रो, सर टॉमस (जन्म, १५८० ई.; मृत्यु, १६४४) मेगडेलन कालेज, आक्सफोर्ड, में इसकी शिक्षा हुई। अल्पावस्था में पिता की मृत्यु पर इसकी माता ने सर राबर्ट बर्कले से पुनर्विवाह किया। टॉमस रो रानी एलिज़ाबेथ का 'एस्क्वायर' नियुक्त हुआ। सन् १६०५ ई. में वह 'सर' की उपाधि से विभूषित हुआ। राजकुमार हेनरी के प्रोत्साहन से उसने गियाना की साहसिक समुद्रयात्रा संपन्न की (१६१०-१६११)। टैमवर्थ (Tamworth) क्षेत्र से निर्वाचित होकर वह पार्लिमेंट का सदस्य बना (१६१४)। २ फरवरी, १६१५ को इंग्लैंड के राजदूत के रूप में पंद्रह अनुयायियों के साथ टॉमस रो ने भारत के लिए प्रस्थान किया।

भारत पहुँचने पर टॉमस रो को प्रारंभ में अनेक कठिनाइयों का सामना करना पड़ा। अंतत:, अपने आकर्षक व्यक्तित्व, कुशल व्यवहार, कुशाग्र बुद्धि, कूटनीति तथा दृढ़ आचरण द्वारा सम्राट् जहाँगीर को प्रभावित कर, उसने अँगरेज व्यवसाइयों के लिए सूरत में फैक्टरी की स्थापना तथा व्यापार के संरक्षण की राजाज्ञा प्राप्त कर ली (सितंबर, १६१८)। टॉमस रो के ही सतत प्रयत्नों द्वारा मुगल दरबार में पुर्तगालियों के प्राबल्य का अंत हुआ तथा अँगरेजों को राजकीय सम्मान एवं आश्वासन प्राप्त हुआ। भारत में रहकर ही टॉमस रो ने फारस तथा लालसागर में अँगरेजी व्यवसाय की योजना भी निर्धारित की। भारत तथा मुगल दरबार संबंधी वृत्तांत के रूप में उसने बहुमूल्य ऐतिहासिक सामग्री प्रस्तुत की। १६१९ में इंग्लैंड लौट गया। १६२१ में तुर्की मे राजदूत नियुक्त किया गया। वहाँ भी उसने सफलता प्राप्त की। अंग्रेजी व्यापार का सुदृढ़ीकरण किया; पुर्तगाली प्रभाव का निराकरण किया, तथा पोलैंड और तुर्की में संधिस्थापन में सहायता प्रदान की। वहीं उसे एक यूनानी धर्माध्यक्ष द्वारा कोडेक्स अलेक्जेंड्रिनस (Codex Alexandrinus) की अलभ्य प्रति भेंट हुई, जो आज भी ब्रिटिश म्यूज़ियम की अमूल्य निधि है। जून, १६२९ में वह पोलैंड तथा स्वेडन के नरेशों में सामंजस्य स्थापित कराने में सफल हुआ। १६३० में वह 'चांसलर ऑव दि आर्डर ऑव द गार्टर' के पर पर विभूषित हुआ। तदनंतर उसने हैमवर्ग (Hamburg), रेटिसबोन (Ratisbon) तथा विएना में शांति कांग्रेस की बैठकों में इंग्लैंड का प्रतिनिधित्व किया। १६४० में टॉमस रो प्रिवी काउंसिल का सदस्य नियुक्त हुआ, तथा उसी वर्ष ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय के प्रतिनिधि के रूप में उसने पार्लिमेंट में पुन: पदार्पण किया। १६४३ में राजा तथा पार्लिमेंट के संघर्ष तथा अपने गिरते स्वास्थ्य के कारण उसने राजनीति से अवकाश ग्रहण कर लिया। टॉमस रो अपने समय के सबसे सफल और योग्य कूटनीतिज्ञों में तो था ही, चरित्रबल, सदाशयता, कर्तव्यनिष्ठा, सज्जनता तथा विद्याप्रेम में भी वह श्रेष्ठ था।

सं.ग्रं. - द एंबेसी ऑव सर टॉमस रो टु इंडिया, एडिटेड बाई विलियम फोस्टर। (राजेंद्र नागर)