रूबेंस, पीटर पाल (१५७७-१६४०) नीदरलैंड का विश्वविख्यात चित्रकार पीटर पाल रूबेंस संसार के उन महान् चित्रकारों में से एक है जिन्हें हाथ ही उंगलियों पर गिना जा सकता है। आधुनिक समय के प्रसिद्ध कला आलोचक टॉमस क्रावेन ने कहा है कि रूबेंस की तुलना उसके अपने व्यवसाय के बाहर ही की जा सकती है और वह भी शेक्सपियर के अलावा और किसी से नहीं। शेक्सपियर का जो स्थान साहित्य में है रूबेंस का वही स्थान कला में है। पाश्चात्य कला आलोचक इन्हीं शब्दों में रूबेंस का जिक्र करते हैं।
रूबेंस की कला के बारे में अधिक मतभेद है उसके चित्रों में चित्रित स्थूलकाय नग्न स्त्रियों के कारण जिन्हें परियों और देवियों के रूप में भी चित्रित किया गया है। बहुतों को इन चित्रों की मादक नंगी नारियाँ बड़ी ही अप्रिय लगती हैं और वे सामाजिक परिष्कृत रुचि के विचार से उन्हें समाज के लिए उपयुक्त नहीं समझते।
रूबेंस का जन्म सन् १५७७ में एक सुसभ्य तथा सुसंस्कृत उच्च परिवार में, कलोन (Cologne) नामक नगर से पश्चिम में हुआ था। जिस समय वह उत्पन्न हुआ, राजनीतिक परिस्थिति बड़े उथल पुथल की थी; लोगों का जीवन अस्तव्यस्त तथा अरक्षित था पर बालक की माँ ने पूरे लाड़ प्यार और सावधानी से उसको पाला पोसा, पढ़ाया लिखाया। रूबेंस जर्मन, फ्लैमिश, लैटिन, और फ्रेंच आदि सात भाषाओं का जानकार था। तेरह वर्ष की उम्र होते होते उसकी कलात्मक प्रतिभा उभरने लगी। उसने तीन फ्लेमिश कलाकारों की शिष्यता ग्रहण की और तेईस वर्ष की उम्र होते होते वह उत्कृष्ट कलाकार के रूप में उभर पड़ा। वह देखने में हृष्ट पुष्ट, सुंदर राजकुमार सा था। इसी समय ड्यूक ऑव मांटुआ उससे इतना प्रभावित हुआ कि उसे राजकीय कलाकार बना दिया और राजदूत के रूप में अपने साथ स्पेन भी ले गया। नौ वर्ष तक अथक परिश्रम के बाद जब वह अनेक उत्कृष्ट चित्रों की रचना कर चुका था, वायसराय अलबर्ट तथा इसावबेला ने उसे अपना राजकीय कलाकार बना लिया। फ्रांस की सम्राज्ञी मेरी डि मदीसीस के लिए भी उसने बहुत से चित्र बनाए जिनसे फ्रेंच कलाकारों को बहुत प्रेरणा मिली। इसके पश्चात् वर्ष बीतते गए और सफलता की एक से एक ऊँची मंज़िल वह चढ़ता चला गया।
काम करने की उसमें दैवी क्षमता थी। ऐंटवर्प में उसने अपने भव्य सुसज्जित भवन में बृहत् स्टूडियो बनाया और जमकर काम आरंभ किया। वहाँ से उसने तीन हजार कैनवस सारे यूरोप में वितरित किए और तब तक उसका स्टूडियो यूरोप का कलाकेंद्र बन चुका था। एक फ्लोरेंटाइन सेठ की लड़की के लिए उसने बहुत बड़े बड़े म्यूरल चित्र बनाए जो आज लूव्र की शोभा बढ़ा रहे हैं। अट्ठारह फलह तेरह तथा दस फुट के; तीन कैनवस चौबीस तथा बारह फुट के और अनेकों आठ फुट वाले व्यक्तिचित्र, यह सारा विशाल कार्य म्यूरल पेंटिग के इतिहास में अपनी सानी नहीं रखता। यदि इसकी तुलना की जा सकती है तो कलाकार गिउटो के बनाए पडुआ के गिरजाघर तथा माइकेल ऐंजेलो के बनाए सिस्टाइन चैपेल के म्यूरल