रोरिक निकोलाई कांस्तांतिनोविच (Roerich Nikolai Konstantinovich, १८७४-१९४७) इस कलाकार का जन्म रूस में पिट्सवर्ग में हुआ। अंत तक वे भारत में कुलु घाटी पर ही रहे लेकिन उनके बहुत से चित्रों का म्युजियम न्यूयार्क में है। यह कलाकार विचार और कृति से किसी राष्ट्रविशेष का न होकर सारे विश्व का है। इन्हें नोबल पुरस्कार प्राप्त होने की संभावना की चर्चा भी कुछ दिन चली थी।

शुरू में इन्होंने इतिहास-पूर्व कालीन जीवन का तथा विकिंम्स की यात्रा का चित्रांकन कर प्रतिष्ठा प्राप्त की। यथार्थवादी शैली से शुरुआत कर उसमें बाइजेंटाईन और पूर्वीय चित्रशैली के मेल से उन्होंने अपनी स्वतंत्र शैली का निर्माण किया। मास्को के कझान रेलवे स्टेशन की भित्ति पर अंकित उनके पूर्वकाल के चित्रों में रूसी और तार्तरी शैली का प्रभाव साफ नजर आता है। वे रूसी क्रांति के बाद लंदन पहुँचे। वहाँ से सन् १९१७ में अमेरिका गए और बाद में लौटकर कुलु घाटी में बस गए। दक्षिण रूस और मध्य एशिया के सारे भौगोलिक पर्वतमय प्रदेशों का सफर करते हुए उन्होंने विशाल चित्रों की निर्मिति की। हिमालय के चित्र इनसे अधिक किसी दूसरे चित्रकार ने नहीं बनाए। उन्हें साहित्य और संगीत से समान रूप से प्रेम रहा, जिसे दर्शानेवाली कई घटनाएँ हैं। इनके रंगों में आध्यात्मिक भावों का प्रभाव - निर्माण तथा सम्मानपूर्ण आलंकारिक चित्रण आदि विशेषताएँ हैं। लोबरी आदि कला गैलरियों में इनके चित्रों को सम्मानपूर्ण स्थान दिया जाता था। वे स्वयं अच्छे लेखक भी रहे। सन् १९४७ में वे हिमालय की गोद में अमर निद्रा में लीन हो गए। (भाऊ समर्थ)