रेखागणित ज्यामिति की वह शाखा है जिसमें रेखा का जनक गूलतत्व माना जाता है। आकाश में स्थित किसी बिंदु की, एक बिंदु पर प्रतिच्छेदन करनेवाले तीन तलों से जो दूरियाँ होती हैं उनसे वह बिंदु निश्चित स्पष्ट होता है (नीचे का चित्र देखें)।
य = थप, र = तन, ल = नप
तल उन बिंदुओं की संपूर्णता से निश्चित स्पष्ट होता है जिनके निर्देशांक अय + बर + सल + द = � रूप के एकघात समीकरण को संतुष्ट करते हैं।
निर्देशांकों की समान संख्या के साथ विभिन्न मूलतत्वों पर निर्भर रहनेवाली ज्यामिति की दो पद्धतियों का विश्लेषिक रूप एक जैसा होगा, परंतु उनके विश्लेषण की व्याख्या भिन्न भिन्न होगी। ऐसे प्रकरणों में प्राय: एक पद्धति में निर्देशांकों का अर्थ और कुछ मौलिक संबंधों का निर्वचन ज्ञात किया जा सकता है। आपस में इस प्रकर से संबंद्ध पद्धतियाँ द्वैतीय (Dualistic) कहलाती हैं।
द्वैत नियम (Principle of duality) का यह आग्रह है कि बिंदु निर्देशांकों (point coordniates) के गुणों से प्राप्त और बिंदुओं को अंतर्निहित करनेवाले प्रत्येक प्रमेय का संगत प्रमेय होना चाहिए, जिसमें तल अंतर्निहित हों, और इस नियम को विलोमत: ठीक होना चाहिए। यदि प्रत्येक बिंदुनिर्देशांक को उसके प्रक्षेपीय बिंदुनिर्देशांक (projective point coordinates) से प्रतिस्थापित कर दिया जाए तो भी ये गुण सत्य रहते हैं।
यदि य१, य२, य३, य४ प्रक्षेपीय बिंदु निर्देशांक हों और त१, त२, त३, त४ प्रक्षेपीय तल निर्देशांक हों, तो त१ य१ + त२ य२ + त३ य३ + त४ य४ = � वह प्रतिबंध है जिससे तल तक और बिंदु यक संयुक्त स्थिति में हों, अर्थात् तल इस बिंदु से गुजरे, या वह बिंदु तल पर पड़े।
सरल रेखा की स्थिति दो बिंदुओं (य१: य२: य३: य४) और (र१: र२: र३: र४) से निश्चित होती है। यकरग - यग रक रूप के छह परिमाण इसके समघात रेखा निर्देशाक सकग कहलाते हैं। एक रेखा चार स्वतंत्र निर्देशांकों से निर्धारित होती है, इसलिए दिक् में �४ रेखाओं का अस्तित्व है।
रेखा संमिश्र रेखाओं का त्रिविम विस्तार है। इस प्रकरण में निर्देशांक सकग एक समीकरण को संतुष्ट करते हैं, �३ एकलकृत (singled out) रेखाएँ संमिश्र का निर्माण करती हैं। संमिश्र का घात उन रेखाओं की संख्या है, जो एक स्वेच्छ (arbitrary) तल पर पड़ती हैं और उसके एक स्वेच्छ बिंदु से गुजरती हैं। स्थिर रेखा का प्रतिच्छेदन (intersection) करनेवाली सभी रेखाओं से बना हुआ संमिश्र, रेखा संमिश्र का उदाहरण है।
एकघात समशेषता (Linear Congruence) रेखाओं का द्विविम विस्तार है। किसी समशेषता का घात एक स्वेच्छ बिंदु से गुजरनेवाली और उसका वर्ग एक स्वेच्छ समतल पर पड़नेवाली उसकी रेखाओं की संख्या है। एक घात समशेषता का उदाहरण दो स्थिर रेखाओं का प्रतिच्छेदन करनेवाली रेखाओं का उदाहरण है। यह प्रथम घात और द्वितीय वर्ग का उदाहरण है। यदि निर्देशांक सकग तीन समीकरणों को संतुष्ट करे, तो �३ रेखाएँ रेखज पृष्ठ (ruled surface) की होती हैं। यदि वे चार समीकरणों को संतुष्ट करें तो रेखाएँ परिमित संख्या में होगी।
