लैंसडाउन, लॉर्ड लैंसडाउन का प्रथम मार्क्विस, विलियन पेटी फ़िट्स मॉरिस एक प्रसिद्ध अंग्रेज राजनीतिज्ञ था। वह 'शेलबर्न का अर्ल' के नाम से अधिक विख्यात था। उसका जन्म डबलिन में २० मई, १७३७ को हुआ था और मृत्यु ७ मई, १८०५ को। सप्तवर्षीय युद्ध में वुल्फ की रेजीमेंट में योग्यतापूर्वक कार्य किया जिसके पुरस्कार स्वरूप सेना में कर्नल बनाया गया। सन् १७६० में यह ब्रिटिश सम्राट्, जॉर्ज द्वितीय, का अंगरक्षक बना। अगले वर्ष 'शेलबर्न का अर्ल' की उपाधि ग्रहण की। सन् १७६३ में 'बोर्ड ऑव ट्रेड' के अध्यक्ष के रूप में ग्रेनविल मंत्रिपरिषद् में पदार्पण किया, किंतु कुछ महीने बाद त्यागपत्र दे दिया। सन् १७६६ में पिट के प्रधान मंत्रीत्व में 'सेक्रेटरी ऑव स्टेट' बनाया गया, पर १७६८ में ही अमरीका संबंधी नीति के कारण पदच्युत कर दिया गया। अमरीका को मान्यता देने की शर्त पर सन् १७८२ में यह रॉकिंघम के मंत्रिमंडल में सम्मिलित हुआ। रॉकिंघम की मृत्यु के पश्चात् प्रधान मंत्री बना पर १७८३ में ही इसे पदत्याग करना पड़ा। अगले वर्ष 'मार्क्विंस, ऑव लैंसडाउन' बनाया गया।
लैंसडाउन का पंचम मार्क्विस, हेनरी चार्ल्स कीथ पेटी फिट्समॉरिस का जन्म १४ जनवरी, सन् १८४५ ई. को हुआ था। यह भारतवर्ष से अधिक संबंधित था। १८८३ से १८८८ ई. तक यह कनाडा का गवर्नर-जेनरल भी रह चुका था। कुछ समय तक इसने भारत के उपसचिव पद पर भी कार्य किया था। सन् १८८८ से १८९३ तक भारतवर्ष का वाइसरॉय रहा और सन् १८९४ में इंग्लैंड वापस चला गया। इसके समय में सन् १८९२ का 'इंडियन काउंसिल्स ऐक्ट' बना। इस ऐक्ट के अनुसार काउसिलों में भारतीय सदस्यों की संख्या बढ़ा दी गई तथा निर्वाचन सिद्धांत का श्रीगणेश किया गया। विश्वविद्यालयों, नगरपालिकाओं तथा जिला परिषदों को विधानसभाओं में अपने प्रतिनिधि भेजने का अधिकार दिया गया। केंद्रीय विधानपरिषद् में सदस्यों को वार्षिक बजट पर बहस करने तथा प्रश्न पूछने का अधिकार दिया गया।
१८८९ में कश्मीर के राज प्रतापसिंह को प्रजा पर अत्याचार करने तथा रूस से पत्रव्यवहार करने के झूठे आरोप लगाकर शासन के सारे अधिकार अंग्रेजों की एक समिति के हवाले करने को बाध्य किया। सीमाओं के संबंध में लैंसडाउन 'आगे बढ़ने की नीति' में विश्वास रखता था। इसे मतावलंबियों का विचार था कि चौकियाँ स्थापित करके तथा रेलें चलाकर अंग्रेजों को अफ़गान सीमा तक पहुँच जाना चाहिए। इसीलिए गिलगिट को हड़पने का प्रयत्न किया जा रहा था। अफगान अमीर अब्दुर्रहमान लैंसडाउन से चिढ़ गया था। पर अंग्रेज दूत हेनरी मॉर्टिमर डूरंड की चतुराई के कारण सब मामला ठीक हो गया और अमीर अँग्रेजों से प्रसन्न हो गया। ३ जून, १९२७, को यह परलोक सिधारा। (मिथिलेश चंद्र पांड्या)