चित्रों से। इसके पश्चात् उसने इंग्लैंड के सम्राट् चार्ल्स प्रथम के समय ह्वाइट हाल को अपने चित्रों से सुशोभित किया। स्पेन के सम्राट् के लिए उसने ११२ चित्र बनाए। बाद में जब वह बहुत थक गया तो उसने १२५,००० पौंड में अपने लिए शतु डे स्टीन नामक विशाल आवास खरीदा और उसे भी अपने उच्चतम चित्रों से सुशोभित किया। यहाँ उसने अपने जीवनकाल के कुछ विशाल तथा बड़े ही सशक्त दृश्यचित्र निर्मित किए जो अद्वितीय हैं। यही उसके आखिरी चित्र साबित हुए। तिरसठ वर्ष की आयु में वह अपने पीछे पड़े दुश्मन गठिया का शिकार हुआ और एकाएक उसके हृदय की धड़कन बंद हो गई।
रूबेंस को लोग युंगप्रवर्तक कलाकार के रूप में मानते हैं क्योंकि इटालियन कला, जो सारे यूरोप की कला पर सदियों से छाई हुई थी, रूबेंस के मैदान में आते ही तितर बितर हो गई। वैसे प्रारंभिक काल में रूबेंस पर भी इटालियन कला का प्रभाव पड़ा था, पर उसे उसने उसी रूप में ग्रहण नहीं किया। उसको उसने अपने ढाँचे में ढाला और ऐसा ही उसका पहला विचित्र तथा सशक्त चित्र है सूली से क्राइस्ट का नीचे उतरना (डिसेंट फ्राम द क्रास)। यह चित्र अपनी गहरी संवेगात्मक अनुभूति, सशक्त अभिव्यक्ति, सुघड़, चित्रसंयोजन तथा प्रभावशाली शैली के लिए विश्वविख्यात है। उसका दूसरा बहुचचिर्तत चित्र है जजमेंट ऑव पेरिस। यह चित्र प्राचीन कथा के आधार पर बना है पर इसमें उस दृष्टि से उतना आकर्षण नहीं जितना नंगी नारियों को खुले मैदान में लुभावने ढंग से चित्रित करने का। तीसरा प्रसिद्ध चित्र है 'फलों की माला' (गालैंड ऑव फ्रूट्स)। इसमें नन्हें मुन्ने स्वस्थ, हँसते खेलते बालकों को एक हरे भरे फल फूलोंवाले हार से खेलता दिखाया गया है। 'रेप आफ द सबाइंस', कलाकार के दो पुत्र, (द आर्टिस्ट टू संस), डायना की वापसी (रिटर्न ऑव डायना), रूबेंस का आत्मचित्र (सेल्फ पोट्रेंट), 'परस्यूज ऐंड आंद्रोमेदा', 'आजा कसांद्रा', 'द रेज़िग ऑव द क्रास'-इन सारे चित्रों को ध्यान से देखने के बाद इसमें कोई संदेह नहीं रह जाता कि प्रतिभा, कौशल, प्रभावशालिता, सशक्त संवेगात्मक चित्रसंयोजन, रंगों के अद्भूत संयोजन, आकारों की लयात्मक अभिव्यक्ति, भावनाओं तथा कल्पना की उच्चतम पहुँच तथा चमत्कृत यथार्थचित्रण की दृष्टि से रूबेंस की कला क्रांतिकारी थी। परंतु उसके चित्रों से केवल एक ही बात उभरकर बार बार सामने आती है - वह यह कि उसने धरती पर धरती के प्राणियों को अपने अत्यंत पार्थिव रूप में रखते हुए भी एक अद्भुत आकर्षण उत्पन्न किया है। उसके बनाए चित्रों के पात्रों का शरीर इतना जीवंत हो उठा है कि लगता है, जैसे जीवित व्यक्ति की मांसपेशियाँ हों और उनमें ताज़े गर्म खून की धमनियाँ दौड़ रही हों। कभी कभी तो भ्रम हो जाता है चित्र में वस्तु का। मांसपेशियाँ इतनी सजीव लगती हैं कि विश्वास नहीं होता कि वे चित्र में अंकित हैं। तबीयत होती है, उन्हें छूकर देखने की कि कहीं वे जिंदा तो नहीं। (रामचंद्र शुक्ल)