रैमी (Rammie) रीआ, या रिहा, या चीनी घास एक प्रकार का पौधा है जो अर्टीकेसी (Urticaceae) कुल के बोमेरिया जीनस (Boehmeria Genera) के बोमेरिया निवीया (Boehmeria nivea) के नाम से ज्ञात है। इसके पत्ते नीचे की ओर हिमवत् सफेद होते हैं। पहले यह बोमेरिया टिनेसिसिमा (tenacissima) कहा जाता था जो उष्ण देशों में उपजता था। इसके पत्ते पतले और नीचे ऊपर दोनों ओर हरे होते थे। इन दोनों ही रूपों के लिए भारत में रीआ (असम में रिहा) नाम प्रचलित है।

बोमेरिया निवीया झाड़ीदार वर्षानुवर्षी पौधा होता है। जिसके पत्ते आकार में दंशरोम (Nettle) के पत्तों जैसे होते हैं। पत्तों के पृष्ठ पर मृदुरोम होते हैं, जो चाँदी जैसे चमकते हैं। इसके फूल छोटे एवं हरित भूरे रंग के होते हैं। यह चीन, फारमोसा, जापान और फिलीपीन में अनेक वर्षों से उगाया जा रहा है। अब तो संसार के प्राय: समस्त उष्ण देशों में यह उगाया जाता है। अमरीका में भी इसके उगाने की चेष्टाएँ हुई हैं। बीज से, या कलम से, या जड़ों के विभाजन से पौधा उगाया जाता है। यह तीन से आठ फुट तक ऊँचा होता है। प्रति वर्ष इसकी दो से लेकर चार फसलें तक उपजती हैं। सामान्यत: प्रति एकड़ चार टन के लगभग पैदावार होती है किंतु विशेष ध्यान देने पर इसे और अधिक बढ़ाया जा सकता है।

रैमी का रेशा - हरे पौधे में लगभग २.५ प्रतिशत रेशा रहता है। पौधे के पक जाने पर डंठलों को काट लेते हैं और पत्ते तथा टहनियों को तोड़ देने के बाद फीते की भाँति रेशे की परतें निकालते हैं। इन फीतों में रेशे के अतिरिक्त छाल और चिपकनेवाला पदार्थ (गोंद) रहता है। चीन में पौधों को सुखाने के पहले ही छाल और गोंद जितना निकल सकता है, निकाल लेते हैं। रेशों के सूख जाने पर उसे चीनी घास कहते हैं।

यह रेशा अन्य वानस्पतिक रेशों की अपेक्षा अधिक मजबूत होता है और चमक में रेशम को भी मात करता है। इसकी चमक मर्सरीकृत सूत जैसी होती है अर्थात् कृत्रिम रेशम से कुछ घटकर। यह रेशा वायु से प्रभावित नहीं होता, इसपर रंग भी सरलता से चढ़ जाता है और जल से प्राय: अप्रभावित ही रहता है। इसके रेशे विभिन्न लंबाइयों के, कभी कभी १२ इंच तक के, होते हैं। ऐसे रेशों से अच्छा सूत बनाना कुछ कठिन होता है।

पौधों से रेशे निकालने के बाद उनका गोंद अलग किया जाता है। इसके लिए रेशों को उष्ण दाहक सोडा, या इसी प्रकार के किसी अन्य रासायनिक विलयन में डुबोकर कुछ समय के लिए छोड़ देते हैं। इससे गोंद निकल जाता है। फिर उसे भली भाँति धोकर क्षार, या रासायनिक पदार्थों को निकाल लेते हैं। पानी निकालने के लिए जलकर्षक (hydro extractor) का उपयोग करते हैं। पानी निकल जाने पर रेशे को सुखाते हैं, फिर बेलन में लपेटकर कोमल बनाते, सँवारते, पूनी बनाते, गीली कताई करते, धागे को दोहराते और ऐसे बने धागे को आँच दिखाकर अतिरिक्त रोमों को जला डालते हैं।

रैमी रेशा गैस मैंटल, कागज, रस्सियों, जालों, अंतर्वस्त्रों, किरमिच और इसी प्रकार के अन्य पदार्थों के निर्माण में प्रयुक्त होता है। यदि पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध हो, तो इसके अन्यान्य उपयोगों का भी विकास किया जा सकता है, पर रेशों की कमी के कारण इसकी उपयोगिता अभी सीमित ही है। (फूलदेव सहाय वर्मा)