लैबेंडर (Lavender) का पौधा, जिसका वानस्पतिक नाम लैवेडुला (Lavandula) है, लैबिएटी (Labiatea) कुल का जीनस है। यह कई प्रकार का होता है। इस जीनस के फूल एवं पत्तियाँ सुगंधित होती है। भूमध्यसागरीय देशों के जंगलों में जो लैवेडर पाया जाता है, उसे लैवेंडुला स्पाइका (L. spica) कहते हैं। लैवेंडर की झाड़ी तीन से चार फुट तक ऊँची होती है। इसकी पत्तियाँ लंबी, सँकरी तथा हलकी हरी होती हैं। इसके फूल हलके नीललोहित एवं पूंपूर्वी होते हैं। एक वृंत के चारों ओर चक्कर में फूल खिलते हैं। फूल तथा पत्तियँ सूखने पर भी पर्याप्त समय तक सुगंधित रहती हैं। इसी कारण सूखे फूलों को कपड़ों में रखकर बहुत से लोग उन्हें सुगंधित रखते थे।
(लैवैंडुला स्पाइका, Lavandula spica)
फूल में वाष्पशील तेल लगभग १५ प्रतिशत रहता है, जो ओषधि, इत्र तथा चित्रकारी में प्रयुक्त होता है। इस तेल को ऐल्कोहॉल में घुलाकर लैवेंडर जल बनाते हैं। इससे तेल के साथ कुछ अन्य सुगंधित द्रव्य, जैसे मुश्क, गुलाब तथा बर्गामोंट (bergamot) का सत भी डालते हैं। चौड़ी पत्तीवाले लैंवेडर से कम सुगंधित इत्र बनता है। तेल निकालने के लिए फूल अगस्त में एकत्र किए जाते हैं। २५� सें. पर तेल गतिशील रहता है और उसका आपेक्षिक घनत्व ०.८७५ से ०.८८८ तक रहता है। (अजित नारायण मेहरोत्रा)