लिथो छपाई (Lithography) पत्थर पर चिकनी वस्तु से लेख लिखकर अथवा डिज़ाइन बनाकर, उसके द्वारा छाप उतारने की कला है। लिथोग्रैफी शब्द यूनानी भाषा के लिथो (पत्थर) एवं ग्रैफी (लिखना) शब्दों के मिलने से बना है। पत्थर के स्थान पर यदि जस्ता, ऐलुमिनियम इत्यादि पर उपर्युक्त विधि से लेख लिखकर या डिज़ाइन बनाकर छापा जाए तो उसे भी लिथोग्रैफी कहेंगे।

लिथोछपाई को सतह या समतल लिखावट (Planographic) प्रक्रम (process) भी कहते हैं। इसमें मुद्रणीय और अमुद्रणीय क्षेत्र एक ही तल पर होते हैं, परंतु डिज़ाइन चिकनी स्याही से बने होने के कारण और बाकी सतह नम रखी जाने के कारण, स्याही-रोलर स्याही को स्याही ग्राही डिज़ाइन पर ही निक्षिप्त कर पाता है। अमुद्रणीय क्षेत्र की नमी, या आर्द्रता, स्याही को प्रतिकर्षित करती है। इस प्रकार लिथोछपाई चिकनाई और पानी के विद्वेष सिद्धांत पर आधारित है। इस प्रक्रम का आविष्कार बेवेरिया में एलॉइस जेनेफ़ेल्डर (Alois Senefelder) ने ६ नवंबर, १७७१ ई. को किया था। सौ वर्षों से अधिक काल तक प्रयोग और परख होते रहने के बाद आधुनिक फोटो ऑफ़सेट लिथो छपाई के रूप में उसका विकास हुआ।

लिथो छपाई में आरेखन और मुद्रण दोनों की विधियाँ सन्निहित है। समतल लिखावट मुद्रण द्वारा प्रिंटों (prints) को छापने की दो प्रमुख विधियाँ हैं : स्वलिथोछपाई (autolithography) और ऑफ़सेट फ़ोटोलिथोछपाई। स्वलिथोछपाई नक्शानवीस (draftsman), या कलाकार द्वारा प्रस्तर, धातु की प्लेट, या अंतरण कागज (transfer paper) पर अंकित मूल लेखन, या आरेखन से आरंभ होता है। डिज़ाइन में सर्जक के मन की छाप और कलाकार के व्यक्तिगत स्पर्श की छाप होती है। इस शिल्प के व्यापारिक पक्ष के अनेक विभाग हैं और ऐसे शिल्पी कम होते हैं जो अपने विभाग के अलावा दूसरे विभाग की भी जानकारी रखते हों। अत: सहज कलात्मक प्रेरणाएँ व्यर्थ जाती हैं। इसका अर्थ यह नहीं कि ऑफसेट लिथोछपाई में कलापक्ष का अभाव होता है, परंतु यह मान लेने की बात है कि इसमें कलापक्ष क्रमश: गौण हो रहा है, खास कर उस स्थिति में जबकि फोटोग्राफी स्वलिथोछपाई का स्थान ले रही है। लिथो छपाई का आरंभ पत्थर से छापने के रूप में हुआ और आज भी उसका महत्व कम नहीं हुआ है, परंतु फ़ोटोग्रॉफसेट को, जो छपाई का परोक्ष प्रक्रम है और जिसमें शीघ्रता, सस्तापन और यथार्थता के लिए छपाई के काम में प्रकाशयांत्रिक (photomechanical) विधियों का उपयोग होता है, त्यागा नहीं जा सकता।

