लक्ष्मण (१) सुमित्रा से उत्पन्न दशरथ के पुत्र जो शत्रुघ्न के ज्येष्ठ सहोदर तथा उर्मिला के पति थे। ये शेषनाग के अवतार माने जाते हैं। वनवासकाल में राम और सीता के साथ रहकर जिस अटूट भक्ति और सेवाभावना का इन्होंने परिचय दिया वह श्रद्धा का अन्ततम उदाहरण है। राज्य, परिवार और जीवन के सभी सुखभोगों को ठुकराकर तपस्वी के वेष में राम के आज्ञाकारी अनुचर तथा सेवक के रूप में लक्ष्मण का चरित्र बड़ा ही रोमांचकारी है। इसीलिए यह राम को अत्यंत प्रिय थे। लक्ष्मण इंद्रियजित् और निद्राजित् थे तथा बारह वर्ष तक अनाहार रहकर ये राम की सेवा में निमग्न रहे। इन्होंने वनवासकाल में राम के साथ अनेक राक्षसों से युद्ध किया। राम की आज्ञा से शूर्पणखा के नाक कान काटे तथा वैदेहीहरण से क्लांत राम की विरहदशा में ये उनके एकमात्र सहायक बने। लंका के युद्ध में इन्होंने मेघनाद के अतिरिक्त विरूपाक्ष, अतिकाय आदि राक्षसों का वध किया। रावण से युद्ध करते समय (तुलसी के अनुसार मेघनाथ से युद्ध करते समय) अमोघ शक्ति वाण से मूर्च्छित होने पर सुषेण और हनुमान की सहायता से संजीवनी द्वारा इनके प्राण बचाए जा सके। लक्ष्मण अत्यंत तेजस्वी, क्रोधी और परम पराक्रमी वीर पुरुष थे। राम के प्रति इनकी अनन्य भक्ति और आदर्श सेवाभावना का उल्लेख गोस्वामी तुलसीदास ने स्वकृत रामचरितमानस में बारंबार किया है। वाल्मीकि रामायण के अनुसार दुर्वासा के शापभय से तथा राम की प्रतिज्ञा के निर्वाहार्थ इन्होंने सरयू तट पर योगक्रिया द्वारा प्राणत्याग किया था। उर्मिला से इन्हें चंद्रकेतु, और अंगद नामक दो पुत्र हुए थे।
(२) दुर्योधन का पुत्र, कौरव सेना का सारथी जो अभिमन्यु द्वारा युद्धक्षेत्र में मारा गया था। (रामज्ञा द्विवेदी)