लुई यूरोप में लुई नाम के कई राजा हुए। शार्लमेन का तीसरा पुत्र लुई प्रथम (७७८-८४०) 'पवित्र' कहलाता था। उसी का तृतीय पुत्र लुई (८०४-८७६) जर्मन राज्य का संस्थापक माना जाने लगा। एक लुई (१३२६-१३८२) हंगेरी और पोलैंड का शासक था। उसे 'महान्' कहा जाता है और वेनिस नगर राज्य से उसने इटली का काफी भूभाग लड़कर जीता। इसी प्रकार नेपल्स में भी तीन राजा लुई नाम के हुए। २०वीं शताब्दी तक लुई नाम के राजा होते रहे हैं, जैसे बवेरिया का लुई तृतीय (१८४५-१९२१)। स्पेन, जर्मनी, नेपल्स, आदि में भी लुई नाम के कई राजा हुए, लेकिन इस नाम के अठारह राजा केवल फ्रांस में हुए। इन्होंने ८वीं शताब्दी से १९वीं शताब्दी के मध्य तक समय समय पर राज्य किया। परंतु फ्रांस के लुई राजाओं के उत्थान और पतन का काल तेरहवें लुई से लेकर अठारहवें लुई तक है।

लुई तेरहवाँ (१६१०-१६४३) - यह फ्रांस के राजा हेनरी चतुर्थ का पुत्र था। राज्याराहण के समय वह केवल नौ वर्ष का था। उसकी माँ मारी डी मैडिची, जो राजमाता बनी, कट्टर कैथलिक थी। उसने फ्रांस के प्रॉटेस्टेटों पर बड़े अत्याचार किए। १६१७ में बालिग हो जाने पर तेरहवें लुई ने राज्य की बागडोर स्वयं अपने हाथ में ले ली। १६२४ में राजमाता को राज्य के कार्यों में भाग लेने से सवर्था रोक दिया गया और कार्डिनल रिशल्यू को फ्रांस का प्रधान मंत्री बनाया गया। और कार्डिनल रिशल्यू को फ्रांस का प्रधान मंत्री बनाया गया। रिशल्यू की नीति थी फ्रांस में राजकीय शक्ति को, एवं यूरोप में फ्रांस को सर्वश्रेष्ठ बनाना।

ग्यारहवें लुई को नीती पर चलते हुए तेरहवें लुई ने स्टेट्स जनरल (प्रतिनिधि सभा) का अधिवेशन कभी नहीं बुलाया और प्रजातंत्रीय विचारों को पनपने नहीं दिया। १६२९ में फ्रांस के प्रॉटेस्टेटों के भी बहुत से अधिकार छीन लिए गए।

चौदहवॉ लुई (१६४३-१७१५) - १५ मई १६४३ को तेरहवें लुई का देहांत हो गया। अब उसका पुत्र लुई चौदहवाँ राजसिंहासन पर बैठा। उस समय उसकी आयु केवल पाँच वर्ष की थी। रिशल्यू के उपरांत राज्य की बागडोर कार्डिनल मेज़रिन के हाथ में आ गई थी। मेज़रिन ने रिशल्यू की ही नीति को पूर्णत: स्थायी रखा। चौदहवें लुई के राज्यारोहण के समय फ्रांस की सेनाएँ तीस वर्षीय युद्ध में जर्मनी में लड़ने में व्यस्त थीं। फिर भी फ्रांस में विद्रोहियों का सफलतापूर्वक दमन किया गया। चतुर्थ हेनरी व रिशल्यू दोनों ने फ्रांस में स्वेच्छाचारी राजसत्ता जमाने का यथेष्ट प्रयत्न किया था १६६१ में मेजरिन की मृत्यु के उपरांत चौदहवें लुई ने इस बात की घोषणा की कि वह स्वयं राज्य करेगा और मंत्रियों की सहायता की उसे कोई आवश्यकता नहीं है। लुई का कहना था, 'मैं ही राष्ट्र हूँ।' लुई के समय में फ्रांस के सर्वसाधारण को इस बात पर विश्वास दिलाया गया कि मनुष्य जाति के लाभ के लिए ही भगवान राजा को अपना प्रतिनिधि बनाकर भेजता है।

