लेटिमर ह्यू (१४९०-१५५५) इंग्लैड का प्रमुख धर्मसुधारक। लीस्टरशायर के थर्कास्टन नगर में १४९० में लेटिमर का जन्म एक साधारण किसान के घर हुआ। उसका बाल्यकाल गरीबी में बीता। उसने केंब्रिज विश्वविद्यालय के क्लेयर कालेज से १५१२ में बी.ए. तथा १५१४ में एम.ए. की उपाधियाँ प्राप्त कीं। विश्वविद्यालय के अध्ययनकाल में ही उसने धर्मसेवा के उद्देश्य से दीक्षा ले ली थी। प्रचलित ईसाई धर्मव्यवस्था और शास्त्र के अध्ययन ने उसके मन में शंकाएँ उत्पन्न की। उसने लूथर का प्रोटेस्टेट मत ग्रहण किया और अत्यंत उत्साह के साथ अपने देश में धर्मसुधार के कार्य में जुट गया। उसने प्रचलित धार्मिक अंधविश्वासों और बुराइयों का खंडन किया। १५२९ के दिसंबर मास के उसके दो उपदेशों से कैंब्रिज के धर्माचार्य बहुत क्रुद्ध हुए। वे उसे दंड दिलाना चाहते थे पर देश के राजा हेनरी अष्टम ने उनके कोप से उसकी रक्षा की। राजा ने लैंट के धार्मिक पर्व पर उसके उपदेश सुने और शीघ्र ही उसे अपने निजी गिरजाघर का पादरी नियुक्त कर दिया। दरबारी जीवन में लेटिमर का मन नहीं लगा। १५३१ में राजा ने उसको विल्टशायर के वेस्टकिंगटन का रेक्टर नियुक्त कर दिया।
लेटिमर कुछ काल तक काफी अस्वस्थ रहा पर अपने प्रिय कार्य में उसने कभी शिथिलता न आने दी। अपने एक उपदेश के स्पष्टीकरण के लिए उसे लंदन के धर्माधिकारियों के समक्ष बुलाया गया। कन्वोकेशन (धर्मसभा) में भी उसके मामले की सुनवाई हुई। धर्मसभा ने उसकी बहिष्कृत कर कारागार में भिजवा दिया। दो के अतिरिक्त धर्मसंबंधी अन्य बातों को मान लेने पर राजा के हस्तक्षेप से उसकी मुक्ति हुई।
१५३३ में क्रैनमर के आर्कविशप (प्रधान धर्माधिकारी) नियुक्त होने के बाद लेटिमर का कार्य सुगम हो गया। धर्मसुधार के संबंध में दोनों के समान विचार थे, १५३४ में हेनरी ने पोप के संबंध विच्छेद कर दिया। इंग्लैंड में पोप के अधिकारों और कर्तव्यों की समाप्ति के कानूनों की रचना में लेटिमर का प्रमुख हाथ था। बड़े भाई की विधवा कैथरीन के साथ विवाह को अवैध बताकर भी उसने राजा की सहायता की थी। १५३५ में हेनरी ने उसको वोर्स्टर के बिशप के उच्च पर पर नियुक्त किया। प्रोटेस्टैंट धर्म के सिद्धांतों, विश्वासों और पूजापद्धति को इंग्लैंड में प्रतिष्ठित कराने में लेटिमर के उपदेश बहुत सहायक हुए। पर जब १५३९ में राजा ने कैथलिक धर्म की रक्षा के लिए 'सिक्स आर्टिकिल्स' का कानून बनवा दिया तो लेटिमर न बिशप का पद त्याग दिया। अब स्वतंत्रतापूर्वक प्रचार करना लेटिमर के लिए कठिन हो गया।
१५४० में प्रोटेस्टैंट धर्म के उत्कट समर्थक टामस क्रामवेल के प्राणदंड के बाद वह अधिकतर मौन रहा। धर्मप्रचारक एडवर्ड क्रोम से संपर्क के कारण १५४६ में ग्रीनिच की कौंसिल ने उसको कारागार में भेज दिया। उसके अभियोग की सुनवाई से पहले ही हेनरी की मृत्यु हो गई। उसके उत्तराधिकारी एडवर्ड षष्ठ के राज्यारोहण के अवसर पर लेटिमर की कारागार से मुक्ति हुई। एडवर्ड के राज्यकाल में प्रोटेस्टैंट सिद्धांतों पर आधारित धर्मव्यवस्था इंग्लैंड का राजधर्म बनी।
जनवरी, १५४८ में दूने उत्साह के साथ उसने धर्मप्रचार का कार्य फिर आरंभ कर दिया। लंदन नगर और अन्य स्थानों में उसके उपदेशों को सुनने के लिए दूर-दूर से लोग आने लगे; किंतु १५५३ में एडवर्ड की मृत्यु के बाद उसकी बहन मेरी के देश का शासक होने से परिस्थितियाँ बदल गई। मेरी कट्टर कैथलिक थी। उसने कैथलिक धर्म को फिर देश का राजधर्म घोषित किया और विरोधियों के लिए कठोर दंड की व्यवस्था की। लेटिमर को फिर कारागार में भेज दिया गया। वेस्टमिंस्टर की कौंसिल में उसकी सुनवाई हुई। कारागार के कठोर जीवन का उसके स्वास्थ्य पर बुरा असर पड़ा पर उसमे हार नहीं मानी। उसको जीवित ही अग्निप्रवेश का दंड दिया गया। १६ अक्टूबर, १५५५ के दिन आक्सफर्ड में उसने प्रसन्नचित्त अपने आपको आग में समर्पित कर दिया। उस अवसर पर उसने समान दंड के भागी प्रोटेस्टैंट धर्माचार्य विडले से कहा था, 'ईश्वर की कृपा से हम आज इंग्लैंड में ऐसी ज्योति जलाएँगे जो कभी भी बुझाई न जा सकेगी।' उसकी यह भविष्यवणी सत्य हुई। इंग्लैंड ने प्रोटेस्टैंट सिद्धातों पर आधारित धर्मव्यवस्था को ही अपनाया और वही आज भी उस देश का राजधर्म है। लेटिमर के उपदेश बहुत लोकप्रिय हुए। १८४४-४५ में धर्माचर्य कोरी ने उनका संपादन कर चार जिल्दों में लंदन से प्रकाशित कराया। तब से कई बार उनका प्रकाशन हो चुका है। (त्रिलोचन पंत)