रेडक्रास एक राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय एजेन्सी है जिसका प्रमुख उद्देश्य रोगियों, घायलों तथा युद्धकालीन बंदियों की देखरेख करना है। रेडक्रास आंदोलन के विकास में, विशेषकर १९१९ ई. से, किसी भी प्रकार की मानव पीड़ा को कम करने की विश्वव्यापी प्रवृत्ति की गणना रेडक्रास क्षेत्र के अंतर्गत मानी जाने लगी।

आंदोलन का सूत्रपात - रेडक्रास से संबंधित आधारभूत भाव १८६२ ई. में जेनोआ में हेनरी ड्यूनैंट की सूवेनिर डी सफेरिनो (Souvenir De Sofferino) नामक पुस्तिका में प्रकाशित हुआ। ड्यूनैंट ने इटली में युद्ध के दौरान रक्तपात का भयानक दृश्य देखा था। चिकित्सकीय सहायता के अभाव में युद्धक्षेत्र कालकवलित हो जाने के लिए छूटे हुए घायलों के कष्टों का हृदयविदारक विवरण उनकी पुस्तक में मिलता है। आहतों की सहायता के लिए उन्होंने स्थायी समितियों के निर्माण की आवश्यकता पर जोर दिया।

ड्यूनैंट की अपील की प्रतिध्वनि शीघ्र सुनाई पड़ी। जेनोआ की सोसाइटी डी यूटिलिटी पब्लिक (Societe Genevose D utilite Publique) के अध्यक्ष श्री गस्टवे मोइनिए प्रस्तुत सुझावों के महत्व से बहुत प्रभावित थे। उनकी प्रार्थना पर ड्यूनैंट इस समिति की एक बैठक में सम्मिलित हुए तथा उसके सम्मुख अपने विचारों को स्पष्ट किया। तदुपरांत युद्ध में आहतों की स्थिति के सुधार के साधनों के अध्ययनार्थ एक आयोग मनोनीत किया गया। इस आयोग के मौलिक सदस्य जनरल डूफोर (Dufour), स्विस सेना के सेनापति गस्टवे मोइनिए, हेनरी ड्यूनैंट, डाक्टर लुई एपिया और डाक्टर थियोडोर मोनोइ (Theodore Mounoir) थे।

इनका पहला काम ऐसी राष्ट्रीय समितियों के निर्माण के लिए एक प्रस्तावित समझौते का रूप तैयार करना था जितना उद्देश्य स्वयंसेवक सहायक दल बनाकर सैन्य चिकित्सा सेवाओं की सहायता करना था। उन्होंने एक अंतरराष्ट्रीय बैठक भी बुलाई जो २६ अक्टूबर से २९ अक्टूबर सन् १८६३ तक जेनेवा में हुई। वहाँ रेडक्रास के आधारभूत सिद्धांत निश्चित किए गए। इस अंतरराष्ट्रीय समिति पर उस उद्देश्य को जारी रखने के लिए जोर दिया गया, जिसे इस अधिवेशन में निश्चित सिद्धांतों के संरक्षक के रूप में इसने स्वीकार किया था और इस बात पर भी जोर दिया गया कि रेडक्रास आंदोलन का विकास करने के लिए तथा आहत सैनिकों और युद्ध के अन्य पीड़ितों की सहायता संगठित करन के लिए सभी देशों में राष्ट्रीय समितियाँ बनाई जाएँ।

इस आंदोलन के लिए, जो इस प्रकार प्रारंभ हुआ था, अंतरराष्ट्रीय वैधानिक स्थिति प्राप्त करना दूसरा प्रयास था, जिसमें एक स्वीकृत च्ह्रि के द्वारा सबकी रक्षा होते हुए आहत व्यक्तियों की सेवा तथा आहतों की देखरेख में लगे हुए कार्यकर्ताओं का आक्रमण से बचाव के लिए प्रयत्न करना तथा आवश्यकता के समय प्रयोग हेतु अलग रखी हुई चिकित्सा साम्रियों का निश्चित करना था।

मार्ग के विकट कठिनाइयाँ थीं, किंतु जनरल डूफोर के नाम की प्रसिद्धि, हेनरी ड्यूनैंट के (जिन्होंने व्यक्तिगत रूप से अनेक विभिन्न देशों के अधिकारियों से बातचीत की) अथव कार्य और गस्टवे मोइनिए के विधिवत् संगठन कार्य के कारण ये कठिनाइयाँ सफलतापूर्व दूर हो गई। नैपोलियन तृतीय ने इस योजना के पक्ष में अपना व्यक्तिगत प्रभाव लगाया और अंतरराष्ट्रीय समिति स्विस फेडेरल कौंसिल को ८ अगस्त, १८६४ ई. को जेनोआ में सम्मेलन बुलाने के लिए राजी करने में सफल हुई। इस कूटनीतिक सम्मेलन में २६ सरकारों के प्रतिनिधि थे। इस सम्मेलन का परिणाम जेनोआ अधिवेशन हुआ, जिसमें सदा के लिए कुछ निश्चित सिद्धांत नियत हुए : आहतों का सम्मान होना चाहिए, सैनिक तटस्थ समझे जाने चाहिए, चिकित्सा सेवाओं की सामग्रियों तथा कर्मचारियों को सुरक्षा प्रदान की गई, और इस सुरक्षा का प्रतीक एक रेडक्रास वाला सफेद झंडा हुआ - वह झंडा जो आज सारे विश्व में रेडक्रास का चिह्न बन गया है। लगभग सभी देश अब जेनोआ अधिवेशन के निर्णयों को स्वीकार करते हैं। एक नए कूटनीतिक सम्मेलन द्वारा ६ जुलाई, १९०६ ई. को जेनोआ अधिवेशन के ये निर्णय संशोधित तथा पूर्ण किए गए। सन् १८९९ तथा १९०७ में हेग में होनेवाले सम्मेलन ने जेनेवा अधिवेशन सन् १८६४ तथा संशोधित अधिवेशन सन् १९०६ के सिद्धांतों का सामुद्रिक युद्धों तक विस्तार कर दिया।