वर्णलिथोछपाई और फोटोलिथोछपाई - रंगीन छपाई के लिए, विशेषकर विज्ञापन में, वर्णलिथोछपाई (बिना फोटोग्राफी के) उत्तम विधि है। (१) विभिन्न आकार के उत्कीर्ण (stippled) बिंदुओं से, या (२) दानेदार पत्थर, या प्लेट पर अंकनी (crayon), या खड़िया से आरेख करके और आरेखन के समय खड़िया पर दबाव के बदलाव से प्रभावित दानों का क्षेत्र और उनके टोन की गहराई निर्धारित करके, हाथ की लिथोछपाई में चिकने पत्थर पर रंगों का क्रमस्थापन उत्पन्न किया जात है। चित्रकार यांत्रिक आभा (tint), या छायाकारी माध्यम, या उन सभी विधियों के संयोजन का भी उपयोग कर सकता है, जिनमें फोटोग्राफी, या फोटोग्राफी विधि से निर्मित बिंब भी सम्मिलित हैं।

अंतरण कागज - फ़ोटोग्राफी की मदद के बिना लिथोग्रैफिक प्रतिबिंब बनाने का प्राचीनतम प्रक्रम अंतरण कागज है। आज भी अनेक भारतीय और विदेशी लिथोग्रैफिक छपाई के संस्थान धातु की प्लेटों पर लिथोग्रैफिक प्रतिबिंबों को बनाने के लिए प्रकाशयांत्रिक प्रक्रम का प्रयोग नहीं करते। सम बुनावट और उपयुक्त आधारी कागज पर अनेक पदार्थों, जैसे आटा, स्टार्च, जिलेटिन, सरेस, प्लास्टर ऑव पैरिस, या गच (stucco), सादा सफेद, कांबोज्य (gamboge) आदि के साथ पानी, गोंद और चाशनी (syrup) से बनाए हुए संयोजन, की परत से विभिन्न प्रकार के अंतरण कागज बनाए जाते हैं।

अंतरण कागज अनेक प्रकार के होते हैं, जैसे (अ) द्रव अंतरण अर्थात् स्याही या लिथोलेख स्याही द्वारा आरेखन या लेखन के लिए प्रयुक्त होनेवाला कागज, (ब) लिथोलेखी खड़िया से बने आरेखन के लिए दानेदार या खड़िया अंतरण कागज, (स) ताँबा प्लेट, या इस्पात प्लेट अंतरण कागज तथा (द) प्रस्तर, जस्ता या ऐलुमिनियम प्लेटों पर अंतरण के लिए उपयुक्त अंतरण कागज।

प्रकाश लिथोछपाई - न्यूनाधिक स्वचालित प्रकार के भौतिक और रासायनिक प्रक्रमों का यह संयोजित रूप है। छपाई की सतह पर पहला प्रतिबिंब बनाने में फ़ोटोग्राफी का सहारा लिया जाता है। रंगीन मूल के बड़े, या छोटे आकार का पुनरुत्पादन नेगेटिव कैमरे में तैयार होता है।

हाफटोन फोटोग्राफ़ी - प्रकाशलिथो पुनरुत्पादन की हाफटोन वस्तुएँ रूलदार परदों द्वारा बनाई जाती हैं। यदि मूल बहुत अच्छा न हो, तो केवल फोटोग्राफी से अभीष्ट प्रभाव उत्पन्न करना बिलकुल सरल नहीं है। ऐसी दशा में सामान्यत: 'हाइलाइट' नेगेटिव बनाया जाता है। इससे हाफ़टोन के बिंदु बनते हैं, जो बहुत बड़े होते हैं। नेगेटिव बनाने का काम पूरा हो जाने पर प्रकाशलिथो अनुशोधक (retoucher) बिंदुओं को रासायनिक अवकारक (हाइपाफेरिसायनाइड विलयन) की स्थानीय प्रयुक्ति से उपचारित कर बिंदुओं को अभीष्ट आकार में परिणत करते हैं। इससे वह न्यूनाधिक मूल के टोन का हो जाता है। 'हाइलाइट' नेगेटिव तैयार करने की दो विधियाँ हैं : एक प्रत्यक्ष और दूसरी परोक्ष।

