रूप गोस्वामी जी ये श्री सनातन गोस्वामी के छोटे भाई थे। इनका पूर्वनाम संतोष था पर श्री गौर ने रूप नाम दिया। ये भारद्वाज गोत्रीय यजुर्वेदी ब्राह्मण थे और इनका जन्म सं. १५२७ के लगभग हुआ था। इन्हें भी संस्कृत के साथ साथ फारसी अरबी की शिक्षा मिली थी। पितामह की मृत्यु पर जब सनातन पर नियत हुए तब कुछ वर्ष अनंतर रूप को भी एक उच्च पद दिला दिया और इन्हें साकर मल्लिक उपाधि मिली। कुछ दिन बाद अपने छोटे भाई अनुपम के साथ वृंदावन की ओर चल दिए। श्री गौरांग जब वृंदावन से लौटकर प्रयाग आए तब रूप वहीं उनसे मिले और उनके साथ ही कुछ दिन रहे। दस दिनों तक भक्ति-रस-तत्व पर उपदेश देकर श्री गौरांग ने इन्हें वृंदावन भेज दिया।
अनुपम की मृत्यु के बाद ये पुरी गए। यहीं अन्य विद्वानों से रसशास्त्र पर खूब विवेचना हुई तथा इन्होंने अपने नाटक भी लिखे। इसके अनंतर ये सं. १५७३ के लगभग वृंदावन चले आए और यहीं अंत तक रहे। यह अत्यंत प्रबंधकुशल थे अत: संप्रदाय के सभी कार्यों का संपादनभार इन्हीं पर था। इन्होंने गोमा टीले पर से श्री गोविंददेव जी का श्रीविग्रह निकलवा कर एक कुटी में प्रतिष्ठापित किया। आमेर नरेश राजा मानसिंह द्वारा निर्मित श्री गोविंददेव जी का विशाल मंदिर सं. १६४७ में पूर्ण हुआ। औरंगजेब की धर्मांधता के कारण यह विग्रह जयपुर ले जाया गया और वहीं वर्तमान है। इनकी साहित्यिक देन अपूर्व है। सं. १६१२ के लगभग बड़े भाई सनातन जी की मृत्यु के अनंतर इन्होंने भी शरीरत्याग कर दिया।
रचनाएँ - हंसदूत उद्धव संदेश, अष्टादशलीला तथा निकुंजरहस्य, चार काव्यग्रंथ; स्तवमाला, उत्कलिकावली, गोविंद विरुदावली, तथा प्रेमेंदुसागर, पाँच स्तोत्र ग्रंथ; विदग्ध माधव, ललित माघव तथा दानकेलि-कौमुदी तीन रूपक; नाटक-चंद्रिका नाट्यग्रंथ; भक्ति रसामृतसिंधु तथा उज्वल नीलमणि, दो रस-ग्रंथ और मथुरा-महिमा लघु भागवतामृत, गौरगणोद्देशदीपिका, पद्यावली आदि संकलनसंग्रह ग्रंथ हैं। ((स्व.) ब्रजरत्नदास)