार्शनिक जीवशास्त्री अरस्तू ने ईसा से लगभग ३५० वर्ष पहले एक वनस्पति उद्यान लगाया था। आगे चलकर यूरोप में सोलहवीं-सत्रहवीं शताब्दी में जड़ी बूटियों के गुणज्ञों तथा व्यवसायियों ने वनस्पति उद्यान के विकास में महत्वपूर्ण योग दिया।

भारत की प्राचीन पौराणिक कथाओं तथा प्रचलित किंवदंतियों के आधार पर हम कह सकते हैं कि भारत में वनस्पति उद्यान की नींव ईसा से कई हजार वर्ष पहले पड़ चुकी थी। भारत के अत्यंत प्राचीन ग्रंथों, जैसे वेदादि में पौधों का वर्गीकरण मिलता है। जीवक ने ईसा से ५२८ वर्ष पूर्व तक्षशिला के आसपास के पौधों का वर्णन किया है। अशोक महान् (ईसा से लगभग २२५ वर्ष पहले) के शिलालेखों से ज्ञात होता है कि उस समय औषधोपयोगी पौधे तथा फल वृक्ष बाहर से मँगाकर वनस्पति उद्यानों में लगाए जाते थे। इसके बाद भी बाग लगाने की प्रथा भारत में जारी रही, चाहे वे केवल मनोरंजन के लिए ही क्यों न लगाए गए हों। ईस्ट इंडिया कंपनी तथा उसकी उत्तराधिकारी सरकार ने अठारहवीं तथा उन्नसवीं शताब्दी में जगह जगह बाग लगाए, जो कंपनी बाग के नाम से प्रसिद्ध हुए। ये बाग आरंभ में तो केवल सामाजिक कार्यक्रमों के केंद्र अथवा आमोद-प्रमोद के क्रीड़ास्थल ही रहे, किंतु धीरे धीरे इनमें से कुछ वनस्पति उद्यानों में परिवर्तित हो गए।

वनस्पति उद्यान के कार्यों की रूपरेखा निर्धारित करने में यद्यपि विभिन्न देशों के वनस्पति विज्ञानी आपस में एकमत नहीं हैं, फिर भी इतना सब मानते हैं कि वनस्पति उद्यान एक ऐसी सार्वजनिक शैक्षिक संस्था होनी चाहिए जहाँ वनस्पति से लाभ उठाने के लिए अनुसंधान कार्य किए जाएँ, विशेषतया उन पौधों पर जो उस संस्था के क्षेत्र में पाए जाते हैं। वनस्पति उद्यान का कार्यक्षेत्र अधिकतर इस बात पर निर्भर रहता है कि यह किस प्रदेश में स्थित है और किस संस्था से संबंधित है। पर हम यह जरूर कह सकते हैं कि यह वनस्पति उद्यानों का कार्य होगा कि वे पौधों के प्रति जनता में सुरुचि उत्पन्न कर, उनका ज्ञानवर्धन करें, जिससे वनस्पति विज्ञान के विकास में जनता का वांछित सहयोग प्राप्त हो सके। इतना ही नहीं, वरन् वनस्पति विज्ञान, उद्यान विज्ञान तथा दूसरे संबंधित विषयों की प्राविधिक शिक्षा का प्रबंध भी वनस्पति उद्यान में होना चाहिए। वनस्पति उद्यान में एक सुव्यवस्थित वनस्पति संग्रहालय (herbarium) का होना अनिवार्य है, जहाँ पौधों के नमूनों का संग्रह हो, जिससे सारे संसार की वनस्पति का, मुख्यतया अपने देश की वनस्पति का, ज्ञान प्राप्त करने में सहायता मिले। इन उद्यानों में अपने और अन्य देशों के पौधे इस प्रकार लगाए जा सकते हैं कि विभिन्न प्राकृतिक वनस्पति क्षेत्रों का दिग्दर्शन कराया जा सके। दुनियाँ में किस किस तरह के, किन किन विधियों से बाग लगाए जाते हैं, इसका नमूना भी वनस्पति उद्यान में दिखाया जा सकता है। वनस्पति उद्यान में एक प्रजनन विभाग का होना भी आवश्यक है, जिससे उपयोगी पौधों की वंशवृद्धि और नस्ल सुधारने का कार्य सुचारु रूप से किया जा सके। इस प्रकार वनस्पति उद्यान के विभिन्न कार्यों से कृषि, वन विज्ञान तथा दूसरे सबंधित विषयों को भी लाभ पहुंचता है।

वनस्पति उद्यान हमारा चित्त प्रसन्न करने के साथ साथ हमें अपनी प्राकृतिक संपत्ति का उपभोग और उपयोग करना सिखाता है। यह हमारी भूमि संबंधी समस्याओं को सुलझाने में योग देता है। औषधोपयोगी तथा दूसरे सभी प्रकार के पौधों के विषय में प्रत्येक प्रकार की जानकारी वनस्पति उद्यान से प्राप्त की जा सकती है। पौधों की सही सही पहचान, उनके विस्तार, फैलाव संबंधी तथ्य हम सहज ही वनस्पति उद्यान से प्राप्त कर सकते हैं। पौधों की रोपण संबंधी कठिनाइयों का निदान भी वनस्पति उद्यान के प्रमुख कार्यों में से गिना जाएगा। इस प्रकार वनस्पति उद्यान किसी देश की औद्योगिक प्रगति में सहायक हो सकता है।

सारांश यह है कि वनस्पति उद्यान, वनस्पति विज्ञान तथा इससे संबंधित विषयों के विकास का केंद्रस्थल माना जा सकता है। देश की आर्थिक स्थिति को सुदृढ़ करने में वनस्पति उद्यान के अंतर्गत होनेवाले कार्य समुचित योगदान देते हैं। (राजेंद्र वर्मा सिथोले तथा श्यामलाल कपूर)