लाइन फोटोग्राफी - रेखा मूल का आर्द्र कोलोडियन प्रक्रम द्वारा सुविधा से फोटो खींचा जा सकता है। ऐसा निरंतर टोनमूल में नहीं हो सकता। यह प्रक्रम केवल सस्ता और सुविधाजनक ही नहीं है, बल्कि इससे परिणाम भी बहुत अच्छा प्राप्त होता है। इस प्रक्रम में केवल यही कमी है कि यह वर्णसंवेदी नहीं है और इसके द्वारा केवल 'काला-सफेद' मूल का उपयुक्त फोटोग्राफ प्राप्त हो सकता है।

लिथोग्रैफिक प्रतिबिंब निर्माण - ऐल्ब्यूमेन प्लेट निर्माण उपचार : यहाँ नेगेटिव, या पॉजिटिव काँच बनाना पहला क्रम है।

काँच से अंतरित चिकना प्रतिबिंब तैयार करना उद्देश्य है। धातु प्लेटों पर फोटोलिथो प्रतिबिंब तैयार करने की सरलतम और मितव्ययी विधि स्याही-ऐल्बूमेन, या सतही फोटोलिथो प्रक्रम है।

धातु की सतह पर जल में अविलेय पतली फिल्म के रूप में विलेपित (coated), डाइक्रोमेटेड कोलाइड विलयन का नेगेटिव पारदर्शी चित्र के नीचे तीव्र क्रियाशील प्रकाश में उद्भासित कर चित्रण करना उपर्युक्त प्रक्रम का अंतर्निहित सिद्धांत है। नेगेटिव के अपारदर्शी भागों से रक्षित स्थल सादे पानी मे डेवलप करते समय धुल जाते हैं।

जस्ते या ऐलुमिनियम धातु की एक दानेदार (grained) प्लेट को पानी से साफ धोते हैं। इसे ५ प्रतिशत ऐसोटिक अम्ल, या श्प्रतिशत हाइड्रोक्लोरिक, या सल्फ्यूरिक अम्ल विलयन के कुंड (bath) में डुबोकर, अल्पसंवेदी और ग्रीज़मुखी (grease face) बनाते हैं। इसके बाद यांत्रिक आघूर्णक (whirler) में प्लेट पर अंडा, ऐल्यूमेन, अमोनियम बाइक्रोमेट, द्रव अमोनिया और पानी का लेप चढ़ाते हैं।

इसके बाद लेपित प्लेट को भली प्रकार सुखाकर निर्वात छपाई फ्रेम में रखते हैं और नेगेटिव की धूल पोंछकर उसे ऐसी स्थिति में रखते हैं कि फिल्मवाला भाग लेपित प्लेट पर पड़े।

उद्भासन (exposure) की मात्रा अनेक बातों पर, जैसे डाइक्रोमेट और अमोनिया की मात्रा, लेपन विलयन की प्रकृति और गाढ़ापन (consistency), फ़िल्म में अवशिष्ट आर्द्रता, वायुमंडल की आर्द्रता, या शुष्कता और प्रकाश की तीव्रता आदि पर निर्भर करती है। प्लेट को उद्भासित करने के बाद उसपर डेवलप करनेवाली विशिष्ट स्याही का लेप कर देते हैं। डेवलप करनेवाली स्याही के दो कार्य हैं : (१) छपाई के क्षेत्रों को स्याही ग्रहणशील बनाने के लिए क्षेत्रों पर चिकनी फिल्म तैयार करना और (२) छपाई के क्षेत्रों को डेवलप करने के बाद स्पष्ट बनाना, जिससे उसकी त्रुटियों को दूर करने में आसानी हो सके।

अब प्लेट प्रतिबिंब को दृश्य बनाने, अर्थात् डेवलप करने, की स्थिति में है। डेवलप करने की प्रचलित विधि प्लेट को सादे, या अल्पक्षारीय (सोडियम बाइकार्बोनेट की मिलावट से) पानी में लगभग दो मिनट डुबोकर पानी के अंदर ही कच्ची रूई के गुच्छे से रगड़ना है।

