राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के संस्थापक डाक्टर केशव बलीराम पंत हेडगेवार के शब्दों में ''राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का अर्थ है - राष्ट्र की सेवा करने हेतु स्वयं प्रेरणा से - स्वयं ही अग्रसर होनेवाले लोगों द्वारा राष्ट्रकार्य के लिए स्थापित संघ।''

नागपुर के एक वेदाध्यायी गरीब ब्राह्मण कुल में उत्पन्न हुए डाक्टर हेडगेवार विद्यार्थी जीवन में ही देश की आजादी की लड़ाई में कूद पड़े थे। सन् १९२१ और १९३० में वे राष्ट्रीय आंदोलन में जेल गए। देश में चलनेवाले सब प्रकार के कार्यों एवं नेताओं के साथ विचारमंथन के बाद वे इस निष्कर्ष पर पहुँचे कि असंगठित अवस्था, आत्मविस्मृति, परस्पर स्नेह का अभाव ही समाज का मुख्य रोग है और उसे दूर करने के लिए सुसंगठित तथा एकात्म-राष्ट्र-स्वरूप के साक्षात्कार से जाग्रत जीवन प्रस्थापित करना होगा।

सन् १९२५ में राष्ट्रीय स्वयंवेक संघ की स्थापना कर उन्होंने कार्य के अनुकूल एक अत्यंत सरल शाखा-कार्यपद्धति उपलब्ध कराई। 'हिंदुत्व ही राष्ट्रीयत्व' के आधार पर राष्ट्रजीवन के शुद्ध संस्कार व्यक्ति-व्यक्ति को प्रदान कर अनुशासित और संगठित लोगों का संघ बनाने के लिए सायं-प्रात: मैदानों पर शारीरिक, बौद्धिक कार्यक्रम शाखाओं होते हैं। भगवा ध्वज को प्रणाम कर शाखा का कार्य प्रारंभ होता है और समाप्ति पर मातृभूमि की वंदना के साथ 'भारतमाता की जय' कहकर ध्वजावतरण होता है। दैनंदिन शाखा-कार्य-पद्धति में संस्कारों पर बहुत बल दिया गया है। संघ ने किसी व्यक्ति को गुरु नहीं माना। सब आयु के, सब व्यवसाय, श्रेणी, जाति, पंथ के हिंदू बंधु इस शाखाकार्य में सम्मिलित होते हैं। व्यक्तिगत स्वार्थ और अहंकार को भूलकर एक दूसरे से सहयोग करने के लिए अनुशासन को संगठन में महत्वपूर्ण माना गया है।

संगठन का खर्च स्वयंसेवकों द्वारा आपस में एकत्रित धनराशि से चलता है। वर्ष भर में समाज जागरण के लिए संघ छह उत्सव आयोजित करता है। उनमें से एक गुरुपूर्णिमा महोत्सव पर स्वयंसेवक अपनी-अपनी शक्ति के अनुसार धन समर्पित करता है। इसी गुरुदक्षिणा के धन से कार्य-संचालन होता है। किंतु संघ में कोई भी कार्यकर्ता वैतनिक नहीं होता। कार्य के विस्तार के लिए सम्पूर्ण समय काम करनेवाले प्रचारक, संघचालक, कार्यवाही मुख्यशिक्षक, गुटनायकों की श्रेणियाँ हैं जो अहर्निश संगठन का कार्य करते हैं।

राष्ट्र के उत्थान के लिए चलनेवाले सामाजिक, राजनीतिक, आर्थिक सहकारिता आदि के ऐसे सभी कार्यों में संघ का स्वयंसेवक अपनी शक्ति बुद्धि से सम्मिलित होने के लिए स्वतंत्र है जो राष्ट्रीय एकात्मता और सुखी समाजजीवन के निर्माण में सहायक हो।

सन् १९४० के जून मास में हेडगेवार जी की मृत्यु हुई। मृत्यु से पूर्व उन्होंने इस संगठन के कार्य की धुरी श्री माधव सदाशिवराव गोलवलकर के हाथों में सौंप दी थी। श्री गोलवलकर जी, जो काशी हिंदू विश्वविद्यालय में प्राणिशास्त्र के अध्यापक रहने के कारण विद्यार्थियों के बीच प्रेमादर से 'गुरु जी' नाम से संबोधित हुए, इस संघ के सर्वोच्च संचालक थे। उनके नेतृत्व में देश में जिले जिले के छोरों तक संघ की शाखाएँ फैली हैं। प्रतिक्रियात्मक वृत्तियों को संघ में स्थान नहीं दिया जाता। संघ का विश्वास है कि सामर्थ्यशाली हिंदू भा अपने श्रेष्ठ मानवकल्याणकारी जीवनदर्शन को पुन: स्थापित कर न केवल स्वराष्ट्र जीवन को पुनर्जीवित करेगा वरन् ऐसा स्वाभिमानी समाज विश्व के अन्य मानवसमूहों को भी आकर्षित कर मानवकल्याण के कार्य में सहायक होगा।

संघ का केंद्रीय कार्यालय हेडगेवार भवन, नागपुर-२ में स्थित है। (श्रीशंकर अग्निहोत्री.)