लोचनप्रसाद पांडेय का जन्म १८८७ ई. में बिलासपुर के बालपुर ग्राम में हुआ था। आपके पिता पंडित चिंतामणि पांड़े विद्याव्यसनी थे। उन्होंने अपने गाँव में बालकों की शिक्षा के लिए एक पाठशाला खुलवाई। इसी पाठशाला में बालक लोचनप्रसाद की शिक्षा का श्रीगणेश हुआ। सन् १९०५ में पांडेय जी ने कलकत्ता विश्वविद्यालय से एंट्रेस परीक्षा पास की, किंतु अपने प्रयत्न से इन्होंने उड़िया, बँगला और संस्कृत का भी ज्ञान प्राप्त किया। इन्होंने हिंदी एवं उड़िया, दोनों में काव्यरचना की है सन् १९०५ से ही इनकी कविताएँ सरस्वती तथा अन्य मासिक पत्रिकाओं में निकलने लगी थीं। इनकी कुछ रचनाएँ कथाप्रबंध के रूप में है तथा कुछ फुटकर। 'भारतेंदु-साहित्य-समिति' के भी ये सदस्य थे। मध्य प्रदेश के साहित्यकारों में इनकी विशेष प्रतिष्ठा थी तथा आज भी इनका नाम आदर से लिया जाता है। इनका स्वभाव सरल एवं निश्छल था तथा इनका व्यवहार आत्मीयतापूर्ण हुआ करता था। आपने अपनी रचनाओं के माध्यम से पाठकों को चरित्रोत्थान की प्रेरणा दी। उस समय उपदेशक का कार्य भी साहित्य के सहारे करना आज की तरह न था, इसलिए इनकी रचनाओं ने पाठकों के संयम के प्रति रुचि उत्पन्न की। हिंदी साहित्य सम्मेलन, प्रयाग ने आपको 'साहित्यवाचस्पति' की उपाधि से विभूषित किया तथा सन् १९२१ में मध्य प्रदेश में प्रादेशिक हिंदी साहित्य सम्मेलन के अवसर पर आप सभापति पद पर प्रतिष्ठित किए गए। इस प्रकार जीवनपर्यंत मातृभाषा की सेवा करते हुए सन् १९५९ में आपका देहावसान हो गया। आपकी रचनाएँ हैं - दो मित्र, बालविनोद, नीति कविता, माधव मंजरी, मेवाड़गाथा, चरित्रमाला, रघुवंशसार, पद्य कुसमांजलि, कविता कुसुममाला। (गिरीशचंद्र त्रिपाठी.)