रीड, टॉमस (१७१०-१७९६) दर्शन के इतिहास में स्कॉट संप्रदाय का संस्थाक। एबर्डीन में दर्शन और फिर ग्लासगो में नीतिशास्त्र का आचार्य रहा। उसने चार ग्रंथों की रचना की, जिनके विषय थे। 'एसे ऑन क्वांटिटी' (१७४८), 'इन्क्वाइरी इनटु दि ह्यूमन माइंड ऑन दि प्रिंसिपिल्स कॉमन सेंस' मानव मन की लोकेंद्रिय के सिद्धांत (१७६४), मनुष्य की बौद्धिक शक्तियाँ (१७८५), एवं मानवमन की क्रियात्मक शाक्तियाँ (१७८८)। उसने लॉर्ड केमीज़ कृत मनुष्य के इतिहास में अरस्तू के तर्कशास्त्र का वृत्तांत भी लिखा। वह एबर्डीनन की दर्शन परिषद् का प्रमुख संस्थापक तथा प्रथम मंत्री भी था।

रीड ह्यूम के संशयवाद का विरोधी था। उसने बुद्धिमान को भी धर्म तथ नीति का विनाशक कहा। इन दोनों सिद्धांतों के विपरीत उसने विश्व के नित्य अस्तित्व का प्रतिपादन किय। वह बाह्य भौतिक जगत् तथा आत्मा दोनों को असंदिग्ध सत्य मानता था। उसके अनुसार आत्मगत अनुभव की अवस्था से प्रत्यक्ष अनुभव की अवस्था तक उठने में प्रमुख मार्गदर्शक लोकेंद्रिय (कॉमन सेंस) है, जो बुद्धि का ही स्वयंसिद्ध तथ्यों को पहचाननेवाला रूप है। पंडितों, अपंडितों, राष्ट्रों और युगों द्वारा स्वीकृति इसका प्रमाण है। विश्व की सभी भाषाओं का विधान एवं व्याकरण इसी का प्रतिबिंब है। उदाहरणार्थ, पदार्थ तथा गुण के भेद, और मन तथा विचार के भेद सभी भाषाओं के विधान में निहित हैं, और इसलिए इन्हें दार्शनिकों के मन की गढ़ंत नहीं लोकेंद्रिय-ज्ञात सत्य मानना पड़ेगा।

सं. ग्रं. - टॉमस रीड वर्क्स (संपादित सर विलियम हैमिल्टन); ए. सी. फ्रेजर : टॉमस रीड; ओ. एस. जोंस : इंपिरिसिज्म ऐंड इंट्यूशनिज़्म इन रीड्स कामनसेंस फिलॉसॉफी। (राममूर्ति लूंबा)