रोजर्स, लेओनार्ड, सर (Rogers,
Leonard, Sir, सन् १८६८-१९६२) का जन्म इंग्लैंड के प्लिमथ
(
सन् १८८६ में मैट्रिकुलेशन परीक्षा में उत्तीर्ण होने के पश्चात्, आपने चिकित्साशास्त्र का अध्ययन प्रांरभ किया, जिसमें आपका ध्यान आंत्र रोगों पर विशेष रूप से आकृष्ट हुआ। आगे चलकर ये ही आपके अनुसंधान के विषय हुए। एम.आर.सी.पी., एल.आर.सी.पी. तथा एफ.आर.सी.एस. की उपाधियाँ प्राप्त करने के बाद सन् १८९३ में आप इंडियन मेडिकल सर्विस में नियुक्त हुए। राँची में आपने ज्वरों पर अनुसंधान आरंभ किया। यह कार्य बारह वर्ष तक चलता रहा। सन् १८९५ में आपने मलेरिया तथा रक्त के जमाव पर लेख प्रकाशित किए तथा सन् १८९६-९७ में असम में कालाजार संबंधी अन्वेषण किए।
सन् १९०४ से सन् १९२० तक आप कलकत्ता विश्वविद्यालय में रोगविज्ञान के प्रोफेसर रहे। इस काल में इन्होंने प्रवाहिका से संबंधित खोजें कीं तथा सन् १९१२ में एमेटिन (emetine) के रोगहर गुण का पता लगाया। आपकी चेष्टाओं से उष्णकटिबंधीय रोगों के लिए एक अस्पताल की स्थापना हुई। साँपों के विष, उष्णकटिबंधीय रोगों का महामारीविज्ञान तथा कुष्ठ और क्षय रोग की चिकित्सा आपके अन्वेषणों के अन्य विषय थे।
'हैजा और उसकी चिकित्सा', 'उष्णकटिबंध के आंत्र रोग', 'उष्णकटिबंध के ज्वर', तथा 'उष्णकटिबंधीय चिकित्सा में प्रगति' अंग्रेजी में आपकी लिखी पुस्तकें हैं। रॉयल कॉलेज ऑव फिज़ीशियंस तथा लंदन मेडिकल सोसायटी ने स्वर्णपदक प्रदान कर आपको सम्मानित किया तथा भारत की ब्रिटिश सरकार ने आपको सी.आई.ई. और के.सी.आई.ई. की उपाधियाँ प्रदान कीं। सन् १९१९ में आप इंडियन सायंस कांग्रेस के अध्यक्ष निर्वाचित हुए। इंडिया ऑफिस के मेडिकल बोर्ड के आप सदस्य और बाद में अध्यक्ष तथा रॉयल सोसायटी ऑव ट्रॉपिकल मेडिसिन के भी अध्यक्ष निर्वाचित हुए थे।श् (भगवानदास वर्मा)