ललित कला अकादमी राष्ट्रीय ललित कला अकादमी स्वतंत्र भारत में गठित एक स्वायत्त संस्था है जो ५ अगस्त १९५४ को भारत सरकार द्वारा स्थापित की गई। यह एक केंद्रीय संगठन है जो भारत सरकार द्वारा ललित कलाओं के क्षेत्र में कार्य करने के लिए स्थापित किया गया था, यथा मूर्तिकला, चित्रकला, ग्राफकला, गृहनिर्माणकला आदि। इसकी एक समान्य कौंसिल है जिसमें कई सभासद, एक कार्यकारी बोर्ड, एक वित्त समिति (फ़ाइनैन्स कमेटी) आदि हैं। इस कौंसिल में प्रमुख कलाकार, केंद्रीय सरकार के तथा विभिन्न-राज्यों के प्रतिनिधि और कलाक्षेत्र के प्रमुख व्यक्ति है। अकादमी के प्रति दिन का कार्यक्रम कार्यकारिणी समिति के मंत्री और सामान्य कौंसिल के अन्य उत्तरदायी लोगों द्वारा संचालित होता है।
ललित कला अकादमी में विभिन्न प्रकार के कार्यक्रम होते हैं जिन्हें हम प्रमुख रूप से निम्नलिखित शीर्षकों के अंतर्गत विभक्त कर सकते हैं -
(१)�� प्रदर्शनी।
(२)�� प्रकाशन संबंधी कार्य।
(३)�� निरीक्षण (सर्वे), सेमीनार (विचार गोष्ठी), दीवारों पर चित्र बनाने की कला का अनुकरण।
(४)�� देशीय कला संगठनों और प्रांतीय अकादमियों के समन्वित कार्यक्रम को प्रोत्साहन देना।
(५)�� विदेशों से संपर्कस्थापन तथा छात्रों एवं कलाकारों का आदान प्रदान।
प्रदर्शनी कार्यक्रम के अंतर्गत राष्ट्रीय कला प्रदर्शनी और विदेशों में भारतीय कला प्रदर्शनी दोनों ही आते हैं तथा सामयिक और प्रासंगिक दोनों ही की व्यवस्था की जाती है।
राष्ट्रीय कला प्रदर्शनी प्रति वर्ष समकालीन भारतीय कला की श्रेष्ठ प्रतिनिध्यात्मक कृतियों का चयन प्रस्तुत करती है। प्रथम राष्ट्रीय कला प्रदर्शनी मार्च १९५५ में दिल्ली में की गई और दसवीं प्रदर्शनी १९६४ में। एक एक हजार रुपए के दस इनाम श्रेष्ठ सहायकों को प्रति वर्ष अकादमी देती है।
विदेशों में होनेवाली भारतीय कला प्रदर्शनी के कार्यक्रमों का द्विमुखी दृष्टिकोण है। पहला, चित्रकला, मूर्तिकला और कला के अन्य पक्षों के मुख्य विदेशी कलाकेंद्रों के श्रेष्ठ और चुने हुए सामयिक संग्रहों को प्रस्तुत करना।
विदेशी कला प्रदर्शनी विभिन्न प्रदर्शनियों में भाग लेने और हमारे कलाकारों तथा अकुशल सामान्य कलाकारों को संपूर्ण संसार की श्रेष्ठ कलाओं से संपर्क स्थापित करने का अवसर प्रदान करती है।
अकादमी का प्रकाशन संबंधी कार्यक्रम दो स्तरों पर होता है - (१) प्राचीन भारतीय कला का प्रकाशन, २. समकालीन भारतीय कला का प्रकाशन।
भारतीय कला की ललित कला ग्रंथमाला के अंतर्गत अनेक छोटी पुस्तकें और लेख भारतीय चित्रकला और मूर्तिकला के प्रमुख स्कूलों से प्रकाशित होते हैं। 'ललित कला' नामक एक पत्रिका, जो भारतीय कला, पुरातन वस्तुओं और पूर्वदेशीय कला के कुछ पत्रों से संबंधित है, वर्ष में दो बार प्रकाशित होती है।
ललित कला ग्रंथमाला की समकालीन कला के लेखों में प्रख्यात अभ्यासरत कलाकारों की चर्चा होती है। एक और पत्रिका 'समकालीन ललित कला' वर्ष में दो बार प्रकाशित होती है। ये सभी प्रकाशन पूर्णत: सचित्र और इस प्रकार के हैं कि विद्वान् तथा सामान्य व्यक्ति दोनों को ही आकर्षित करते हैं।
प्रतिलिपि कार्यक्रम के अंतर्गत संपूर्ण देश की प्रमुख दीवारों पर चित्र खींचने की विधि की सच्ची प्रतिलिपि आती है। उनमें से कुछ बहुत दिनों तक स्थायी नहीं रहतीं। जो युक्तियाँ पूरी की जा चुकी है वे निम्नलिखित हैं -
(१)�� वादामी फ्रे स्कोज (भित्तिचित्र खींचने की विधि) डेकन।
(२)�� कुलु महल के भीत संबंधी चित्र (हिमाचल प्रदेश)
(३)�� सित्तन्न वासल भित्तिचित्र (दक्षिण भारत)
(४)�� ्व्राजराज मंदिर के भित्तिचित्र (पंजाब)
(५)�� अंबर और वेरत के भित्तिचित्र (राजस्थान)
(६)�� बाघ की गुफाओं के चित्र (मध्यप्रदेश)।
अकादमी ने कलाकारों के लिए शिविरों का भी आयोजन किया है -
(१)�� मूर्तिकला शिविर (१९६२) मकराना, राजस्थान।
(२)�� चित्रकार शिविर (१९६४, त्रिवेंद्रम)
ललित कला अकादमी के ३० परिपूरक स्वीकृत कला संगठन संपूर्ण देश में हैं जो कि अकादमी के क्रियाकलापों से घनिष्ठ रूप से संबंधित है, विशेष रूप से प्रदर्शनी कार्यक्रमों से। इसके अतिरिक्त १२ राज्य अकादमियाँ हैं जो केंद्रीय अकादमी की सहायक और सहकारी हैं। अकादमी के बजट में देशी और प्रांतीय अकादमी के कार्यों को प्रोत्साहित करने के लिए अनुदान की व्यवस्था है।
ललित कला अकादमी ने सर्वश्री नंदलाल बोस, जामिनी राय, वेंकटप्पा, डी.पी. राय चौधरी, वी.पी. करमरकर, एस.एल. हलदार, रायकृष्ण दास, ओ.सी. गांगुली आदि को भारतीय कला की उन्नति के लिए, उनके मौलिक योगदान को ध्यान में रखकर, सभासद के रूप में चुना है। (एम.ए.कृष्णन)