रेन्वा पियर ओगुस्त (Renoir Pierre Auguste) फ्रेंच कलाकार जिसका जन्म लिमोज (Limoges) में २५ फरवरी, १८४१ में हुआ था। यह महान् प्रभाववादी चित्रकार माने का शिष्य था। शरीर की मांसलता और वर्ण को स्पष्ट रूप से उभारने में इसे दक्षता प्राप्त थी। इसके चित्रों में मनोभावों को भी स्पष्ट देखा जा सकता है। इसे दृश्यचित्रण में भी अद्भुत सफलता प्राप्त थी। कहना गलत न होगा कि प्रभावादी शैली के कलाकारों में यह अपने प्रकार का निराला व्यक्ति था, जिसकी मौलिकता उसे सबसे पृथक् करती है।

यह दर्जी का लड़का था। १३ वर्ष की उम्र में उसने काष्ठकला का अभ्यास किया लेकिन बाद में उसकी रुचि चीनी मिट्टी पर कार्य करने की दिशा में बढ़ी। बारीक तूलिका से इसने पारदर्शी रंजन का प्रयोग किया। कुछ काल तक चित्रकारी द्वारा पैसा कमाया। बाद में ग्लेर (Gleyre) की चित्रशाला में प्रवेश प्राप्त किया। वहीं माने और सिसली से भी संबंध स्थापित हुआ। कूर्बें (Courbet) ने इसे प्रकृतिनिरीक्षण की प्रेरणा दी।

अपने प्रारंभिक चित्रों में यह फ्रांस की अठारहवीं शताब्दी की कला से प्रभावित है किंतु कालांतर में इसपर इंग्रेस (Ingres) का भी काफी प्रभाव पड़ा। अंत में इसने अपना संबंध प्रभाववादी दल से स्थापित कर लिया। बाद में इसकी गणना उस दल के नेताओं में होने लगी।

रेन्वा ने अपनी तूलिका कला के प्रत्येक क्षेत्र में आजमाई। उसकी उत्तम रचनाएँ आज फ्रांसीसी चित्रकला की बहुमूल्य निधियाँ हैं। उसके नग्नचित्रों में 'स्नानकर्त्री' प्रसिद्ध हैं। नाविक, दोपहर का भोजन, बक्स, विचार इत्यादि उसके उत्तम चित्र हैं। आकृतिचित्रों में 'जीन सेमरी' की विशेष ख्याति है। विश्व के उन समस्त संग्रहालयों में इस की रचनाएँ अवश्य उपलब्ध हैं जिनका संबंध प्रभाववादी कला से है। १७ दिसंबर, १९१९ को इसकी मृत्यु हुई। (गुरुदेव त्रिपाठी)