रोड्स, सिसिल जॉन रोड्स एक आंग्ल साम्राज्यवादी राजनीतिज्ञ था। इसका जन्म ५ जुलाई, १८५३, को हरुर्टशायर के बिशप स्टौर्टफोर्ट स्थान पर हुआ। १६ वर्ष की अवस्था में उसका स्वास्थ्य अधिक खराब होने लगा। १८७० में वह अपने बड़े भाई हर्बर्ट के पास नेटाल चला गया। उसी वर्ष किंबरले के मैदान में माणिक्य की खानि का पता लगा। एक वर्ष में ही वहाँ अपने भाई के साथ काम करते हुए वह एक सफल खनक बन गया। वहाँ की शुष्क जलवायु में उसका स्वास्थ्य भी सुधरने लगा। १९ वर्ष की अवस्था में वह पूर्णतया स्वस्य हो गया। इधर, परिश्रमी होने के कारण, वह अल्पावस्था में ही आर्थिक दृष्टि से स्वावलंबी बन गया। स्वास्थ्य और धन दोनों ने मानो उसकी उन्नति के द्वार खोल दिए।

इसके बाद आठ मास तक उसने नेटाल का भ्रमण किया, जिससे उसे काफी लाभ हुआ। वहाँ की प्रभूत कृषि और खनिज संपदा ने उसको बहुत आकर्षित किया। तभी उसके मन में विचार उत्पन्न हुआ कि क्यों न ब्रिटेन ही दक्षिण अफ्रीका के शासन का एकाधिकारी बन जाए। इसी उद्देश्य की पूर्ति के लिए उसने अपना भावी जीवन समर्पित कर दिया।

जब वह २२ वर्ष का था, तभी उसने एक रिक्थपत्र लिखा। उसमें उसने लिखा था कि दक्षिण अफ्रीका में ब्रिटिश साम्राज्य की शक्ति को बढ़ाकर सर्वोच्च आदर्शों को प्रयोगात्मक रूप दिया जाए। इसी पत्र में उसने यह प्रार्थना भी की कि 'मेरी मृत्यु के पश्चात् मेरी संपूर्ण संपत्ति इसी उद्देश्य की पूर्ति में लगाई जाए'। उसकी मृत्यु के पश्चात् उसकी संपत्ति आक्सफोर्ड विश्वविद्यालय को सौंप दी गई। (उसकी) इस संपत्ति में से ३०० पौंड प्रति वर्ष प्रति छात्रवृत्ति पर व्यय किया जाता है। वह छात्रवृत्ति ब्रिटेन के उपनिवेशों और अमरीका के छात्रों को प्रदान की जाती है।

अपने विचारों की इसी अवस्था में उसके मन में एक बार शिक्षा ग्रहण करने की तीव्र लालसा उत्पन्न हुई। वह आक्सफोर्ड गया भी पर स्वास्थ्य ने उसका साथ नहीं दिया। वह पुन: दक्षिण अफ्रीका लौट आया। अब उसकी रुचि व्यापार की ओर बढ़ी। अपने परिश्रमी तथा ईमानदार स्वभाव के कारण व्यापार क्षेत्र में उसने बहुत उन्नति की।

सन् १८८१ में वह केप विधान सभा का सदस्य निर्वाचित हुआ। इन्हीं दिनों ब्रिटिश और डच साम्राज्यों में दक्षिण अफ्रीका में अपना अपना प्रभुत्व स्थापित करने के लिए प्रतिद्वंद्विता चल रही थी। रोड्स ने विचार रखा कि दक्षिण अफ्रीका का एक संघ बनना चाहिए। वह स्थानीय अधिकारों का संरक्षक था। उसने आयरलैंड के संघर्ष के लिए दस हजार पौंड का धन इस शर्त पर दिया कि आयरलैंड यूनाइटेड किंगडम से अलग न हो और स्वराज्य भी स्थापित कर ले। केव विधान सभा के निर्मित होते ही उसने सीमा आयोग की नियुक्ति की माँग की। १८८४ में बैक्वाना लैंड का प्रतिनिहित उपआयुक्त नियुक्त हुआ। यह क्षेत्र दक्षिण अफ्रीका की कुंजी था। प्रश्न यह था कि यह कुंजी ब्रिटेन के अधिकार में होगी या ट्रांसवाल के। रोड्स के प्रयत्न से दक्षिणी वैक्यूना लैंड ब्रिटिश क्षेत्र बन गया। इसके बाद अगले ६ वर्षों में उसने रोडेशिया को ब्रिटिश साम्राज्य का एक प्रांत बना दिया।

