राष्ट्रमंडल, ब्रिटिश ब्रिटिश राष्ट्रमंडल २३ सम्पूर्ण प्रभुत्व संपन्न राष्ट्रों और इनके अधीन राज्यों और एक स्वतंत्र संघ था। इन राष्ट्रों के नाम हैं - ब्रिटेन, कनाडा, आस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड, भारत, पाकिस्तान, श्रीलंका, घाना मलएशिया, नाइजीरिया, साइप्रस, सियरालियोन, टांगानिका-जंजीवार (ट्रांजानिया), जमैका, ट्रिनिडाड-टोबैगो, उगांडा, केन्या, माल्टा, जैबिया, गैविया और मारीशस।
राष्ट्रमंडल के सदस्यों के अधीन लगभग ५० राज्य हैं, जिनमें छोटे-छोटे द्वीप और विरल बस्तियों के प्रदेशों की संख्या अधिक हैं। इनमें ब्रिटेन के अधीन राज्यों की संख्या सर्वाधिक है, आस्ट्रेलिया और न्यूज़ीलैंड के भी अधीन कुछ राज्य हैं। सारे अधीन राज्य सदस्य राष्ट्रों से संबद्ध होने के कारण ब्रिटिश राष्ट्रमंडल में सम्मिलित हैं।
राष्ट्रमंडल के सब सदस्य राष्ट्र ब्रिटेन की महारानी को राष्ट्रमंडल का अध्यक्ष मानते हैं। ब्रिटेन, कनाडा, आस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड, श्रीलंका, सियरालियेन, जमैका, ट्रिनिडाड, टोबैगो, मलावी और माल्टा में राजतंत्र है जिनमें (ब्रिटेन को छोड़कर) एक गवर्नर जनरल महारानी का प्रतिनिधित्व करता है। भारत, पाकिस्तान, घाना, नाइजीरिया, टांगानिका जंजीबार (टांजानिया), केनिया और गैबिया गणराज्य हैं। मलएशिया स्वयं प्रभुतासंपन्न है। उगांडा का राष्ट्रपति ही राज्य का अध्यक्ष होता है।
कनाडा, आस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड में, जहाँ यूरोपीय बस्तियाँ अधिक हैं, १९वीं शताब्दी के मध्य से ही स्वायत्त शासन का विकास आरंभ हुआ। बीसवीं शती के पथ चतुर्थांश में ये देश अपन स्वतंत्र परराष्ट्र और गृह नीतियों के कार्यान्वयन की स्थिति में हो गए थे और स्टैट्यूट ऑव वेस्टमिंस्टर (१९३१) द्वारा उनकी संप्रभुता को औपचारिक मान्यता भी मिल गई। द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद ब्रिटिश राष्ट्रमंडल के अन्य देशों में स्वतंत्रता और अंतरराष्ट्रीय संप्रभुता का त्वरित गति से विकास हुआ। भारत और पाकिस्तान (१९४७), श्रीलंका (१९४८), घाना और मलाया संघ (वर्तमान मलएशिया, १९५७), नाइजीरिया तथा साइप्रस (१९६०), सियरालियोन और टांगानिका (१९६१), जमैका, ट्रिनिडाड, टोबैगो, और उगांडा (१९६२), जंजीबार और केनिया (१९६३), मलावी, मालटा, जैबिया (१९६४) और गैविया (१९६४) राष्ट्र क्रमश: स्वतंत्र होते चले गए।