अंतरराष्ट्रीय रेडक्रास समिति (Comite International De La Croix Rouge) - अंतरराष्ट्रीय रेडक्रास के उद्देश्य ये माने जाते है : सभी देशों में रेडक्रास आंदोलन को फैलाना, रेडक्रास के आधारभूत सिद्धांतों के संरक्षक के रूप में कार्य करना, नई रेडक्रास समितियों के संविधान से वर्तमान समितियों को सूचित करना, सभी सभ्य राज्यों को जेनोआ अधिवेशन स्वीकार करने के लिए राजी करना अधिवेशन के निर्णयों का पालन करना, इसकी होने वाली अवहेलनाओं की भर्त्सना करना, कानून बनाने के लिए सरकारों पर दबाव डालना तथा ऐसी अवहेलनाओं को रोकने के लिए सेना को आदेश देना, युद्धकाल में बंदियों की सहायता तथा अन्य पीड़ितों की सहायता के लिए अंतरराष्ट्रीय एजेन्सी का निर्माण करना, बंदीशिविर की देखरेख, युद्धबंदियों को संतोष और आराम पहुँचना और सभी प्राप्य प्रभावों के प्रयोग से उनकी स्थिति सुधारने का प्रयत्न करना, शांति तथा युद्ध के समय में भी सरकारों, राष्ट्रों तथा उपराष्ट्रों के बीच शुभचिंतक मध्यस्थ के रूप में कार्य करना, युद्ध बीमारी अथवा आपत्ति से होनेवाले कष्टों से मुक्ति का मानवोचित कार्य स्वयं करना अथवा दूसरों को ऐसा करने के लिए सहायता देना।

युद्धकाल में कार्य - अंतरराष्ट्रीय रेडक्रास समिति के कार्यों के विस्तार का आभास कुछ उदाहरणों से हो जाएगा। प्रारंभ से ही स्वतंत्र रेडक्रास समिति के निर्माण तथा जेनोआ अधिवेशन के सदस्यों की स्वीकृति ने शीघ्र सफलता प्राप्त कराई। फ्रांसीसी और जर्मन आहतों तथा बीमार सैनिकों की भलाई के लिए बास्ले (Basle) में १८७० ई. में एक सूचना एजेन्सी का निर्माण हुआ।

१९१२ ई. में बालकान युद्ध के समय इसी तरह की एक ऐजेन्सी बेलग्रेड में बनी। १९१४ ई. में प्रथम विश्वयुद्ध के समय युद्धबंदियों के लिए दो हजार व्यक्तियों की, जिनमें विशेषकर स्वयंसेवक थे, एक अंतरराष्ट्रीय एजेन्सी जेनेवा में बनाई गई। इस एजेन्सी के १७ विभिन्न विभागों ने युद्धलिप्त ३० देशों से आनेवाले आवेदनों का निपटारा किया। दो हजार से १५ हजार तक प्रतिदिन पत्रव्यवहार किया और इसके यहाँ युद्ध समाप्त होन के पहले सूचना हेतु प्रार्थनाएँ ५० लाख से अधिक थीं।

इस एजेन्सी के कारण विभिन्न सेनाओं तथा जहाजी बेड़ों के हजारों खोए हुए मनुष्यों का पता लगाया गया, युद्धबंदियों को सहायता दी र्ग, ५०० विभिन्न बंदी-शिविरों की नियमित देखरेख हुई और अधीन जिलों के नागरिकों को हटाने के लिए तथा स्वेदश आगमन के लिए अथवा अधिक आहतों, कुछ श्रेणी के रोगी बंदियों और चिकित्सा कर्मचारियों को तटस्थ भागों के बंदी शिविर में रखने के लिए अधिक सुविधाएँ प्राप्त की गई। अंतरराष्ट्रीय एजेन्सी की वित्तीय सेवा ने ३१ दिसंबर, १९१७ ई. तक ७१,५०० पौंड से ऊपर की धनराशि नकद रू पए के रूप में भेजी।