रैखिक, संमिश्र � अकग सकग = � को य र� - य� र + ग (ल - ल�) = � के रूप में सरल किया जा सकता है, जिसमें य�, र�, ल� और य, र, ल किसी रेखा के किन्हीं दो बिंदुओं के कार्तीय निर्देशांक हैं। यदि ग = � हो, तो संमिश्र विशिष्ट है।
सिलिंडराभ (Cylindroid) - कूर्चिका के संमिश्र के अक्ष रेखज घनीय पृष्ठ का निर्माण करते हैं, जिसे सिलिंडराभ कहते हैं। गतिकी में रेखा ज्यामिति का अनुप्रयोग करने की दृष्टि से इसका बहुत महत्व है। इसका समीकरण है :
(य२ + र२)
ल +
श्ख य र =
�
प्रत्येक रेखज घन, जिसकी दो स्पष्ट नियताएँ (directrix) हों, इस रूप में प्रस्तुत किया जा सकता है।
व्यापक संमिश्र (General Complex) - सकग में न घात का समघात समीकरण और सर्वांग समिका (identity) स = � न घात के संमिश्र को निश्चित स्पष्ट करता है। समीकरण को संतुष्ट करनेवाले सभी बिंदु (य) न घात के शंकु (cone) पर पड़ते हैं जिसका शीर्ष, र है। बिंदु र, जो एक शंकु का शीर्ष है और द्विजनक (Double generator) है, विचित्र बिंदु (Singular point) कहलाता है। इसका बिंदुपथ पृष्ठ होता है।
सर्वांगसमता दो संमिश्रों का संपूर्ण, या आंशिक प्रतिच्छेदन हो सकती है। तीन संमिश्रों का संपूर्ण, या आंशिक प्रतिच्छेदन रेखज पृष्ठ होता है। यदि कुछ प्रतिबंधों में किसी पृष्ठ के स्पर्शीतल तलों का एकविम विस्तार निर्माण करते हैं, तो पृषें को विकासनीय पृष्ठ कहते हैं। किसी भी सर्वांगसमता की रेखा से दो विकासनीय पृष्ठ बनते हैं, जो सर्वांगसमताओं की रेखाओं से बने होते हैं।
द्विघात रेखा संमिश्र = द्विघात रेखा संमिश्र �अकग यक यग = � रूप के समीकरण से निश्चित स्पष्ट होता है। द्विघात संमिश्र �खक य२क = � के विचित्र बिंदुओं का बिंदुपथ चौथे घात का पृष्ठ है और विचित्र तलों का अन्वालोप (envelope) चौथे वर्ग का पृष्ठ है। ये दोनों पृष्ठ असल में एक ही हैं। यह पृष्ठ विचित्र पृष्ठ कहलाता है। इसके कार्तीय निर्देशांक ज्ञात करने के लिए क्लाइन (Klein) को प्लकर (Pluker) निर्देशांकों में रूपांतरित कर प्लकर के स्थान पर दो बिंदुओं य�, र, ल और य,� र,� ल� के निर्देशांकों के मानों को स्थापित करना चाहिए। फिर यदि (य�, र,� ल�) स्थिर हों तो समीकरण (य,� र,� ल�) से गुजरनेवाले संमिश्र शंकु को निरूपित करता है। यह शंकु एक युग्म तलों के रूप में अपभ्रष्ट हो जाए, इसकी शर्त विचित्र पृष्ठ का कार्तीय समीकण है। यह पृष्ठ चौथे घात और चौथे वर्ग का है और इसके १६ युग्म बिंदु और १६ युग्म स्पर्शी तल हैं। सर्वाधिक व्यापक कुमर के पृष्ठ (Kummer's surface) से यह सर्वनाम है। (प्रभुदास शाह)