चौदहवें लुई के तत्कालीन वित्तमंत्री कोलबेर ने देश की आर्थिक उन्नति की जिसके परिणामस्वरूप युद्ध के साधन उपलब्ध हुए। लुई (१६६१ से १७१३ तक), फ्रांस की सीमाएँ बनाने के लिए यूरोप में युद्ध करता रहा। इनके डेवोल्यूशन (Devolution) का युद्ध (१६६७-१६६८), डचश् युद्ध (१६७२-१६७८), ऑग्सबर्ग की लीग का युद्ध (१६८९-१६९७) और स्पेन के उत्तराधिकार का युद्ध (१७०१-१७१३) प्रसिद्ध हैं। अंत में इन युद्धों से फ्रांस की आर्थिक दशा बहुत बिगड़ गई।

ऐसा होते हुए भी चौदहवें लुई के समय में फ्रांस का सांस्कृतिक अभ्युदय कुछ आश्चर्यजनक गति से हुआ। उसके समय के कला कौशल और सांस्कृतिक श्रेष्ठता का सिक्का यूरोप के हृदय पर अब भी जमा हुआ है। पेरिस से बारह मील दूर वर्साय में उसने अपने रहने के लिए एक राजप्रासाद बनवाया था। प्रासाद की लागत उस समय लगभग इक्कीस करोड़ रुपए था। वर्साय भर में बाग, बगीचे, झरने, छोटे तथा बड़े प्रासाद ही दिखाई देते थे।

कला क्षेत्र में भी फ्रांस को अपूर्व मर्यादा प्राप्त हुई। कार्ने (Corneille, १६०६-१६८४) और मौल्येअर (१६२२-१६७३) प्रसिद्ध नाटककार थे। मडाम डी सेवीनये (Sevigne) (१६२६-१६९६), ला फॉनटेन (१६२१-१६९५) और रेसीन (१६३९-१६९९) के लेखों और शब्दों के प्रयोग ने फ्रेंच भाषा को समस्त यूरोप में सर्वप्रिय बना दिया था। इंग्लैंड के खाने के सूचीपत्र (menu) आज तक फ्रेंच में छपते हैं। फ्रांस को यह गौरव १४वें लुई के समय से ही प्राप्त हुआ।

शिल्प विद्या, मूर्तिकला, चित्रकला तथा संगीत में फ्रांस के कलाकारों ने यूरोप की कलाशैली पर बहुत प्रभाव डाला। फ्रांस की राजनीतिक श्रेष्ठता के कारण फ्रांस की कला को और भी प्रतिष्ठा मिली। इस सांस्कृतिक उन्नति के कारण उसका राज्यकाल फ्रांस का स्वर्णयुग बन गया। उसका राज्यकाल यूरोपीय इतिहास में 'चौदहवें लुई का युग' कहलाता है।

लुई जितना प्रतापी राजा था, उतना ही दु:खद उसका अंत हुआ। अपने अंतिम दिनों में बूढ़ा और क्षीण लुई, स्पष्ट देख रहा था, कि उसके युद्धों के परिणामस्वरूप हुई क्षति के कारण उसकी प्रजा दु:खी है, कृषक भूखे हैं और मध्यवर्ग के लोग निर्धन होते चले जा रहे हैं। लुई का केवल एक पुत्र था। सम्राट् ने उसे शिक्षा देने का भरसक प्रयत्न किया परंतु वह अनपढ़ ही रहा। १ सितंबर, १७१५ को चौदहवें लुई का देहांत हुआ।

