रैमसे, विलियम, सर (Ramsay William, Sir, सन् १८५२-१९१६), ब्रिटिश रसायनज्ञ, का जन्स ग्लासगो में हुआ था। इन्होंने अपने ही नगर में शिक्षा पाई। पर सन् १८७२ में टुबिंगेन (Tubingen) से डॉक्टर की उपाधि प्राप्त की। इसी वर्ष ये ग्लासगो के ऐंडरसन कॉलेज में तथा सन् १८७४ में विश्वविद्यालय में अध्यापक नियुक्त हुए। सन् १८८० में आप युनिवर्सिटी कॉलेज, ब्रिस्टल में रसायन के प्रोफेसर तथा एक वर्ष पश्चात् प्रधानाचार्य हो गए। सन् १८८७ से १९१३ तक आप युनिवर्सिटी कॉलेज, लंदन में प्रोफेसर तथा एक वर्ष पश्चात् प्रधानाचार्य हो गए। सन् १८८७ से १९१३ तक आप युनिवर्सिटी कॉलेज, लंदन में प्रोफेसर थे। सन् १८९५ में रॉयल सोसायटी ने आपको 'डेवी पदक' प्रदान कर सम्मानित किया तथा सन् १९०४ में अपने रसायन शास्त्र में अनुसंधान के लिए, विश्व का सर्वोच्च 'नोबेल पुरस्कार' प्राप्त किया।
सन् १८७२ से १८८२ के लगभग तक आप अकार्बनिक रसायन संबंधी अनुसंधानों में लगे रहे। लंदन आने के बाद आपकी विशेष रुचि भौतिक रसायन की ओर हुई। लॉर्ड रेलि ने सन् १८९२ में रसायनज्ञों का ध्यान वायु से तथा रासायनिक रीति से प्राप्त नाइट्रोजन के घनत्वों में अंतर पर आकर्षित किया। इसपर रैमसे ने वायु से ऑक्सीजन और नाइट्रोजन दोनों को संपूर्णत: अलग कर दिखाया कि एक अज्ञात गैस शेष रह जाती है, जिसका नाम आगे चलकर 'आर्गन' रखा गया। सन् १८९५ में क्लीवाइट (Cleivite) को अम्ल के साथ गरम करने पर एक अन्य गैस 'हीलियम' प्राप्त की, जिसका तब तक केवल सूर्य में अस्तित्व का पता था। आर्गन तथा 'हीलियम' अक्रिय गैसें हैं। आवर्तसारणी (periodic table) में इनकी स्थिति के अध्ययन से यह धारणा हुई कि कम से कम ऐसी तीन अन्य गैसें और होनी चाहिए। रैमसे ने इन तीनों, अर्थात् निऑन, क्रिप्टॉन तथा ज़ीनॉन, की भी वायु में उपस्थिति का पता लगाया यद्यपि ये सभी गैसें वायु में अत्यल्प मात्रा में रहती हैं, जैसे जीनॉन का १७,००,००,००० भाग वायु में केवल १ अंश। रैमसे ने सिद्ध किया कि रेडियम के विघटन द्रव्यों में हीलियम रहता है। इससे तत्वांतरण सिद्धांत तथा महत्व के फलों की प्राप्ति हुई।
सन् १९१० में रैमसे ने एक अद्भुत प्रयोग द्वारा रेडियम विघटन से प्राप्त एक घन इंच के तीस लाखवें अंश द्रव्य का घनत्व तथा परमाणुभार ज्ञात किया और इस प्रकार अक्रिय गैसों में से अंतिम 'नाइटॉन' का पता लगा।
सर विलियम रैमसे की सलाह पर ही तत्कालीन भारत सरकार ने बैंगलूरु (Bangalore) में 'इंडियन इंस्टिट्यूट ऑव सायंस' की स्थापना की थी। प्रथम विश्वयुद्ध के समय ब्रिटेन के शासन को आपसे वैज्ञानिक विषयों में महत्व की सहायता मिली थी। (भगवानदास वर्मा)