रिपन, लार्ड (१८२७-१९०९) जन्म, २४ सितंबर, सन् १८२७; मृत्यु, ९ जुलाई, १९०९। १८४९ में जार्ज फ्रेडरिक सेमुएल रॉबिंसन (रिपन) ब्रुसेल्स में भेजे गए एक विशेष मिशन में अटैची के पद पर नियुक्त हुए। सन् १८५१ में इनका विवह हुआ। सन् १८५२, १८५३ और १८५७ में वे हाउस ऑव कॉमन्स के सदस्य चने गए। हाउस ऑव लार्डस् के सदस्य हो जाने (१८५९) के कुछ ही माह के पश्चात् रिपन युद्ध विभाग में अंडर सेक्रेटरी के पद पर नियुक्त हुए। सन् १८६१ ई. में वे लंदन स्थित भारत के दफ्तर में अंडर-सेक्रेटरी के पद पर ब्रिटिश केबिनेट की सदस्यता के साथ नियुक्त हुए। सन् १८६६ में रिपन की नियुक्ति सेक्रेटरी ऑव स्टेट फॉर इंडिया के पद पर हुई। उदारवादी दल के प्रधान मंत्री ग्लैडस्टन के समय में रिपन सन् १८६८ के अंत में लार्ड प्रेसीडेंट ऑव द कौसिल के पद पर नियुक्त हुए और इस पद पर सन् १८७३ तक आसीन रहे। सन् १८७१ में ये मारक्विस की उपाधि से विभूषित हुए।

सन् १८८० में जब ग्लैडस्टन प्रधान मंत्री बने तो लार्ड रिपन की नियुक्ति भारत के वाइसराय के पद पर हुई। लार्ड रिपन ने लार्ड लिटन की अफगानिस्तान के पति अग्रगामी नीति में परिर्वन कर दिया और दोस्त मोहम्मद के भतीजे अब्दुर्रहमान को अमीर मानकर अफगानिस्तान के साथ संधि की। लार्ड रिपन ने भारतीयों के अधिकारों को बढ़ाया। इनके कानूनी सदस्य सी.पी. इल्वर्ट ने एक विधेयक पेश किया जो 'इल्वर्ट बिल' के नाम से प्रसिद्ध हुआ। इस विधेयक के अनुसार भारतीय मजिस्ट्रटों और न्यायाधीशों को यूरोप के निवासियों पर चल रहे मुकदमों के सुनने व फैसला करने का अधिकार मिला।

सन् १८८६ में लार्ड रिपन फर्स्ट लार्ड ऑव ऐडमिरैल्टी के पद पर और १८९२ में कलोनियल सेक्रेटरी के पद पर आसीन हुए। सन् १९०५ के अंत में सर हेनरी कैपवेल वैनरमैन के शासनकाल में लार्ड रिपन, लार्ड प्रिवीसील के पद पर आसीन हुए और इस पद पर सन् १९०८ तक बने रहे। (कृष्ण स्वरूप श्रीवास्तव)