लुई पंद्रहवाँ (१७१५-१७७४) - चौदहवें लुई की मृत्यु के बाद उसके प्रपौत्र को पाँच वर्ष की आयु में पंद्रहवें लुई के नाम से फ्रांस के राजसिंहासन पर बैठाया गया। बाल्यावस्था में उसका चाचा, ड्यूक ऑव ऑरलेऑन् रीजेंट नियुक्त हुआ। देश की आर्थिक अव्यवस्था को सुधारने के लिए जॉन ला की मिसिसिपी योजना के अनुसार एक कंपनी खोली गई और नोट छापे गए। १७२० में नवनिर्मित कंपनी का दीवाला निकल गया। नोटों का कोई मूल्य न रहा। देश की गरीबी और अधिक बढ़ गई। इसी बीच १७२३ में रीजेंट की मृत्यु हो जाने पर लुई पंद्रहवें ने राज्य का कार्य अपने हाथ में ले लिय। उसने कार्डिनल फ्ल्यूरी को प्रधान मंत्री नियुक्त किया। फ्ल्यूरी न आर्थिक दशा को काफी सँभाला, लेकिन लुई ने पोलैंड के निर्वाचन की लड़ाई (१७३३-१७३८), आस्ट्रिया के उत्तराधिकार के युद्ध (१७४०-१७४८) और सप्तवर्षीय युद्ध (१७५३-१७६३) में भाग लेकर देश की आर्थिक स्थिति को और भी बिगाड़ दिया। इसके साथ साथ उसके भोग विलास की भी सीमा नहीं थी। सारे देश में राजा के विरुद्ध असंतोष बढ़ता गया।

लुई सोलहवाँ (१७७४-१७९३) - लुई पंद्रहवें का पौत्र था और उसके बाद फ्रांस का राजा बना। उसका जन्म १७५४ में हुआ था। वह ईमानदार था और उसके विचार भी अच्छे थे लेकिन वह एक कमजोर प्रकृति का व्यक्ति था और सदैव किसी न किसी के प्रभाव में रहता था - पहले माँ और भाई के और बाद में अपनी पत्नी मारी ऐत्वानेत् के।

लुई का यह दुर्भाग्य था कि अपने पूर्वजों के कार्यों का भुगतान उसने अपने प्राणों की बलि देकर किया। चौदहवें और पंद्रहवें लुई का स्वेच्छाचारी शासन, बिगड़ती आर्थिक दशा, सामंतों के अत्याचार और हर प्रकार की असमानता से पीड़ित जनता ने १७८९ में क्रांति का झंडा खड़ा कर दिया। लुई की दयापूर्ण नीति के कारण भी परिस्थिति बिगड़ती गई। वर्साय पर जनता ने आक्रमण किया और एक संविधान को संचालित किया। लुई को ट्यूलरी के प्रासाद में बंदी कर दिया। लुई का वहाँ से भागने का प्रयत्न असफल रहा। उसपर यह भी दोष लगाया गया कि अपनी सत्ता पुन: स्थापित करने के लिए वह दूसरे राजाओं से चोरी चोरी सहायता की याचना करता रहा है। देशद्रोह के आरोप में उसे २१ जनवरी, १७९३ को ३८ वर्ष की आयु में प्राणदंड दे दिया गया।

लुई अठारहवाँ (१८१४-१८२४) सोलहवें लुई का पुत्र (सत्रहवाँ लुई) जेल में मरा था। १७९३ से १८१४ तक फ्रांस में पहले क्रांतिकारी सरकार और फिर नेपोलियन बोनापार्ट का राज्य रहा। नेपोलियन के पतन के उपरांत सोलहवें लुई का भाई काउंट ऑव प्रोवेंस अठारहवें लुई के नाम से फ्रांस के सिंहासन पर बैठा। उसका जन्म १७ नवंबर, १७५५ को हुआ था। क्रांति और नेपोलियन के समय वह देश देश भटकता रहा था और उसे प्रवासी राजकुमार (Wandering Prince) कहते थे। लौटकर उसने यूरोप के मित्र देशों की सहायता से (जो नेपोलियन के विरुद्ध रहे थे) ३ मई १८१४ को अपने वंश के सफेद झंडे के साथ पेरिस में प्रवेश किया। ४ जून को वह राजा घोषित किया गया। समय की परिस्थिति के अनुसार उसने देशवासियों को एक संविधान दिया। जब नेपोलियन एल्बा से भागकर फ्रांस लौटा तो अठारहवाँ लुई पेरिस छोड़कर भाग गया। वाटरलू के युद्ध के बाद वह फिर पेरिस लौटा, और राज्य करने लगा। दस वर्ष राज्य करने के बाद १६ सितंबर, १८२४ को लुई की मृत्यु पेरिस में हो गई। (कािशेरी शरण (सरन) लाल)