स्वतंत्र राष्ट्रों के रूप में संघटित होने के कारण ब्रिटिश राष्ट्रमंडल के सदस्यों की विदेश, अर्थ और सुरक्षा नीतियों में केंद्रीय प्रशासन की ओर से किसी प्रकार के हस्तक्षेप का प्रश्न ही नहीं उठता। प्रत्येक सदस्य राष्ट्र अपनी नीतियों में स्वतंत्र है और अपने अंतरर्राष्ट्रीय दायित्वों का सारा बोझ स्वयं वहन करता है। राष्ट्रमंडलीय देशों के परस्पर संबंधों की दृष्टि से यह आवश्यक है कि उनमें सर्वमान्य हितों के लिए अधिकतम वैचारिक एकरूपता और सक्रिय सहयोग स्थापित करने के प्रयत्न किए जाएँ। इसके लिए प्राय: सदस्य राष्ट्रों के बीच सरकारों, सरकारी मंत्रियों, अधिकारियों और सरकारी प्रतिनिधियों में सौहार्द्रपूर्ण वातावरण में खुले मस्तिष्क से विचार-विमर्श, वार्ता, पत्राचार और दैनिक व्यक्तिगत संपर्कों आदि का सहारा लिया जाता है।
यद्यपि राष्ट्रमंडल का कोई भी सदस्य राष्ट्र विधानत: अपनी अपनी विदेश और सुरक्षा नीति पर अन्य सदस्य से परामर्श के लिए बाध्य नहीं है, फिर भी विचारों का मुक्त और सतत आदान-प्रदान राष्ट्रों के नीतिनिर्धारण में सहायक होता है, इसे सभी स्वीकार करते हैं। द्वितीय विश्वयुद्ध के पूर्व साम्राज्य में राष्ट्रमंडल की सदस्यता का यह दायित्व तय कर लिया गया था कि प्रत्येक सदस्य आवश्यकतानुसार अन्य सदस्यों से अपनी उन नीतिगत योजनाओं के विषय में परामर्श कर ले, जो उनके निजी हितों, विशेषतया विदेशी मामलों को प्रभावित करें। इस प्रकार ब्रिटिश सरकार का यह सामान्य दायित्व है कि अपनी सारी योजनाओं की जो राष्ट्रमंडल के हितों को प्रभावित करती हो, अन्य सदस्य सरकारों को सूचना दे दे, वह इसलिए कि वे उन मामलों पर, यदि उनकी इच्छा हो तो, अपना मत व्यक्त कर सकें। यह परामर्श संधि या समझौते के स्तर का नहीं होता, और कोई सदस्य राष्ट्र अन्य सदस्य राष्ट्र के उत्तरदायित्वों में भागीदार होने के लिए बाध्य नहीं होता।
परामर्श प्रणाली - संक्षेप में परामर्श और सहयोग की प्रणाली निम्नलिखित है। एक ओर दैनिक मामलों पर विचार करने के लिए प्रत्येक सदस्य राष्ट्र का उच्चायुक्त अन्य सदस्य राष्ट्रों की राजधानियों में नियुक्त रहता है तथा लंदन स्थित राष्ट्रमंडल संबंध कार्यालय (Commonwealth Relation office) और अन्य देशों के विदेश विभागों द्वारा भी इसकी व्यवस्था होती है। दूसरी ओर सुविधानुसार समय समय पर प्रधान मंत्रियों तथा वित्त और विदेशी मामलों से संबंधित मंत्रियों के सम्मलेन होते रहते हैं। उच्च स्तरीय सम्मलेनों के अतिरिक्त सदस्य राष्ट्रों के मंत्रिगण भी एक दूसरे देशों की यात्रा किया करते हैं। राष्ट्रमंडल के मंत्रीगण अंतरर्राष्ट्रीय सम्मेलनों - राष्ट्रसंघ, अंतरराष्ट्रीय बैंक या व्यापार तथा टेरिफ संधि आदि में भी मिलते जुलते रहते हैं। विभागीय स्तरों पर सिविल अधिकार और तकनीकी विशेषज्ञ भी परस्पर अनेक मामलों पर परामर्श किया करते हैं। आर्थिक नीतियों के निर्धारण के लिए कामनवेल्थ एकॉनॉमिक कंसल्टेटिव कौंसिल के तत्वावधान