लिग्नाइट (Lignite) निकृष्ट वर्ग का पत्थर कोयला है। इसका रंग कत्थई होता है तथा आपेक्षिक घनत्व भी पत्थर कोयला से कम होता है। यह वानस्पतिक ऊतक (plant tissue) के रूपांतरण की प्रारंभिक अवस्था को प्रदर्शित करता है। लाखों वर्ष पूर्व वानस्पतिक विकास की दर संभवत: अधिक द्रुत थी। वानस्पतिक पदार्थों का संचयन तथा उनके जीवरसायनिक क्षय (biochemical decay) से पीट (peat) की रचना हुई, जो गलित काष्ठ (rotten wood) की भाँति होता है। यह प्रथम अवस्था थी। संभवत: द्वितीय अवस्था में मिट्टियों आदि के, जो युगों तक पीट के ऊपर अवसादित होती रहीं, दबाव ने जीवाणुओं की क्रियाओं को समाप्त कर दिया और पीट के पदार्थ को अधिक सघन तथा जलरहित एक लिग्नाइट में परिवर्तित कर दिया। जब लिग्नाइट पर अधिक दबाव विशेषत: क्षैतिज क्षेप (thrust) और भी बढ़ जाता है, तो लिग्नाइट अधिक सघन हो जाता है तथा इस प्रकार कोयले का जन्म होता है।

लिग्नाइट के प्राप्ति स्थान

गुडलूर (Cuddalore) तथा पांडिचेरी क्षेत्र (मद्रास) - पांडिचेरी तथा गूडलूर के बीच स्थित तटीय समतलों में लिग्नाइट मिला है, जिसका अन्वेषण सन् १८८४ में ही हो चुका था।

दक्षिण आर्काडु क्षेत्र - सन् १९३० में भूमिज्ञानियों का ध्यान नेवेली के लिग्नाइट की ओर गया। सन् १९४३-४६ के मध्य भारतीय भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण ने इस क्षेत्र में अनेक वेधन किए, जिनसे लगभग २३ वर्ग मील के क्षेत्र में लिग्नाइट के अस्तित्व की पुष्टि हुई। मद्रास प्रदेश में ईधंन तथा शक्ति के अभाव के कारण मद्रास की राज्य सरकार का ध्यान लिग्नाइट के विकास की ओर गया। सन् १९४९-५१ के मध्य और भी अनेक वेधन किए गए, जिनसे अनुमान लगा कि इस क्षेत्र में लिग्नाइट की मात्रा लगभग २०० करोड़ टन है तथा क्षेत्र का विस्तार लगभग १०० वर्ग मील में है। इस क्षेत्र के लगभग केंद्र में साढ़े पाँच वर्ग मील का क्षेत्र मिला है। यहाँ २० करोड़ टन के लगभग लिग्नाइट के खनन योग्य निक्षेप प्राप्त हुए हैं जिनपर अत्यंत सुगमता एवं पूर्ण आर्थिक तथा औद्योगिक दृष्टि से कार्य किया जा सकता है। लिग्नाइट स्तर की औसत मोटाई ५५ फुट है, जो १८० फुट की गहराई पर स्थित है।

नेवेली लिग्नाइट योजना - सन् १९५५ में इस योजना को पूर्ण रूपेण नवीन रूप दिया गया और केंद्रीय सरकार ने योजना के आर्थिक उत्तरदायित्व को अपने ऊपर ले लिया। मेसर्स पॉवेल डफरिन टेकनिकल सर्विसेज़ लिमिटेड से भारत सरकार ने नेवेली समायोजना के लिए अनेक सेवाएँ प्राप्त की। इस योजना के अंतर्गत प्रति वर्ष ३५ लाख टन लिग्नाइट का खनन किया जाएगा। लगभग श्टन कच्चे लिग्नाइट का तापीय मूल्य एक टन उत्तम कोयले के समान होता है। इस प्रकार नेवेली के वार्षिक उत्पादन का लक्ष्य १४ लाख टन उत्तम कोयले के समान होगा। ३५ लाख वार्षिक उत्पादन की दर के अनुसार इस क्षेत्र का संपूर्ण लिग्नाइट ५७ वर्ष में समाप्त हो जाएगा। अनेक और भी निक्षेप आर्थिक एवं वाणिज्य स्तर पर शोषित किए जा सकेंगे, ऐसी संभावना है। ढाई लाख किलोवाट प्रतिस्थापित क्षमता (installed capicity) का एक तापीय शक्ति स्टेशन भी यहाँ स्थापित किया जा रहा है, जिसके साथ एक 'पश्च निपीट टरबाइन संयंत्र' (back pressure turbine plant) का भी प्रतिस्थापन हो रहा है। खाद का एक विशाल संयंत्र, जो संपूर्ण खाद की मात्रा का उत्पादन करेगा और जिसमें केवल यूरिया के रूप में नाइट्रोजन आधेय (content) लगभग ७० हजार टन प्रति वर्ष होगा, स्थापित हो रहा है। यह यूरिया संयंत्र संभवत: विश्व का विशालतम संयंत्र होगा।

पलाना क्षेत्र बीकानेर (राजस्थान) - एक गहरे कत्थई वर्ण का रेज़िनी (resinous), काष्ठीय तथा पीटीय (peaty) लिग्नाइट बीकानेर के पलाना नामक स्थान में सन् १८९६ में ही पाया जा चुका था। पलाना के पश्चिम में लगभग २० मील की दूरी पर मघ नामक स्थान पर १०० फुट की गहराई में लिग्नाइट प्राप्त हुआ है। चनेरी के समीप तल से १८० फुट की गहराई पर एक अन्य स्तर पाया गया है। इस प्रकार कहा जा सकता है कि बीकानेर के लिग्नाइट स्रोत भी विचारणीय महत्व के हैं।

शाली गंगा तथा हंडवारा (कश्मीर) - कश्मीर की करेवा संरचनाओं में प्राप्त लिग्नाइट तृतीयक युग का है। रायथान तथा लन्यालान वेसिन के शाली गंगा क्षेत्र में लिग्नाइट की चालीस लाख टन मात्रा विद्यमान है। हंडवारा क्षेत्र में ३.२ करोड़ टन लिग्नाइट है, जिस पर सुगमता से कार्य किया जा सकता है। काश्मीर घाटी स्थित करेवा वेसिन के दक्षिण-पश्चिमी भाग में भी लिग्नाइट प्राप्त होने के संकेत मिले हैं। यह निम्न कोटि का लिग्नाइट है तथा अपेक्षाकृत अशुद्ध ईधंन है, जिसमें औसतन १५% आर्द्रता, २८% वाष्पशील पदार्थ (volatile matter), २७% कार्बन तथा ३०% राख होती है। (विद्यासागर दुबे)