मशीन से छापने के लिए ऐल्बूमेन प्लेटों का निर्माण - निक्षारण (etching) से पहले प्रतिबिंब के रक्षार्थ प्लेट का उपचार लगभग सभी छपाई के प्रेसों में किया जाता है। इसमें : (१) प्लेट पर हल्का गोंद लगाकर सुखाना, (२) प्लेट को गीला करके २५ प्रतिशत पुन: अंतरण (retransfer) स्याहीयुक्त काली लिथोस्याही और नैप रोलर (nap roller) द्वारा प्लेट को बेलना, (३) प्लेट पर गोंद लगाकर पंखों द्वारा सुखाना, (४) प्लेट को पुन: पानी के साथ डेवलप करना और काली स्याही से बेलकर फ्रेंच खड़िया से पोंछना, (५) प्यूमिस पेंसिल या कड़े रबर से अवांछित धब्बों और चिह्नों को मिटाना, (६) निक्षारण विलयन से प्लेट को भली भाँति निक्षारित करना और (७) प्लेट को धोना और (८) अंतिम बार विटमेन विलयन से धोना तथा सुखाना सम्मिलित हैं। इसके बाद प्लेट को छपने के लिए मशीन पर चढ़ा दिया जाता है।

धनात्मक उत्क्रमण (गोंदविधि)

गहरा निक्षारण प्रक्रम - धनात्मक उत्क्रमण प्रक्रमों को दो वर्गों में विभाजित किया जा सकता है : (अ) ये प्रक्रम, जिनमें डेवलप करनेवाले विशिष्ट विलयनों (अल्प जलांश के) का उपयोग होता है और जिसमें बाद में जलमुक्त स्पिरिट द्वारा जल को हटाया जाता है। इसके उदाहरण हैं, गोंद उत्क्रमण और वोल्ट कोर्ट (Bolt Court) प्रक्रम, (व) वे प्रक्रम, जिनमें स्टेंसिल प्रतिबिंब को डेवलप करने में बहता पानी काम आ सकता है, जैसे सरेस, या वानडाइक (Vandyke) प्रक्रम।

काँच के पारदर्शी चित्रों के अतिरिक्त कागजी मूल सबसे संतोषप्रद हैं। पारगत (transmitted) प्रकाश द्वारा देखने पर उन पर काम ठोस और घना जान पड़ता है। कोडाटीसि (Kodateace) आदि अन्य मैट (Matt) सतह वाले पारदर्शी पदार्थ भी काफी अच्छे परिणाम देते हैं।

गोंद उत्क्रमण में धातु के प्लेट को बबूल का गोंद, अमोनियम बाइक्रोमेट, द्रव अमोनिया और पानी के विलयन से विलेपित किया जाता है। ऊपर वर्णित विधि से इसे एक पॉज़िटिव के नीचे उद्भासित किया जाता है। उद्भासित प्लेट के लेप के मृदुभाग को हटाने के लिए प्लेट को लैक्टिक अम्ल, या अन्य किसी कार्बनिक अम्लयुक्त सांद्र कैल्सियम क्लोराइड विलयन से डेवलप किया जाता है।

इस रीति से प्लेट के मुद्रणीय क्षेत्र उभड़ जाते हैं। इनको एक ऐसे विलयन से हल्का निक्षारित किया जाता है, जो धातु को प्रभावित करता है, परंतु हल्के कठोरकृत स्टेंसिलों को अछूता छोड़ देता है। निक्षारक विलयन को निर्जल मेथिलित स्पिरिट से धोकर साफ कर लेते हैं। लिथोग्रैफिक आधार (लाख या सेलुलोस) और डेवलप करनेवाली स्याही को क्रम से लगाते हैं। प्रकाश से कठोरीकृत स्टेंसिल दूर करने के लिए प्लेट को पानी के अंदर मुलायम व्रश से रगड़ते हैं। 'निक्षार' विलयन से निक्षारित करने के बाद प्लेट पर गोंद लगाकर सुखाते हैं और तब यह प्लेट मशीन पर छपाई करने लायक हो जाता है।

