वंगभंग १९०३ में कांग्रेस का १९वाँ अधिवेशन मद्रास में हुआ था। उसी अवसर पर उसके सभापति श्री लालमोहन घोष ने अपने अभिभाषण में सरकार की प्रतिक्रियावादी नीति की आलोचना करते हुए एक अखिल भारतीय मंचपर आसन्न वंगभंग की सूचना दी। उन्होंने कहा कि इस प्रकार का एक षड्यंत्र चल रहा है :
काँग्रेस के अगले अधिवेशन में सभापति पद से बोलते हुए सर हेनरी कॉटन ने भी यह कहा कि यदि यह बहाना है कि इतने बड़े प्रांत को एक राज्यपाल सँभाल नहीं सकता तो या तो बंबई और मद्रास की तरह बंगाल का शासनसूत्र सपरिषद् राज्यपाल के सिपुर्द हो या बँगला भाषियों को अलग करके एक प्रांत बनाया जाए। उन दिनों बंगाल प्रांत में बिहार और उड़ीसा भी शामिल थे।
पर ब्रिटिश सरकार ने न तो कांग्रेस की परवाह की, न जनमत की। उस समय के वायसराय और गवर्नर जनरल लार्ड कर्जन ने लैंड होल्डर्स एसोसिएशन या जमींदार सभा में लोगों को यह समझाने की चेष्टा की कि वंगभंग से लाभ ही होगा। वह स्वयं पूर्व बंगाल में भी गए, पर मुट्ठी भर मुसलमानों के अतिरिक्त किसी ने इस प्रस्ताव का समर्थन नहीं किया। मुसलमानों में प्रतिष्ठित ढाका के तत्कालीन नवाब ने भी प्रथम आवेश में इसका विरोध किया था।
प्रबल सार्वजनिक विरोध के बावजूद २० जुलाई, १९०५ को वंगभंग के प्रस्ताव पर भारत सचिव का ठप्पा लग गया। राजशाही, ढाका तथा चटगाँव कमिश्नरियों को आसाम के साथ मिलाकर एक प्रांत बनाया गया, जिसका नाम पूर्ववंग और आसाम रखा गया और बाकी हिस्सा यानी प्रेसीडेन्सी और वर्धमान कमिश्नरियाँ बिहार, उड़ीसा और छोटा नागपुर मिलाकर बंगाल नाम का प्रांत बनाया गया। यह विभाजन बिल्कुल मनमाना था और इसका कोई आधार नहीं था।
इस अवसर पर हिंदुओं और मुसलमानों को यह कहकर लड़ाने की चेष्टा की गई कि इस विभाजन से मुसलमानों को फायदा है क्योंकि पूर्ववंग और आसाम में उन्हीं का बहुमत रहेगा। ढाका के नवाब ने पहले विरोध किया था, पर जब वंगभंग हो गया तो वह उसके पक्ष में हो गए। सर जोजेफ बैमफील्ड फुलर (Joseph Bamfylde Fuller) पूर्ववंग और आसाम के नए लेफ्टिनैंट गवर्नर बने। कहा जाता है, उन्होंने कई जगह खुल्लमखुल्ला कहा कि हिंदू और मुसलमान उनकी दो बीबियाँ हैं, इनमें से मुसलमान उनकी चहेती हैं। इस कथन का आशय स्पष्ट था।
वंगभंग का उद्देश्य प्रशासन की सुविधा उत्पन्न करना नहीं था, जैसा दावा किया गया था, बल्कि इसके दो स्पष्ट उद्देश्य थे, एक हिंदू मुसलमान को लड़ाना और दूसरे नवजाग्रत बंगाल को चोट पहुंचाना। यदि गहराई से देखा जाए तो यहीं से पाकिस्तान का बीजारोपण हुआ। मुस्लिम लीग के १९०६ के अधिवेशन में जो प्रस्ताव पास हुए, उनमें से एक यह भी था कि वंगभंग मुसलमानों के लिए अच्छा है, और जो लोग इसके विरुद्ध आंदोलन करते हैं, वे गलत काम करते हैं और वे मुसलमानों को नुक्सान पहुंचाते हैं। बाद को चलकर लीग के १९०८ के अधिवेशन में भी यह प्रस्ताव पारित हुआ कि कांग्रेस ने वंगभंग के विरोध का जो प्रस्ताव रखा है, वह स्वीकृति के योग्य नहीं।
बंगभंग के विरुद्ध बंगाल के बाहर बहुत भारी आंदोलन हुआ (देखिए 'स्वदेशी आंदोलन')। १९११ के १२ दिसंबर को दिल्ली में एक दरबार हुआ, जिसमें सम्राट् पंचम जार्ज, सम्राज्ञी मेरी तथा भारत सचिव लार्ड क्रू आए थे। इस दरबार के अवसर पर एक राजकीय घोषणा-द्वारा पश्चिम और पूर्व वंग के बँगला भाषी इलाकों को एक प्रांत में लाने का आदेश किया गया। राजधानी कलकत्ते से दिल्ली में हटा दी गई। मुस्लिम लीग का १९१२ का वार्षिक अधिवेशन नवाब सलीमुल्ला खाँ के सभापतित्व में ढाके में हुआ। इसमें नवाब साहब ने अपने अभिभाषण में हिंदुओं की शोरिशों और सरकार की बेमुरव्वतियों का बड़ा जोरदार चित्र खींचा और वंगभंग रद्द करने का विरोध प्रकट किया।
सं. ग्रं - पट्ठाभि सीतारमैया : द हिस्ट्री ऑव द कांग्रेस (अंग्रेजी); योगेशचंद्र वागल मुक्तिसधाने भारत (बंगला) (मन्मनाथ गुप्त)