रोमन काथलिक चर्च ईसा ने अपने भावी अनुयायियों की शिक्षा दीक्षा के लिए एक चर्च की स्थापना की थी और संत पीटर को इसका अध्यक्ष नियत किया था (दे. पीटर, संत)। संत पीटर का देहांत रोम में हुआ था जिससे प्रारंभ ही से रोम के बिशप को चर्च का परमाध्यक्ष माना जाने लगा। अनेक कारणों से इस चर्च की एकता अक्षुण्ण नहीं रह सकी (दे. चर्च का इतिहास)। पहले प्राच्य चर्च रोम से अलग हो गए (दे. प्राच्य चर्च)। बाद में प्रोटेस्टैंट धर्म का उदय हुआ जिसके फलस्वरूप पाश्चात्य चर्च के एक महत्वपूर्ण अंश ने रोम के बिशप का अधिकार अस्वीकार कर दिया (दे. प्रोटेस्टैंट धर्म)। यह सब होते हुए भी आजकल विश्व भर के ईसाइयों के आधे से कुछ अधिक लोग रोमन काथलिक चर्च के सदस्य हैं।
यह चर्च रोमन कहा जाता है क्योंकि रोम के वैटिकन नगर से इसका संचालन होता है (दे. वैटिकन)। काथलिक का मूल अर्थ व्यापक है। काथलिक चर्च का दावा है कि वह युगयुगांतर तक अर्थात् 'सब समय' 'सभी देशों' के मनुष्यों के लिए खुला रहता है और ईसा द्वारा प्रकट की गई 'सभी' धार्मिक सच्चाइयाँ सिखलाता है। इन धर्मसिद्धांतों का सिंहावलोकन अन्यत्र दिया गया है (दे. ईसाई धर्म)।
काथलिक चर्च का संगठन सुदृढ़ और केंद्रीभूत है। इसके परमाध्यक्ष रोम के बिशप हैं जो संत पीटर के उत्तराधिकारी माने जाते हैं। (दे. पोप)। जहाँ कहीं भी काथलिक ईसाइयों का कोई समुदाय है, वहाँ उनके आध्यात्मिक संचालन के लिए रोम की ओर से अथवा रोम के अनुमोदन से एक बिशप की नियुक्ति की जाती है (दे. बिशप)। बिशप की अधीनता में पुरोहित विभिन्न स्थानों पर रहकर ईसाइयों को उपदेश दिया करते हैं और संस्कार प्रदान करते हैं (दे. पुरोहित)।
रोम में अनेक स्थायी समितियाँ और आयोग हैं जो कार्डिनलों की अध्यक्षता में समस्त रोमन काथलिक चर्च के संचालन तथा प्रशासन के लिए पोप की सहायता करते हैं (दे. कार्डिनल)। (कामिल बुल्के)