रासीन, जाँ बैपटिस्ट (Racine Jean Baptiste) फ्रांस के इस महानतम दु:खांत नाटककार का जन्म सन् १६३९ में हुआ। इस प्रकार वह मोलिये तथा ला फांटेन का समकालीन था। अध्ययनशील प्रवृत्ति के कारण उसके हृदय में ग्रीक और लैटिन साहित्य के प्रति अनुराग उतपन्न हो गया था। सोफोक्लीज़ और यूरीपिडीज़ के प्रति उसकी सर्वाधिक श्रद्धा थी। सन् १६६४ में नाट्यलेखक के रूप में उसका साहित्यिक जीवन प्रारंभ हुआ, जब मोलिये की नाट्यमंडली के उसके प्रथम नाटक 'दि थीबाइड' या 'दि ब्रदर्स एनेमीज़' का अभिनय किया। परंतु उसकी सर्वाधिक सशक्त रचना 'एंड्रोमैच' थी जो सन् १६६७ में लिखी गई और अत्यंत सफल हुई। उसने भाग्य द्वारा उत्पीड़ित मानव के दु:खात्मक भवों का रहस्य पा लिया था। एक वर्ष बाद रासीन ने अपना एकमात्र सुखंत नाटक 'दी प्लीडर्स' लिखा, जिसमें फ्रांस की तत्कालीन न्यायव्यवस्था की व्यंग्यात्मक आलोचना है। सन् १६६९ में उसके 'ब्रिटेनिकस' तथा दूसरे ही वर्ष 'बीरेनियस' का अभिनय हुआ। 'बेरेनिस' की सफल्ता ने इसी विषय पर एक अन्य नाटक की रचना करनेवाले उसके प्रतिद्वंद्वी कार्नील से उसकी श्रेष्ठता सिद्ध की। ग्रीक और रोमन इतिहास को छोड़कर उसने 'बजेट' (Bajazet) की कथावस्तु तत्कालीन तुर्की से ग्रहण की। 'इफीजेनिया' (Ipigenia) में वह ग्रीक पौराणिक आख्यानों की ओर लौटता हुआ लगा। सन् १६७७ में 'फीड्रा' (Phaedra) का अभिनय ऐसे दर्शकों के समक्ष हुआ जिन्हें दु:खांत नाटकों का 'निर्दय' सौंदर्य पसंद नहीं आता था। तत्पश्चात् १२ वर्ष तक रासीन ने कोई दु:खांत नाटक नहीं लिखा। वह १४वें राजा लुई का जीवनवृत्त लिखने में प्रवृत्त हुआ। गहन धार्मिक भावना से वह बाइबिल से संबद्ध 'ईस्टर' (Esther) विषय पर एक करुणाप्रधान नाटक लिखने के लिए प्रेरित हुआ। बाइबिल से संबद्ध उसका दूसरा नाटक 'एथेली' (Athalie) है जिसका अभिनय सन् १६९१ में हुआ तथा जिसे कुछ लोग उसकी महत्तम कृति मानते हैं। फ्रेंच रंगमंच को यह उसकी अंतिम देन थी। धर्म की ओर अधिकाधिक प्रवृत्त होने के कारण वह अपना समय प्राय: धार्मिक विचारों में ही व्यतीत करता था, जब तक कि सन् १६९९ में उसकी मृत्यु नहीं हो गई।

दर्शकों एवं अभिनेताओं के हृदय में परिताप और क्लेश के समय परस्पर सहानुभूति की भावना उत्पन्न करने में रासीन सफल रहा। रासीन के दु:खांत नाटक मानव की दुर्बलताओं पर नियति की विजय प्रदर्शित करते हैं। रासीन समय, स्थान और विषय के नियमों के प्रति पूर्ण आस्था रखता था। नियमानुपालन में दृढ़ता और सरलता काव्य और संगीत प्रेम उसकी कला की विशेषताएँ हैं। (श्रीमती फ्रांस भट्टाचार्य)