में समय समय पर विभिन्न स्तरीय बैठकें होने की भी व्यवस्था है। राष्ट्रमंडल के प्रतिनिधि अन्य देशों की राजधानियों - वाशिंगटन और पेरिस आदि में भी विचार-विमर्श का प्रबंध रखते हैं, और राष्ट्रसंघ में भी कामनवेल्थ का प्रतिनिधिमंडल सबसे संपर्क करने की व्यवस्था करता है। महत्वपूर्ण विषयों की स्थिति का अध्ययन और उचित निर्देश के लिए अनेक समितियाँ और संगठन भी बने हुए हैं। राष्ट्रमंडल के भिन्न भिन्न स्थानों पर वाणिज्य और सांस्कृतिक प्रदर्शनियाँ, पुस्तकालय, चिकित्सा, शिक्षा और वित्त संबंधी सरकारी और गैरसरकारी सम्मेलन, परामर्श और सहयोग के धरातल को सुदृढ़ करते हैं।
राष्ट्रमंडल केवल सरकारी स्तर के सहयोग की संस्था नहीं है वरन् जनता के परस्पर संपर्क का भी संगठन है, जिसमें सहयोग का रूप प्राय: व्यक्तिगत तथा निजी मेल जोल होता है। शिक्षा संस्थाओं, अस्पतालों, चर्च, व्यक्तिगत संगठनों और व्यापार आदि में घनिष्ठ संपर्क रहता है। कला, खेलकूद तथा अन्य क्रियाकलापों द्वारा जीवन संबंधों में निकटता बढ़ती रहती है। छात्रों का भी, अन्य सदस्य राष्ट्रों में आना जाना दृढ़तर संपर्क स्थापित करने में सहायक होता है। 'कामनवेल्थ पार्लियामेंटरी एसोसिएशन' (Commonwealth Parliamentary Association) एक गैरसरकारी संगठन है जिसके वार्षिक सम्मेलनों में राष्ट्रमंडल के सभी संसद् सदस्य विचारों के स्वतंत्र आदानप्रदान का अवसर पाते हैं।
अधीन राज्य - उन राज्यों में, जो अब भी ब्रिटेन के अधीन हैं, अब संवैधानिक विकास हो रहा है। १८ फरवरी, १९६५ को गैबिया स्वतंत्र हो गया। ब्रिटिश गायना में आंतरिक स्वराज्य है, उसमें नई निर्वाचनपद्धति अपनाई गई है। उसकी पूर्ण स्वतंत्रता स्वतंत्रता की तिथि निश्चित होना शेष है। वारबादोस, जिसमें पूर्ण आंतरिक स्वराज्य है और एंटीगुआ, डॉमिनिका, मांतेसेरात, सेंट किट्स-नेविस-एंग्विला, सेंट लूसिया और सेंट बिसेंट (सभी में आंतरिक स्वराज्य हैं) एक संघ बनाने की योजना पर विचार कर रहे हैं जिसका संविधान भी विचाराधीन है। ग्रेनाडा में भी पूर्ण आंतरिक स्वराज्य है, और इसको स्वतंत्र ट्रिनिडाड तथा टोबैगो के साथ मिलाने की योजना बनाई जा रही है। जनवरी, १९६४ से ब्रिटिश होंडुरास में भी आंतरिक स्वराज्य स्थापित हो गया है।
कुछ अधीन प्रदेश, जिनी कुल जनसंख्या १ करोड़ से कम है, बहुत छोटे हैं और प्राकृतिक साधनों के अभाव में शीघ्र उन्नति करने में असमर्थ हैं। कुछ की जनसंख्या १ लाख से भी कम है। हांगकांग जैसे प्रदेश ब्रिटिश संरक्षण से हटने की स्थिति में नहीं है। बहुत छोटे राज्यों को स्वतंत्र होने में जो कठिनाइयाँ होती हैं उन्हें दूर करने का प्रयोग, अदन रक्षित प्रदेशों में किया जा रहा है जहाँ १९ में से १३ प्रदेशों ने दक्षिण अरब संघ बनाने का निश्चय किया है।
