अंतरराष्ट्रीय न्यायालय संयुक्त राष्ट्रसंघ का न्याय संबंधी प्रमुख अंग है जिसकी स्थापना संयुक्त राष्ट्रसंघ के घोषणा पत्र के अंतर्गत हुई है। इसका उद्घाटन अधिवेशन १८ अप्रैल, १९४६ ई. को हुआ था। इसके निमित्त एक विशेष संविधि- स्टैच्यूट ऑव इंटरनेशनल कोर्ट ऑव जस्टिस-बनाई गई और इस न्यायालय का कार्य संचालन उसी संविधि के नियमों के अनुसार होता है।

इतिहासस्थायी अंतरराष्ट्रीय न्यायालय की कल्पना उतनी ही सनातन है जितनी अंतरराष्ट्रीय विधि, परंतु कल्पना के फलीभूत होने का काल वर्तमान शताब्दी से अधिक प्राचीन नहीं है। सन् १८९९ ई. में, हेग में, प्रथम शांति सम्मेलन हुआ और उसके प्रयत्नों के फलस्वरूप स्थायी विवाचन न्यायालय की स्थापना हुई। सन् १९०७ ई. में द्वितीय शांति सम्मेलन हुआ और अंतरराष्ट्रीय पुरस्कार न्यायालय (इंटरनेशनल प्राइज़ कोर्ट) का सृजन हुआ जिससे अंतरराष्ट्रीय न्याय प्रशासन की कार्य प्रणाली तथा गतिविधि में विशेष प्रगति हुई। तदुपरांत ३० जनवरी, १९२२ ई. को लीग ऑव नेशंस के अभिसमय के अंतर्गत अंतरराष्ट्रीय न्यायालय का विधिवत् उद्घाटन हुआ जिसका कार्यकाल राष्ट्रसंघ (लीग ऑव नेशंस) के जीवनकाल तक रहा। अंत में वर्तमान अंतरराष्ट्रीय न्यायालय की स्थापना संयुक्त राष्ट्रसंघ की अंतरराष्ट्रीय न्यायालय संविधि के अंतर्गत हुई।

साधारण-अंतरराष्ट्रीय न्यायालय में न्यायाधीशों की कुल संख्या १५ है, गणपूर्ति संख्या नौ है। न्यायाधीशों की नियुक्ति निर्वाचन द्वारा होती है। पद धारण करने की कालावधि नौ वर्ष है। न्यायालय द्वारा सभापति तथा उपसभापति का निर्वाचन और रजिस्ट्रार की नियुक्ति होती है। न्यायालय का स्थान हेग में है और इसका अधिवेशन छट्टियों को छोड़ सदा चालू रहता है। न्यायालय के प्रशासन व्यय का भार संयुक्त राष्ट्रसंघ पर है। (देखिए, अंतरर्राष्ट्रीय न्यायालय संविधि-अनुच्छेद २-३३)।

क्षेत्राधिकारअंतरर्राष्ट्रीय न्यायालय संविधि में सम्मिलित समस्त राष्ट्र अंतरर्राष्ट्रीय न्यायालय में वाद प्रस्तुत कर सकते हैं। इसका क्षेत्राधिकार संयुक्त राष्ट्र संघ के घोषणापत्र अथवा विभिन्न; संधियों तथा अभिसमयों में परिगणित समस्त मामलों पर है। अंतरर्राष्ट्रीय न्यायालय संविधि में सम्मिलत कोई राष्ट्र किसी भी समय बिना किसी विशेष प्रसंविदा के किसी ऐसे अन्य राष्ट्र के संबंध में, जो इसके लिए सहमत हो, यह घोषित कर सकता है कि वह न्यायालय के क्षेत्राधिकार को अनिवार्य रूप में स्वीकार करता है। उसके क्षेत्राधिकार का विस्तार उन समस्त विवादों पर है जिनका संबंध संधिनिर्वचन, अंतरर्राष्ट्रीय विधि प्रश्न, अंतरर्राष्ट्रीय आभार का उल्लंघन तथा उसकी क्षतिपूर्ति के प्रकार एवं सीमा से है। (अंतरर्राष्ट्रीय न्यायालय संविधि, अनुच्छेद ३४-३८)।

अंतरर्राष्ट्रीय न्यायालय को परामर्श देने का क्षेत्राधिकार भी प्राप्त है। वह किसी ऐसे पक्ष की प्रार्थना पर, जो इसका अधिकारी है, किसी भी विधिक प्रश्न पर अपनी सम्मति दे सकता है। (अंतरर्राष्ट्रीय न्यायालय संविधि, अनुच्छेद ६५-६८)।

प्रक्रियाअंतरर्राष्ट्रीय न्यायालय की प्राधिकृत भाषाएँ फ्रेंच तथा अंग्रेजी है। विभिन्न पक्षों का प्रतिनिधित्व अभिकर्ता द्वारा होता है; वकीलों की भी सहायता ली जा सकती है। न्यायालय में मामलों की सुनवाई सार्वजनिक रूप से तब तक होती है जब तक न्यायालय का आदेश अन्यथा न हो। सभी प्रश्नों का निर्णय न्यायाधीशों के बहुमत से होता है। सभापति को निर्णायक मत देने का अधिकार है। न्यायालय का निर्णय अंतिम होता है, उसकी अपील नहीं हो सकती किंतु कुछ मामलों में पुनर्विचार हो सकता है। (अंतरर्राष्ट्रीय न्यायालय संविधि, अनुच्छेद ३९-६४)।

सं. ग्रं.जे. डब्ल्यू. गारनर टैगोर लॉ लेक्चर्स; के.आर.आर. शास्त्री स्टडीज़ इन इंटरनेशनल लॉ; स्टैच्यूट ऑव इंटरनेशनल कोर्ट ऑव जस्टिस। अंतरर्राष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा अभिकरण (श्री. अ.)