रेलि, जॉन विलियम स्ट्रट, तृतीय बैरन (Rayleigh, John William Struit, Third Baron, सन् १८४२-१९१९), अंग्रेज गणितज्ञ तथा भौतिकविज्ञानी, का जन्म लैंगफोर्ड ग्रोव (एसेक्स, इंग्लैंड) में हुआ था।

सन् १८६५ में आप केंब्रिज विश्वविद्यालय से गणित के सीनियर रैंगलर और सन् १८६६ में ट्रिनिटी कालेज के फेलो निर्वाचित हुए। आपने गणित का उपयोग भौतिकी की समस्याओं को सुलझाने में किया। ध्वनि संबंधी आपके प्रयोग तथा ध्वनि सिद्धांत पर आपकी पुस्तक ने प्रसिद्धि पाई। ध्रुवण तथा आकाश के नीले वर्ण के कारणों की आपकी व्याख्या ने इन विषयों पर विशद प्रकाश डाला। विवर्तन-ग्रेटिंग तथा स्पेक्ट्रमदर्शी की विभेदन क्षमता के सिद्धांत पर भी आपने कार्य किया। ओम तथा ऐपियर की भी आपने बहुत यथार्थ नापें निश्चित की।

सन् १८७३ में संपत्ति के मालिक होने पर, आपने अपने घर पर एक प्रयोगशाला सुसज्जित कराई, जिसमें आपने अपना पिछला सब अनुसंधान कार्य किया। वायु से प्राप्त तथा रासायनिक क्रियाओं से प्राप्त नाइट्रोजनों के घनत्वों में हजारवें अंश का अंतर मिलने के कारण की जाँच करने पर आपने आर्गन गैस का पता पाया। आपने इस गैस को शुद्ध रूप में तैयार किया। विकिरण के सिद्धांत संबंधी समस्याओं को भी सुलझाने का आपने प्रयास किया। इस विषय में प्लांक द्वारा प्रस्तावित व्याख्या को पूर्णत: मानने के लिए आप तैयार न हुए।

लार्ड रैलि की रुचि आध्यात्मिक (psychical) घटनाओं में भी थी। सन् १९०१ में आप साइकिकल रिसर्च सोसायटी के अध्यक्ष निर्वाचित हुए। आप रायल सोसायटी के फैलो तथा सन् १९०५-०८ तक अध्यक्ष रहे। सन् १९०४ में आपको भौतिकी में विशिष्ट आविष्कार के लिए नोबेल पुरस्कार प्राप्त हुआ। सन् १९०५ में प्रिवी काउंसिल के सदस्य तथा सन् १९०८-१९ तक आप केंब्रिज विश्वविद्यालय के चैसंलर रहे। (भगवानदास वर्मा)