स्वतंत्रता के लिए प्रयत्न - चूंकि राष्ट्रमंडलीय देशों के अधीनस्थ राज्यों की परिस्थितियाँ भिन्न भिन्न हैं इसलिए उनमें राजनीतिक उत्थान के लिए काई एक निश्चित मार्ग नहीं है, किंतु जहाँ परिस्थितियाँ समान हैं, विकास का एक ढंग निश्चित कर ही लिया जाता है।
राजनीतिक उन्नति के लिए निश्चित विधि प्रादेशिक या क्षेत्रीय सरकारों का निर्माण करना है, जिनमें विधानमंडल, कार्य समिति (जिसका अध्यक्ष गवर्नर होता है) और स्वतंत्र न्यायपालिका सम्मिलित रहते हैं। स्थानीय जनता को शासन में अधिकाधिक उत्तरदायित्व प्रदान करने के लिए संविधान में भी समय-समय पर संशोधन-परिवर्तन होता रहता है।
प्रारंभिक अवस्थाओं में सलाहकार समिति की सहायता से अधिकारियों द्वारा प्रशासन का काम होता है। इस दशा में विधान समिति में उच्चपदीय सरकारी अधिकारियों (पदेन सदस्य जैसे मुख्य सचिव, एटार्नी जनरल और वित्तसचिव या गवर्नर द्वारा मनोनीत अन्य अधिकारी) और गवर्नर द्वारा नामांकित गैरसरकारी उच्चवर्गीय नागरिकों को नियुक्त किया जाता है। बाद में निर्वाचित सदस्य पहुँचते हैं और जब निर्वाचित सदस्यों का बहुमत हो जाता है तो विधानसमिति से सरकारी और गैरसरकारी अधिकारियों का कार्य समाप्त कर दिया जाता है। इसके साथ ही मताधिकार क्रमश: विस्तृत होता जाता है। इसके लिए (१) आय संबंधी या किसी अन्य प्रकार की विशेष योग्यता की शर्तें समाप्त कर दी जाती हैं या परोक्ष निर्वाचन, यथा विशेष निर्वाचक मंडल द्वारा निर्वाचन, की पद्धति हटा दी जाती है और उसके स्थान पर प्रत्यक्ष निर्वाचन प्रणाली लागू कर दी जाती है।
कार्यकारिणी (एक्जीक्यूटिव कौंसिल) की रचना में भी इस ढंग के परिवर्तन लाए जाते हैं। पहले सभी पदों पर सरकारी अधिकारी होते हैं, बाद में मनोनीत गैरसरकारी सदस्यों और फिर विधान मडल के निर्वाचित सदस्यों को क्रमश: स्थान दिया जाता है। निर्वाचित सदस्य शनै: शनै: सरकारी विभागों का उत्तरदायित्व सँभाल लेते हैं। तत्पश्चात् मंत्रियों के रूप में कार्यसमिति में उनका बहुमत हो जाता है। अंत में शेष सरकारी अधिकारी भी हटा दिए जाते हैं, और इस प्रकार निर्वाचित कार्यकारिणी निर्वाचित विधानमंडल के प्रति उत्तरदायी हो जाती है।
आंतरिक स्वशासन के काल में गवर्नर के माध्यम से ब्रिटिश सरकार कुछ निश्चित विभागों जैसे सुरक्षा और विदेश संबंधों की देखरेख करती हैं, किंतु मंत्रीगण क्रमश: इन विषयों से इस प्रकार संबद्ध कर दिए जाते हैं कि वे स्वतंत्रता के बाद पूरे उत्तरदायित्व स विभागों का भार वहन कर सकें।