धनात्मक उत्क्रमण (सरेस विधि) या वानडाइक प्रक्रम - सूक्ष्मग्राहीकृत विलयनों के नुस्खे में मछली सरेस (fish glue), अमोनियम डाइक्रोमेट और पानी होता है। ऊपर वर्णित रीति से तैयार करके सूक्ष्म दानेदार प्लेट पर लेप चढ़ाते हैं। उद्भासन के बाद ठंडे पानी में प्लेट को डेवलप करते हैं, जिससे अनुद्भासित सरेस धुल जाता है। इसके बाद प्लेट को मेथिल बैंगनी रंजक विलयन के कुंड में अभिरंजित (stained) करते हैं, जिससे ऋणात्मक प्रतिबिंब प्रिंट दिखाई पड़े। प्लेट को सांद्र प्रतिबिंबकारी स्याही से रगड़ते हैं। प्लेट को अति तनु हाइड्रोक्लोरिक अम्ल के विलयन के कुंड में डुबोया भी जा सकता है। इसके बाद ताजे अंतरित प्लेट के समान ही इसका उपचार करते हैं। उसपर रोलर चलाते हैं, खड़िया से रगड़ते हैं, गोंद लगाते हैं और सुखाकर छापने के लिए तैयार करते हैं।

धातु प्लेट को दानेदार बनाना - सभी धातु प्लेटों को दानेदार बनाना पड़ता है, या उनके पृष्ठ को मैट (matt) करना पड़ता है, जिससे धातु के अमुद्रणीय क्षेत्र में आर्द्रता बनी रहे और वह क्षेत्र छपाई के समय स्याही को विकर्षित कर सके।

धातु को दानेदार बनाने का काम काँच, जस्ता, इस्पात, संगमरमर और रेत, या कारबोरंडम चूर्ण और पर्याप्त पानी द्वारा एक मशीन में होता है, जिसमें उत्केंद्र (eccentric) आधार पर ट्रे (tray) को वर्तुलगति (circular motion) देने की व्यवस्था होती है। प्रत्येक परिक्रमण में जो दोलन होता है, वह ट्रे में स्थित संगमरमर के पथ को प्रभावित करता है। इस क्रिया से धातु प्लेटों पर दाने या मैट पृष्ठ उत्पन्न हो जाते हैं, जिससे धातु प्लेट के अप्रतिबिंब भाग में छपाई के समय आर्द्रता बनी रहती है।

प्रूफ़ निकालना - प्लेटों की जाँच के लिए धातु प्लेटों से प्रूफ़ उठाते हैं। प्लेट को प्रूफ़ निकालने के प्रेस पर कस देते हैं और पानी से धोने के बाद उसपर लिथोग्रैफिक स्याही रोलर से फेर देते हैं। प्रूफ़ पूर्णतया रंगीन उठाए जाते हैं। एतदर्थ पहले काली छपाई की जाती है और फिर अन्य धातु प्लेटों की सहायता से अध्यारोपित किया जाता है। प्रूफ को बारीकी से जाँच कर छोटे सुधार निक्षार छड़ी (etchstick) से और लिथोलेखन स्याही से आरेखित किए जाते हैं। बड़े सुधार प्राय: नेगेटिव या पोजिटिव पर किए जाते हैं या नए प्लेट तैयार किए जाते हैं।

छपाई - लिथोछपाई का आरंभ लिथोप्रस्तर द्वारा चपटे आधार के लिथोछपाई प्रेस पर हुआ था। रूडीमान जॉनस्टन ने रोटरी मशीन का अभिकल्पन करके १८५३ ई. में एडिनबरा में इसका प्रयोग किया। १९०५ ई. में इरा रूबेल नामक अमरीकी लिथोमुद्रक ने ऑफ़सेट छपाई मशीन का अभिकल्पन किया।

