लेखराम जन्म ८ चैत्र, संवत् १९१५ (१८५८ ई.) को सैदपुर तहसील चकवाल में हुआ था। उन्होंने आरंभ में उर्दू फारसी पढ़ी। सत्रह वर्ष की उम्र में वे सन् १८७५ ईसवी में पेशावर पुलिस में भरती हुए और उन्नति करके सारजेंट बन गए।
इन दिनों इनपर 'गीता' का बड़ा प्रभाव था। वे ऋषि दयानंद से भी प्रभावित हुए और उन्होंने संवत् १९३७ विक्रमी में पेशावर में आर्यसमाज की स्थापना की। १७ मई, सन् १८८० को उन्होंने अजमेर में स्वामी जी से भेंट की। शंकासमाधान के परिणामस्वरूप वे उनके अनन्य भक्त बन गए। लेखराम जी ने सन् १८८४ में पुलिस की नौकरी से त्यागपत्र दे दिया। अब उनका सारा समय वैदिक धर्मप्रचार में लगने लगा। कादियाँ के अहमदियों ने हिंदू धर्म के विरुद्ध कई पुस्तकें लिखी थीं। लेखराम जी ने उनका जोरदार खंडन किया।
स्वामी दयानंद का जीवनचरित् लिखने के उद्देश्य से उनके जीवन संबंधी घटनाएँ इकट्ठी करने के सिलसिले में उन्हें भारत के बहुसंख्यक स्थानों का दौरा करना पड़ा। इस कारण उनका नाम 'आर्य मुसाफिर' पड़ गया। पं. लेखराम हिंदुओं को मुसलमान होने से बचाते थे। एक कट्टर मुसलमान ने ३ मार्च, सन् १८९७ को ईद के दिन, 'शुद्धि' कराने के बहाने, धोखे से लाहौर में उनकी हत्या कर डाली। ( संतराम)