स्थानीय शासन और लोकसेवा में भी ऐसे ही परिवर्तन होते हैं। द्वितीय और तृतीय श्रेणी की प्रशासकीय सेवाओं में स्थानीय लोगों को उचित अनुपात में भर्ती किया जाता है। ब्रिटिश सहायता से विशेष शिक्षा और प्रशिक्षण द्वारा प्रथम श्रेणी के विभागों में भी अधिकाधिक लोग नियुक्त किए जाते हैं।
सवैधानिक क्रियाओं पर सदैव समीक्षात्मक दृष्टि रखी जाती है, जिससे राजनीतिक अनुभवों की वृद्धि के साथ ऐसे सुधार किए जा सकें कि परिणामत: उपनिवेश में स्वशासन और अंत में स्वतंत्रता की स्थापना हो सके।
अधिकांश अधीन राज्यों ने राष्ट्रमंडल का सदस्य बने रहना स्वीकार कर लिया है, यद्यपि कुछ अवश्य स्वतंत्र होने के साथ ही उससे अलग हो गए। १९४८ में बर्मा स्वतंत्र होने के बाद राष्ट्रमंडल का सदस्य नहीं रहा। १९६० में ब्रिटिश सोमालीलैंड ने पूर्ववर्ती संयुक्त राष्ट्रसंघ द्वारा 'शासनादिष्ट सोमालीलैंड' ने पूर्ववर्ती संयुक्त राष्ट्रसंघ द्वारा 'शासनादिष्ट सोमालीलैंड' से मिलकर स्वतंत्र और विस्तृत सोमालिया राज्य बना लिया। १९६१ में दक्षिणी कैमरून स्वतंत्र हुआ। उसने राष्ट्रमंडल से अलग होकर पड़ोसी कैमरून गणराज्य (Republic Cameroun) से संबंध का कैमरून संघ गणराज्य (Federal Republic of Cameroun) स्थापित कर लिया।
पश्चिमी समोआ, जो पहले न्यूजीलैंड द्वारा शासित ट्रस्ट टेरीटरी (Trust Territory, शासनादिष्ट राज्य) था, १९६२ में स्वतंत्र हुआ। यद्यपि पश्चिमी समोआ ने राष्ट्रमंडल की सदस्यता के लिए आवेदन नहीं किया, तथापि न्यूजीलैंड उसे अब भी राष्ट्रीयता आदि के मामलों को छोडकर अन्य बातों में राष्ट्रमंडल का सदस्य मानता है। कुछ विशेष मामलों में अन्य राष्ट्रमंडलीय देशों के साथ पश्चिमी समोआ के संबंधों में भी यही स्थिति है।
राष्ट्रमंडल और विश्व - संपूर्ण राष्ट्रमंडल का क्षेत्र, अधीन राज्यों का मिलाकर, पृथ्वी के लगभग चौथाई भाग के बराबर है और जनसंख्या का भी अनुपात प्राय: इतना ही है। प्रत्येक सदस्य राष्ट्र अपने निजी इतिहास, विस्तार, भौगोलिक स्थिति, वर्ण, धर्म, भाषा जनसंख्या, औद्योगिक और अंतरराष्ट्रीय स्थिति के अनुसार विकास करता रहा है। उदाहरण के लिए, कनाडा अर्थ और सुरक्षा के मामले में संयुक्त राज्य अमरीका से संबद्ध है। ब्रिटेन ने ब्रूसेल्स संधि और यूरोपियन फ्री ट्रेड एसोसियेशन के अंतर्गत पश्चिमी यूरोप के अनेक देशों और नार्थ अटलांटिक ट्रीटी के अंतर्गत उत्तरी अटलांटिक देशों से संबंध स्थापित किए हैं। आस्ट्रेलिया और न्यूज़ीलैंड जिनके निवासी मुख्यत: अंगरेजी नस्ल के हैं, भौगोलिक और सामरिक दृष्टि से एशिया के भाग हैं। कनाडा में विशाल जनसंख्या अंग्रेजों से भिन्न जाति की है। राष्ट्रमंडल के एशियाई, अफ्रीकी और केरिबियाइ सदस्यों की अपनी अलग अलग संस्कृतियाँ और धार्मिक परंपराएँ हैं जिनमें से मंडल के पुराने सदस्यों का कोई