आधुनिक ऑफसेट मशीन में निम्नलिखित प्रधान भाग होते हैं : फ्रेम, सिलिंडर, स्याही फेरनेवाले रोलर, गीला करनेवाले रोलर, भरण और निकास प्रणाली। एकरंगी मशीन में तीन सिलिंडर होते हैं : एक धातु प्लेट को धारण करने के लिए, दूसरा ऑफसेट रवर आवरण के लिए और तीसरा छपाई के लिए। छपाई का कागज धातु प्लेट के सीधे संपर्क में नहीं आता, बल्कि रबर आवरण के संपर्क में आता है, जो धातु प्लेट से स्याही की छाप लेकर कागज स्थानांतरित करने में मध्यस्थ का काम करता है।

दो और चार रंगों की छपाई करनेवाली मशीन, जिसमें सभी प्रकार के स्वचालित नियंत्रक होते हैं, प्रति घंटा औसतन लगभग ६,००० प्रति छापती है। इस छपाई में शीघ्रता तथा समस्तापन के साथ अच्छेपन में भी सुधार हुआ है।

आधुनिक विकास - प्रकाश लिथोमुद्रण एक अभिनव कला है, जिसने छपाई उद्योग में बड़ी तेजी से प्रगति की है।

नेगेटिवों के वर्ण पृथक्करण की प्रच्छादन (masking) विधि - इस तकनीक का उपयोग मुख्यतया नेगेटिवों के पृथक्करण में होता है। इस तकनीक के विकास के पूर्व वर्ण सुधार का सारा काम हाथ से फोटो अनुशोधन (retouch) द्वारा होता था। प्रच्छादन वर्ण सुधार की फोटो तकनीक के लिए व्यवहृत शब्द है। यह तकनीक न तो नया है और न मानक है।

प्रच्छादकों के उपयोग की तीन प्रमुख विधियाँ हैं : (१) प्रक्षेप द्वारा, (२) संपर्क में और (३) कैमरे के पृथक भाग में। चौथा वर्ग समग्र (integral) प्रच्छादन का है, जो कलात्मक है।

संक्षेप में, प्रच्छादन एक नेगेटिव या पॉजिटिव प्रतिबिंब है, जिसे एक दूसरे नेगेटिव या पॉजिटिव के साथ किसी तीसरे नेगेटिव या पॉजिटिव को उद्भासित करते समय प्रकाश की मात्रा को संशोधित करने के लिए उपयोग में लाया जाता है। प्रच्छादन विधि का उपयोग वर्णों, या टोनों को सुधारने, या पृष्ठभूमि को हटाने आदि के लिए किया जा सकता है। फोटो प्रच्छादन में विस्तरांकन (details) की हानि नहीं होती। उत्तम स्याही और कुशल प्रच्छादन द्वारा हाथ के न्यूनतम काम से बढ़िया गुण उत्पन्न किया जा सकता है। औसत अच्छी स्याही और औसत सावधानी से ही प्राय: हाथ का काम ५० प्रतिशत कम हो जाता है।

फोटोकंपोज़िंग मशीन (Photocomposing Machine) - फोटोकंपोज़िंग मशीन और फोटो यांत्रिक टाइपयोजी (type-setting) मशीन तैयार हो चुकी है। यह मशीन विभिन्न आकार के टाइप फलकों (type face) और कंपोज करने की व्यवस्था से सज्जित होती है और सजावट के मैटरों को फोटोनेगेटिवों पर छाप सकती है। इस उपस्कर में फलकों के फोटो प्रतिबिंब का उपयोग होने के कारण यथार्थ टाइपों का उपयोग, फर्मा कसना आदि अनेक झंझटों से मुक्ति मिल जाती है। इस प्रकार यह आत्मनिर्भरता का मार्ग प्रशस्त करता है और टाइपलेखन (typography) से मुक्ति दिलाता है।