१८९० में वह केप का प्रधान मंत्री बना। प्रधान मंत्री होने के बाद उसने प्रत्यक्ष रूप से दक्षिण अफ्रीका में ब्रिटिश और डच हितों को मिलाने की कोशिश की। उसका उदार हृदय चाहता था कि दक्षिण अफ्रीका वासी शांत, शिक्षित और योग्य बनें।

१८९६ में 'जेम्सन आक्रमण' की घटना के कारण उसे प्रधान मंत्री का पद त्यागना पड़ा। यह उसके पवित्रचरित्र होने का उदाहरण है कि उसने इस घटना का संपूर्ण उत्तरदायित्व अपने ऊपर लिया और तत्संबंधी समस्त परिणामों को स्वीकार किया।

मार्च, १८९६ में मटावाला विद्रोह हुआ जिसके दमन के लिए सेना की आवश्यकता हुई। इस समय ब्रिटेन युद्धों में व्यस्त था। विद्रोह दबाने के लिए उसने सेना भेजी। दूसरी ओर रोड्स ने अकेले ही शांतिमय उपायों द्वारा विद्रोह शांत करने का प्रयत्न किया। इस कार्य के लिए वह सेना से पृथक् हो गया तथा अकेले छह सप्ताह तक अलग डेरा डाले रहा। इतने समय में उसने वहाँ के मूल निवासियों को समझाया तथा उन्हें यह भी विश्वास दिलाया कि मैं शांति का संदेश लेकर आया हूँ। रोड्स के प्रस्ताव पर विचार करने के लिए उन लोगों ने अपनी परिषद् एकत्र की और रोड्स को अपना आशय अच्छी तरह प्रकट करने के लिए निरस्त्र होकर बुलाया। वह अपने तीन मित्रों सहित वहाँ भाग लेने के लिए गया। उन लोगों की शिकायतें सुनीं। उन्हें दूर करने का वायदा किया, साथ ही उन लोगों से भी ऐसा वचन लिया जिससे भविष्य में काई ऐसी घटना फिर न हो। इसके बाद उसने फिर स्पष्ट रूप से उनसे प्रश्न किया कि अब शांति होगी या युद्ध। परिषद् के मुखिया लोगों ने उत्तर दिया कि 'शांति होगी'। इस अंतिम दृश्य के विषय में उसने लिखा है कि यह मेरे जीवन की बड़ी महत्वपूर्ण घटना है। इससे प्रतीत होता था कि यदि हम शांति, सहयोग और सद्भावना के वातावरण का प्रसार करें तो निश्चय ही जीवन का सौंदर्य दिखाई दे सकता है।

१८९९ में दक्षिण अफ्रीकी युद्ध का प्रारंभ हुआ। रोड्स ने किंबरले में इस युद्ध में भाग लिया। इस स्थान पर जब उसने घेरा डाला था तब उसे बड़ी कठिनाइयों का सामना करना पड़ा। इन कठिनाइयों से संघर्ष करते करते उसका स्वास्थ्य गिरने लगा। वह विजय देखने से वंचित रह गया, क्योंकि इसके पूर्व ही २६ मार्च, १९०२ को म्यूज़िनबर्ग नामक स्थान पर उसका देहांत हो गया। (गिरिराज कािशेर गहराना)