मेल नहीं है और वे सभी भिन्न भिन्न सामाजिक, राजनीतिक परिवेशों में रहते हैं। अतएव यह स्वाभाविक है कि भिन्न भिन्न देशों के उनके परिवेश और ऐतिहासिक अनुभवों के आधार पर अंतरराष्ट्रीय समस्याओं के प्रति दृष्टिकोणों में बहुत अंतर रहता है। संयुक्त राष्ट्र संघ में भी अनेक मत प्राय: विभाजित हो जाते हैं, यद्यपि इस प्रकार का विभाजन उनके सामान्य हितों को हानि नहीं पहुँचाता।
राष्ट्रमंडल के सदस्य व्यापार, वाणिज्य और टेरिफ के संबंध में स्वतंत्र रूप से सधियाँ करते हैं, और विदेशों में उनके निजी वाणिज्य प्रतिनिधि रहते हैं। किंतु वित्तीय मामलों पर सदस्य राष्ट्रों में बराबर परामर्श होता रहता है। राष्ट्रमंडलीय संबंधों के परिणामस्वरूप सदस्यों को पूँजी विनियोग सुलभ किया गया है, और टैरिफल पद्धति में भी प्रत्येक के लिए कुछ वरीयता की सीमा निर्धारित की गई है। फिर भी राष्ट्रमंडल को एक संकीर्ण वित्तीय इकाई नहीं बनने दिया जाता। स्टर्लिग (ब्रिटिश मुद्रा) क्षेत्र, जो द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद संसार का सबसे बड़ा मुद्राक्षेत्र था, मुख्यत: राष्ट्रमंडलीय देशों में था। (इसमें कनाडा, जो कि भौगोलिक और आर्थिक दृष्टि से उत्तरी अमरीका का एक भाग है, सम्मिलित नहीं है। यह स्टर्लिग और डालर क्षेत्रों में मध्यममार्गी है।) इसकी कार्यप्रणाली ने राष्ट्रमंडलीय देशों में पारस्परिक सहयोग और सद्भावना की, तथा मतभेदों के अवसर पर कुछ सीमा तक सहकारिता की आवश्यकता उत्पन्न कर दी है। स्टर्लिंग क्षेत्र ने केवल राष्ट्रमंडलीय देशों की ही नहीं, वरन् विश्वव्यापार की भी बड़ी सेवा की है।
कोलंबो योजना मूलत: राष्ट्रमंडलीय योजना थी, जिसका उद्देश्य एशियाई सदस्यों को तकनीकी (तकनीकी विशेषज्ञों सहित) बड़े बड़े उपकरणों तथा प्रशिक्षण सुविधाओं की सहायता प्रदान करना था। कालांतर में यह योजना राष्ट्रमंडलेतर एशियाई देशों के लिए भी, जो अपने जीवन स्तर को ऊँचा करने के लिए संघर्षशील थे, बढ़ा दी गई।
कोलंबो योजना मूलत: राष्ट्रमंडलीय योजना थी, जिसका उद्देश्य एशियाई सदस्यों को तकनीकी (तकनीकी विशेषज्ञों सहित) बड़े बड़े उपकरणों तथा प्रशिक्षण सुविधाओं की सहायता प्रदान करना था। कालांतर में यह योजना राष्ट्रमंडलेतर एशियाई देशों के लिए भी, जो अपने जीवन स्तर को ऊँचा करने के लिए संघर्षशील थे, बढ़ा दी गई।
मांट्रील सम्मेलन (१९५८) में हुए निर्णय के अनुसार तत्कालीन आर्थिक परामर्शदात्री समिति राष्ट्रमंडल के तत्वावधान में 'कामनवेल्थ इकनॉमिक कंसल्टेटिव कौंसिल' के नाम से गठित हुई, जिसकी उच्च स्तरीय समिति में राष्ट्रमंडलीय देशों के वित्त और तत्संबंधी मंत्रीगण होते हैं, जा परस्पर आवश्यकतानुसार समय समय पर मिला करते हैं। इस प्रकार की एक बैठक १९६० में स्पेशल कामनवेल्थ अफ्रीकन असिस्टेन्स प्लान (अफ्रीका के हेतु राष्ट्रमंडलीय सहायता की विशेष योजना) निर्माण के लिए हुई थी, जिसके अंतर्गत अफ्रीकी सदस्यों को उभयदेशीय ढंग पर या अंतरराष्ट्रीय संगठनों के माध्यम से तकनीकी सहायता दी जा रही है।