द्विधातुक छपाई प्लेट - द्विधातुक छपाई प्लेटों का उपयोग, अर्थात् मुद्रणीय और अमुद्रणीय भागों के लिए अलग अलग प्लेट तैयार करने की विधि, लिथोछपाई में प्रगति का सबसे बड़ा कदम है। इस प्रक्रम के अंतर्गत जलग्राही, अनुपचायक (non-oxidising) धातु प्लेट (जैसे क्रोमियम या अविकारी इस्पात) पर प्रकाशसंवेदी फिल्म का पतला लेप चढ़ाना और पॉज़िटिव द्वारा उदभासित करना, डेवलप करना और धातु प्लेट के सुरक्षित अकठोरीकृत क्षेत्रों को ऐसे विलयन से उपचरित करना जो उनपर रसायनिक: रीति से स्याहीग्राही धातु को (जो अक्सर ताँबा होती है) निक्षेपित कर दे, सम्मिलित है।

अन्य विधियों में प्रतिबिंब और अप्रतिबिंब क्षेत्रों में वरणात्मक विद्युत् निक्षेप (electrodeposition) होता है। इसके लिए मुद्रणीय क्षेत्रों के लिए पीतल और अमुद्रणीय क्षेत्रों के लिए निकल धातु का उपयोग होता है।

अधिकांश यूरोपीय देशों में आजकल ऐलर प्रक्रम चल पड़ा है, जिसमें मुद्रणीय क्षेत्र के रूप में अविकारी इस्पात की प्लेट पर विद्युत निक्षेपित ताँबा अल्प उभार में होता है। एक प्लेट से लगभग ४-५ लाख प्रतियाँ छापी जा सकती हैं। प्लेट तैयार करने में व्यय बहुत होता है और एक बार प्लेट के बन जाने पर फिर उसमें कोई परिवर्तन या परिवर्धन संभव नहीं होता।

शुष्क ऑफसेट प्रक्रम - अमरीका और कुछ यूरोपीय देशों में नोट आदि की छपाई के लिए शुष्क ऑफसेट में कच्चे रंग, या जलविलेय स्याही, का उपयोग बहुत पहले से होता रहा है। इसमें छपाई प्राय: जस्ते, या मैग्नीशियम की मिश्रधातु से की जाती है। मैग्नीशियम का उपयोग अधिक प्रचलित है, क्योंकि इससे निक्षारण में शीघ्रता होती है और मशीन पर उसका जीवनकाल अधिक होता है।

डॉन, या आधुनिक निक्षार प्रक्रम, का उपयोग समाचार प्रकाशन में अधिक होता है। इसमें मुद्रणीय पृष्ठ के रूप में मैग्नीशियम का उपयोग होता है, जिससे निक्षारण क्रिया सीधे होती है और रेखाओं तथा बिंदुओं के पार्श्वों को सुरक्षित नहीं करना पड़ता। चेको फ़ोटो प्रॉडक्ट्स कंपनी, ग्लेनकोव, न्यूयार्क, ने एक नवीन निक्षार मशीन का अभिकल्पन किया है। इसमें १७ की प्लेट ०.०६० तक या कुछ अधिक निक्षार करने में केवल ३-४ मिनट समय लगता है।

इस विधि की मुख्य त्रुटियाँ ये हैं : इसमें तैयारियाँ बहुत करनी पड़ती है और सूक्ष्म हाफटोन का, विशेषत: विनेटो (vignettes) का प्रतिधारण (retention), बड़ा कठिन होता है। हर काल के लिए एक नया प्लेट तैयार करना पड़ता है, जिससे खर्च बहुत बढ़ जाता है, परंतु कुछ लागत आफसेट द्विधातुक प्रक्रम की तुलना में अधिक नहीं बढ़ती। ( बिमलचंद्र दत्त)