लैम, चार्ल्स (१७७५-१८३४) इनका जन्म क्राउन आफिस रो, लंदन में सन् १७७५ ई. में हुआ। उनके पिता इनर टेंपुल के सैमुअल साल्ट नामक वकील के लिपिक थे। शिक्षा का प्रारंभ घर पर हुआ, फिर उन्होंने क्राइस्ट्स हास्पिटल नामक शिक्षा संस्था में प्रवेश किया। वहाँ सात वर्ष तक उन्होंने शिक्षा प्राप्त की और इसी काल में सैमुअल टेलर कोलरिज से उनकी प्रगाढ़ और चिरस्थायी मैत्री का प्रारंभ हुआ। सन् १७९२ में उनकी नियुक्ति ईस्ट इंडिया हाउस के कार्यालय में हुई। वहाँ ३९ वर्षों तक अनवरत कार्य करने के बाद उन्होंने सन् १८२५ में पेंशन के साथ अवकाश प्राप्त किया। उनका देहावसान सन् १८३४ ई. में हुआ।

सन् १७९६ में उनकी बहन मेरी ने उन्माद के आवेश में अपनी माता की हत्या कर डाली। इस दु:खद घटना के फलस्वरूप लैम ने अविवाहित रहकर आजीवन अपनी बहन की देखरेख का निश्चय किया। वह स्वयं भी १७९५-९६ में कुछ समय के लिए उन्मादग्रस्त हो गए थे और मानसिक विक्षेप का भय सदा मेरी और चार्ल्स दोनों को ही त्रस्त बनाए रहा।

लैम की मैत्री अपने समय के अनेक प्रतिष्ठित कवियों और लेखकों से हुई जिनमें कोलरिज, हैजलिट, ले हंट, वर्ड्सवर्थ, प्राक्टर, क्रैव राबिंसन आदि प्रमुख थे। लैम अत्यंत कोमल मन के भावुक व्यक्ति थे तथा उनके दैनिक जीवन और साहित्य में हास्य की प्रवृत्ति सदैव विद्यमान रहती थी। उनका व्यक्तित्व अत्यंत आकर्षक था तथा अपने जीवनकाल में उन्हें सदैव मित्रों तथा परिचितों का सम्मान और स्नेह मिला।

साहित्यिक जीवन के प्रारंभ में लैम ने कुछ कविताएँ लिखीं जिन्हें १७९६ में कोलरिज ने अपने एक संग्रह में प्रकाशित किया तथा सन् १७९८ में अतुकांत दंद में लिखी हुइ कुछ कविताएँ पुन: प्रकाशित हुईं। सन् १७९८ में ही रोजामंड ग्रे नामक अवसादपूर्ण कथा प्रकाशित हुई। इसके बाद लैम ने दो नाटक लिए, 'जान उडविल', नामक दु:खांत नाटक (१८०२ ई.) तथा 'मिस्टर एच' नामक प्रहसन (१८०६ ई.)। सन १८०७ में उन्होंने अपनी बहन मेरी लैम के सहयोग से शेक्सपियर के नाटकों के कथानकों को नववयस्कों के मनोरंजनार्थ लघु कथाओं के रूप में प्रस्तुत किया। सुखांत नाटकों से संब कहानियाँ मेरी लैम द्वारा तथा दु:खात नाटकों की कहानियाँ चार्ल्स लैम द्वारा लिखीं गई थीं। सन् १८०८ में स्पेसिमेन्स ऑव् इंग्लिश ड्रैमेट्रिक पोएट्स के प्रकाशन के अनंतर १८१० और १८२० के बीच शेक्सपियर के नाटकों के बारे में लैम ने आलोचनात्मक निबंध लिखे। इन दस वर्षों में इनके स्फुट लेख रिफ्लेक्टर, एग्ज़ामिनर आदि पत्रों में छपते रहे।

लंदन मैगजीन, में 'ईलिया' के छद्म नाम से कई निबंध लिखे जिनका प्रकाशन सन् १८२० ई. में शुरू हुआ। अगले दस वर्षों में निबंध लेखन में चार्ल्स लैम ने अप्रत्याशित एवं आश्चर्यजनक सफलता प्राप्त की। इन निबंधों का प्रथम संग्रह सन् १८२३ और दूसरा संग्रह १८३३ में निकला। निबंधों में लैम के व्यक्तित्व की स्पष्ट छाप है। उनकी रोचकता किसी विषय के क्रमिक विवेचन में नहीं वरन् लेखक के आत्मप्रकाशन में है। प्राय: सभी निबंध व्यंग्य, अवसाद तथा वैयक्तिकता से ओतप्रोत हैं। उनसे लेखक के लंदनप्रेम, साहित्यप्रेम, तथा विनोदी प्रकृति का पता लगता है। नवीन और प्राचीन उपकरणों के सम्मिश्रण से शैली अत्यंत प्रभावोत्पादक बन गई हैं।

चार्ल्स लैम के पत्रों का संग्रह सर्वप्रथम टामस टैलफोर्ड ने सन् १८३४ में प्रकाशित किया। अधिकांश पत्र मित्रों को लिखे गए हैं और उनमें सभी विशेषताएँ विद्यमान है जिनका उल्लेख निबंधों के संबंध में किया गया है। पत्रों में लैम का व्यक्तित्व और भी उभरकर सामने आया है तथा उनके मन में निहित हास्य, करुणा, उदारता और स्नेह की अत्यंत सफल अभिव्यक्ति हुई है।

लैम की कविताओं में भी उनकी आत्माभिव्यक्ति हुई है और प्राचीन स्मृतियों के आधार पर ही वे लिखी गई हैं। लैम के आलोचना संबंधी लेख उनकी सुरुचि और मर्मस्पर्शी अंतर्दृष्टि के द्योतक है। (रामअवध द्विवेदी)