रीशलू, आर्मान ज़ाँ (१५८५-१६४२ ई.) फ्रांसीसी राजनीतिज्ञ। २१ वर्ष की उम्र में लूसों का बिशप नियुक्त हुआ। १६१४ को एस्टेट्स जनरल में वह पादरियों का प्रतिनिधि निर्वाचित हुआ। १६१६ में वह हेनरी चतुर्थ का सेक्रेटरी ऑव स्टेट नियुक्त हुआ। १६२२ में पोप ग्रेगरी पंद्रहवें ने उसे कार्डिनल की पदवी दी। १६२४ में तेरहवें लुई ने उसे प्रधान मंत्री नियुक्त किया। रीशलू ने अपनी सफल और सुगम नीति द्वारा फांस को यूरोप का एक प्रभावशाली और शक्तिशाली देश बनाया। १६२६ की एक राजघोषणा के आधार पर सामंतों के बहुत से दुर्ग गिरवा दिए गए। उनके कई विशेषाधिकार छीन लिए गए और सरकार की समस्त शक्ति राजा में केंद्रित हो गई। फ्रांस के प्रॉटेस्टेंटों ने सरकार के विरुद्ध विद्रोह किया और ला रोशेल नगर को अपना गढ़ बनाया। रीशलू ने ला रोशेल का घेरा डालकर १६२९ में इस विद्रोह के दमन में सफलता प्राप्त की। इसी प्रकार फ्रांस की प्रतिनिधि सभाओं को भी रोशलू ने धीरे धीरे दबा डाला और समय बीतने पर फ्रांस में राजा और उसकी रायल कौंसिल, जिसमें राजा के ही द्वारा मनोनीत लोग होते थे, सर्वशक्तिमान् रह गए।
अंतरराष्ट्रीय नीति में भी रीश्लू उतना ही सफल रहा जितना घरेलू नीति में। हेप्सबर्ग राज्य-स्पेन, आस्ट्रिया और नीदरलैंड-फ्रांस को घेरे हुए थे। वे उसको पनपने नहीं देते थे। उनके विरुद्ध ३० वर्षीय युद्ध (१६१८-१६४८) में रीशलू ने भाग लिया और हेप्सबर्ग की शक्ति को कम करके फ्रांस के बूर्बों को शक्तिशाली बना सका।
देखने में तो रीशलू दुबला पतला था पर जब वह कार्डिनल की पोशाक पहन लेता था तो गंभीर और रोबदार लगता था। लोग उसके सामने थर्राते थे, यहाँ तक कि राजा भी उससे भय खाता था। वीर और महत्वाकांक्षी होने के साथ साथ वह चालाक और लालची भी था। परंतु उसने फ्रांस को शक्ति और प्रगति के मार्ग पर अग्रसर किया। फ्रांस की सेना, जो सन् १६२१ में १२ हजार थी, सन् १६३८ में डेढ़ लाख से अधिक हो गई थी। उसने देश को सांस्कृतिक क्षेत्र में भी बहुत ऊँचा उठाया। फ्रांस में उसने पहले पहल एक सूचना पत्रिका निकाली जिसे गजट कहते हैं। १६३५ में उसने फ्रांसीसी साहित्य परिषद (फ्रेंच एकेडमी) की स्थापना की। वह स्वयं एक अच्छा लेखक था। १७वीं शताब्दी के व्यक्तियों में रीशलू का बड़ा ऊँचा स्थान है। (कािशेरी शरण (सरन) लाल.)