एशियाई और अफ्रीकी देशों की पूर्ण राष्ट्रमंडलीय सदस्यता ने अनेक राष्ट्रपरिषदों में नए प्रभावों तथा नये दृष्टिकोणों को प्रस्तुत किया है। इससे विभिन्न वर्णों के लोगों के मिलकर काम करने और सहिष्णुता के मार्ग की समस्याएँ, जिनके संबंध में सदस्यों के हृदय में तीव्र भावनाएँ उठती रहती हैं, हल करने में सहायता का मार्ग प्रशस्त कर दिया है। मई, १९६० और मार्च, १९६१ के प्रधान मंत्री सम्मलेनों में इसका उदाहरण मिला था जिनमें दक्षिण अफ्रीका की वर्णभेदनीति पर विचार हुआ था। मार्च, १९६१ के सम्मलेन में दक्षिण अफ्रीका ने अपने यहाँ गणतंत्रीय सरकार स्थापित करने के वादे का संकेत करते हुए राष्ट्रमंडल में बने रहने की याचना की थी। १५ मार्च १९६१ को प्रकाशित प्रधानमंत्री की संयुक्त विज्ञप्ति में कहा गया था, इस आवेदन के संबंध में सम्मेलन ने, दक्षिण अफ्रीका के प्रधान मंत्री की सहमति से वहाँ की केंद्रीय सरकार की रंग नीति पर विचार किया। दक्षिण अफ्रीका के प्रधान मंत्री ने अन्य प्रधान मंत्रियों को सूचित किया - 'कि सदस्य देशों की सरकारों के प्रतिनिधियों द्वारा व्यक्त विचारों और दक्षिण अफ्रीका की केंद्रीय सरकार की रंग नीति के विषय में उनकी भावी योजनाओं के संकेतों के प्रकाश में, उन्होंने राष्ट्रमंडल का सदस्य बने रहने का दक्षिण अफ्रीकी गणराज्य का आवेदन पत्र वापस ले लिया है।' संसार के विभिन्न प्रश्नों तथा राष्ट्रमंडल के आंतरिक मामलों में भी, राष्ट्रमंडल के बहुजातीय स्वरूप से तथा जाति संबंधी समस्याओं पर सदस्य राष्ट्र जिस दृष्टिकोण से विचार करने को सन्नद्ध हैं, उससे मंडल का नया चित्र सामने आया है।
राष्ट्रमंडल में केवल विभिन्न जातिरंग के स्वयं प्रभुतासंपन्न राष्ट्र ही नहीं सम्मिलित हैं, वरन् इसमें तटस्थ तथा किसी गुट से जुड़े रहनेवाले भी सदस्य हैं। इस प्रकार इस विश्व की एक प्रतिनिधि संस्था है। संसार के बड़े भूभाग पर फैली होने के साथ-साथ यह संस्था विश्व में व्याप्त सभी समस्याओं में भागीदार बनती है। साथ ही इसके कई सदस्य देशों की राय है कि इसमें बने रहने से उन्हें विश्व राजनीति की कटुता का तीक्ष्ण अनुभव नहीं होने पाता। राष्ट्रमंडल एक दूसरे के कार्यों के सहृदय मूल्याकंन की इच्छा, मैत्रीपूर्ण संगठन में विश्वास और अंतरराष्ट्रीय समाज के ढाँचे में राष्ट्रों के मध्य भ्रातृत्व भावना का मूर्तिमान स्वरूप है।