अंतरराष्ट्रीय समिति ने जेनोआ अधिवेशन के निर्णयों के विरुद्ध हुए कार्यों का प्रदर्शन प्राय: सरकारों के सम्मुख किया। इस प्रकार के कार्य चिकित्सालयों के बंद होने, बदला लिए जाने, चिकित्सा कर्मचारियों, या आहतों के साथ अनुचित व्यवहार, रेडक्रास से संबंधित चिकित्सा भंडारों को जब्त करने, रेडक्रास की निंदा की भर्त्सना करने आदि से संबंधित घटनाएँ थीं।

युद्धोत्तर कार्य - (राष्ट्रसंघ) लीग ऑव नेशन्स की कृपालु सहायता के कारण अंतरराष्ट्रीय समिति सभी देशों के युद्धबंदियों के लिए जो रूस और सायबेरिया में रह गए थे, स्वदेशागमन की व्यवस्था कर सकने में समर्थ हुई और मध्य यूरोप के विभिन्न देशों ने रूसी बंदियों को वापस करने में भी सफल हुई। संबंधित सरकारों के यहाँ प्रदर्शन करने, सैनिकों को सुरक्षित जहाजों में ले जाने की व्यवस्था करने और उनकी पहचान करने, जहाज में उनकी देखरेख करने और रक्षित जहाजों को मास्को तथा बाल्टिक बंदरगाहों तथा ब्लाडीवास्टक, नोवरोसिस्क और ट्रिस्टे के बीच आने जाने का प्रबंध करने के लिए समिति के प्रतिनिधि बुलाए गए। इस प्रकार पाँच लाख बंदी स्वदेश पहुंचाए गए।

यूनान में नियमित स्थान पर बंदी व्यक्तियों की वापसी तथा यूनान और टर्की के बीच बंदियों का आदान प्रदान किया गया। कालांतर में अंतरराष्ट्रीय समिति के सदस्यों का संबंध ऊपरी सिलेसिया में जर्मन और पोलैंड के शरीरबंधकों के आदान प्रदान से रहा।

जहाँ तक स्वास्थ्य संबंधी कार्यों का सवाल है, अंतरराष्ट्रीय समिति के सदस्यों को मलेशिया, यूक्रेन तथा कृष्णसागर के क्षेत्र में उस समय फैले हुए टाइफस (Typhus) से बचने में सहायता देने का निर्देश मिला था। अप्रैल, १९१८ ई. में इस महामारी का सामना करने के लिए मध्य और पूर्व यूरोप के विभिन्न देशों के प्रतिनिधियों के साथ केंद्रीय अध्ययन विभाग की स्थापना में इस समिति ने भाग लिया। सन् १९१९ और १९२३ के बीच चिकित्सालयों की कमियों को पूरा करने तथा अकाल पीड़ितों को भोजन की पूर्ति करने के लिए दो चिकित्सा मिशन यूक्रेन भेजे गए। पोलैंड में समिति के प्रतिनिधि वहाँ की महामारी को रोकने के अभियान में सम्मिलित हुए। सन् १९१९ और १९२३ के बीच बहुत से यक्ष्मा चिकित्सालय तथा साधारण कृष्ण सागरीय भाग में स्थापित किए गए तथा समिति ने उनके लिए आवश्यक सामान जुटाने में सहायता की।

युद्ध के आर्थिक परिणामों से बुरी तरह प्रभावित जनसंख्या को मुक्ति दिलाने के उद्देश्य से समिति ने आस्टिया और हंगरी में सहायता कार्यों का व्यवस्थित रूप से गठन किया। रूस के अकालग्रस्त जिलों की सहायता की व्यवस्था करने के लिए समिति ने १५ अगस्त, १९२१ ई. को लीग ऑव रेडक्रास सोसायटी के साथ जेनोआ में अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन बुलाने में हाथ बटाया। इस सम्मेलन में सरकारों तथा सहायता एजेन्सियों के ८० प्रतिनिधियों ने भाग लिया। एक रूसी सहायता समिति बनाई गई, जिसके हाई कमिश्नर डाक्टर नानसेन (Nansen) हुए। इस समिति ने ८०,००,००० पौंड से अधिक धनराशि जनवरी, १९२२ ई. तक अपने हाथ में रखी। समिति के प्रतिनिधियों ने १९२३ ई. में जर्मनी तथा रूर (RUHR) की जनसंख्या की स्थिति की छानबीन भी की।

तत्पश्चात् द्वितीय विश्वयुद्ध में बड़ी तत्परता से काम किया। दोनों ओर के कैदियों को पत्र और भेंट से मदद पहुँचाई और रणक्षेत्र में स्थित अस्पतालों में निर्भीकतापूर्वक सेवा की।

भारतीय रेडक्रास - भारत का रेडक्रास के संबंध प्रथम विश्वयुद्ध से है। उस समय एक करोड़ रुपया, जो इस संस्था के लिए दान मिला था, इसका मूल धन बना। इस समय तक इसकी १८ प्रांतीय संस्थाएँ और ४१२ जिला शाखाएँ स्थापित हो चुकी हैं। बंगाल की भुखमरी से लेकर कई प्राकृतिक दुर्घटनाओं के समय इसने सहायता पहुँचाई है। (मेजर जनरल शरदानंद सिंह.)