लिटन, लॉर्ड लॉर्ड लिटन अप्रैल, १८७६ में वाइसरॉय होकर भारत आया और सन् १८८० तक इस पद पर काम करता रहा। लिटन के वाइसरॉय नियक्त होने पर बहुत लोगों को आश्चर्य हो रहा था क्योंकि उसे शासन का कोई विशेष अनुभव नहीं था, यद्यपि अपनी नीतिज्ञता का पचिय वह कई बार दे चुका था। वह अंग्रेजी भाषा का अच्छा विद्वान् था। इंग्लैंड के प्रधान मंत्री बीकंसफ़ील्ड ने लिटन को मध्य एशिया की जटिल समस्या को सुलझाने के लिए विशेष रूप से भारत भेजा था। सन् १८७७ में लिटन ने दिल्ली में एक विशाल दरबार किया जिसमें विक्टोरिया को 'भारत की साम्राज्ञी' घोषित किया गया। इसी समय दक्षिण में भीषण अकाल पड़ रहा था लिसमें लाखों व्यक्ति भूखों मर गए। पश्चिमोत्तर प्रांत तथा मध्य प्रांत में भी खाद्यान्न की कमी थी। भारतीयों के इस दारुण दु:ख को दूर करने के लिए लिटन ने कुछ प्रयत्न अवश्य किया पर ऐसे कष्ट के समय दिल्ली दरबार में लाखों रुपया उड़ाना तथा अन्नंद मनाना लोगों को पंसद नहीं आया।
इसके अतिरिक्त, सरकार की नीति से भारतीय जनता असंतुष्ट थी। भारतीय समाचापत्रों में सरकार की कटु आलोचना हो रही थी। सन् १८७८ में लिटन ने वर्नाक्युलर-प्रेस-ऐक्ट पास कर दिया जिसके द्वारा देशी भाषाओं में प्रकाशित होनेवाले समाचारपत्रों पर कुछ प्रतिबंध लगा दिए गए और उनकी स्वतंत्रता छिन गई। मध्य एशिया की समस्या बजाय सुलझने के और उलझ गई। लिटन ने जिस नीति से काम लिया उसका फल हुआ सन् १८७८ का द्वितीय अफ़ग़्नाा युद्ध। युद्ध के फलस्वरूप अफ़गानिस्तान छिन्न भिन्न हो गया। लिटन की अफ़गान नीति की हर तरफ से तीव्र आलोचना की गई। उसका मुख्य आलोचक ग्लैड्सटन था जो बाद में प्रधान मंत्री हो गया, तभी लिटन को अपना पद छोड़ना पड़ा। (मिथिलो चंद्र पांड्या)