रिचर्ड प्रथम (११५७-११९९) इंग्लैड के राजा जेनरी द्वितीय का तृतीय पुत्र था। वह सिंहहृदय के नाम से विख्यात हुआ। पिता की मृत्यु के बाद सन ११८९ में राजा बना। उसकी अधिकांश शासनावधि 'पावन धर्मयुद्ध' के संचालन एवं सफलता में कटी। उसने चर्च तथा राज्य के उच्च पदों की बिक्री तथा भारी करों के द्वारा युद्धव्यय चलाया। उसने एक सैनिक टुकड़ी फिलिस्तीन भेजकर अर्सुफ तथा जफ्राा के युद्धों में सलादीन को परास्त किया किंतु जेरुसलम प्राप्त करने में असफल रहा। लौटते समय वह जर्मनी के सम्राट् का दो वर्ष तक कैदी रहा। उसकी अनुपस्थिति में इग्लैंड का शासन, कैंटरबरी के आर्चबिशप ह्यूवर्ट (Hubert) द्वारा संचालित हुआ। इस शासन की महत्वपूर्ण घटनाएँ, जूरी प्रथा द्वारा न्याय तथा प्रथम करविरोधी सफल आंदोलन है। रिचर्ड निर्दयी था परंतु प्रतिहिंसक नहीं। व्यक्तित्व, वैभव, अतिव्ययता, तथा औदार्य इत्यादि विशेषताओं के अतिरिक्त वह तत्कालीन प्रतिस्पर्धा का ज्वलंत उदाहरण था।

रिचर्ड द्वितीय (१३६७-१४००) एडवर्ड (ब्लैक प्रिंस) का पुत्र, रिचर्ड द्वितीय, अपने प्रपिता एडवर्ड तृतीय की मृत्यु पर १३७७ ई. मं इंग्लैंड की गद्दी पर आरूढ़ हुआ। उसकी अल्पवयस्कता में राज्य संचालन एक प्रतिनिधि पषिद् को सौपा गया। उसका राज्यारोहण उस कठिन परिस्थिति में हुआ जब इंग्लैंड 'काली मृत्यु' के परिणाम से गुजर रहा था। श्रम वर्ग के असंतोष के फलस्वरूप १३८१ में कृषक विप्लव हुआ। रिचर्ड ने अपने विश्वसनीय सामंतों की सहायता से स्वेच्छा से शासन किया। १३८८ ई. में सामंतों ने एक विरोध संगठित कर कुछ समय के लिए शासनसूत्र हाथ में लिया तथा राजा के प्रिय पात्रों को मृत्यु के घाट उतार दिया। १३८९ ई. में राजा ने पुन: अपना प्रभाव दिखाकर शासन अपने हाथ में लिया तथा अधिक वर्षों तक समनीति से राज्य किया। किंतु १३९७ में राजा ने फिर स्वेच्छाचारी नीति अपनाई और उसे अपने चचेरे भाई हेनरी तथा लंकास्टर के ड्यूक द्वारा राज्य परित्याग के लिए विवश कर दिया गया। रिचर्ड, अपनी मृत्यु तक (१४००) बंदीगृह में रहा। वह योग्य, शिष्ट, निर्भीक, तथा अहंवादी व्यक्ति था किंतु उसमें स्वेच्छाचारिता तथा राजनीतिक अदूरदर्शिता थी।

रिचर्ड तृतीय (१४५२-८५) इंग्लैड का राजा (१४८३-१४८५)। यह यार्क के ड्यूक, रिचर्ड, का सबसे छोटा लड़का था। जून, १४८३ ई. में उसने राज्यसिंहासन पर अधिकार किया तथा अपने दोनों भतीजों को उसने लंदन के टावर (Tower) में बंद रखा और वहीं इन दोनों का रहस्यमय अंत हुआ। बकिंघम के ड्यूक ने विद्रोह का झंडा उठाया, किंतु उसका दमन किया गया। हरचमांड के अर्ल हेनरी ट्यूडर, ने, परिस्थिति से पूरा लाभ उठाया तथा एक वृहत् सेना के साथ वेल्स पर आ धमका। हरचर्ड को वॉसवर्थ के युद्धक्षेत्र में परास्त कर २२ अगस्त १४८५ को मार डाला। रिचर्ड वीर तथा प्रतिभावान् शासक था किंतु उसमें कूटनीति, निर्दयता तथा अनैतिकता के भाव भी विद्यमान थे। निर्दयता तथा उद्वेग दोनों के सम्मिश्रण के कारण उसका चरित्र विरोधामास की अनुभूति कराता है। (गिरिजाशंकर मिश्र)