रिटर, कार्ल (Ritter, Karl, सन् १७७९-१८५९) विश्वविख्यात जर्मन भूगोलवेत्ता थे। इनका जन्म क्वेडलीबुर्ख (प्रशिया) में तथा देहांत बर्लिन में हुआ। इनकी शिक्षा दीक्षा हाल नगर में हुई। ये आधुनिक भूगोल के संस्थापक तथा भूगोल के एक महत्वपूर्ण क्षेत्र 'तुलनात्मक भूगोल' के जनक माने जाते हैं।
इन्हें वर्लिन विश्वविद्यालय में भूगोल के विशेष प्रोफेसर का सम्मानित पद दिया गया, जहाँ इन्होंन आजीवन, लगभग चालीस वर्षों तक, सेवा की इनके पहले के भूगोल में दर्शन का प्रचुर प्रभाव था और भूगोल संबंधी मान्यताएँ तथा सिद्धांत बिना प्रेक्षण के ही स्थापित कर लिए जाते थे। ये पहले भूगोलवेत्ता थे, जिन्होंने इस प्रकार की भौगोलिक मान्यताओं को प्रस्थापित करनेवाले विद्वानों का घोर विरोध किया। इनके दृष्टिकोण से भूगोल को 'पृथ्वी के विज्ञान' (Earth Science) के रूप में होना चाहिए तथा उसकी मान्यताएँ एव सिद्धांत प्रेक्षण द्वारा निर्धारित होने चाहिए। इनका दृष्टिकोण भूगोल में मानवकेंद्रित (Anthropocentric) था, किंतु ये अतिवादी न थे। मानव तथा प्रकृति के परस्पर प्रभावकारी तथ्यों का वैज्ञानिक अध्ययन एवं विवेचन इनके मूलभूत उद्देश्य थे।
इनकी पुस्तकों में 'मनुष्य की प्रकृति एवं इतिहास पर भूगोल का प्रभाव' सर्वप्रमुख है। अन्य रचनाओं में 'यूरोप, एक भौगोलिक, ऐतिहासिक तथा तथ्यात्मक अध्ययन' प्रमुख है। (काशीनाथ सिंह)