राष्ट्रभाषा प्रचार समिति, (वर्धा) महात्मा गांधी की प्रेरणा से सन् १९३६ के हिंदी साहित्य सम्मेलन (प्रयाग) के नागपुर अधिवेशन में एक प्रस्ताव द्वारा डॉ. राजेंद्रप्रसाद की अध्यक्षता में राष्ट्रभाषा प्रचार समिति, वर्षा का गठन हुआ।

दक्षिण भारत को छोड़कर शेष हिंदीतर भाषी प्रदेश समिति का कार्यक्षेत्र है। भारत में समिति से संबद्ध १७ प्रांतीय समितियाँ हैं जो स्वतंत्र रजिस्टर्ड संस्थाएँ हैं और अपने अपने क्षेत्र में हिंदी का प्रचार कार्य करती हैं।

दक्षिण अफ्रका, पूर्व अफ्रका, लंका, जापान, इंग्लैंड, स्पेन, जर्मनी तथा चेकोस्लावेकिया आदि विदेशों में भी हिंदी-प्रचारकार्य में समिति सहयोग देती और सहायता करती है। दक्षिण तथा पूर्व अफ्रीका विशेष उल्लेखनीय हैं। प्रति वर्ष अफ्रीका के सहस्रों परीक्षार्थी समिति की परीक्षाओं में सम्मिलित होते हैं।

समिति का केंद्रीय कार्यालय वर्धा में हैं। वर्धा स्टेशन के पास ही १७ एकड़ भूमि पर हिंदी नगर बसा हुआ है जहाँ समिति का विशाल कार्यालय है तथा कार्यकर्ता निवास करते हैं।

राष्ट्रभाषा के प्रचार में परीक्षाओं का माध्यम उपयेगी होगा, इस विचार से समिति सन् १९३७ से विभिन्न परीक्षाओं का संचालन करती आ रही है। राष्ट्रभाषा प्राथमिक, राष्ट्रभाषा प्रारंभिक, राष्ट्रभाषा प्रवेश और राष्ट्रभाषा परिचय समिति की प्रचार परीक्षाएँ हैं। राष्ट्रभाषा कोविद, राष्ट्रभाषा रत्न और राष्ट्रभाषा आचार्य उपाधि परीक्षाएँ हैं।

इनके अलावा प्रादेशिक भाषाओं की परीक्षाओं का भी संचालन समिति करती है। इसलिए विभिन्न प्रदेशों से चुने हुए २१ सदस्यों की एक परीक्षा समिति है। समिति की परीक्षाओं का जनता में आदर है। केंद्रीय सरकार के विभिन्न विभागों द्वारा, राज्य सरकारों द्वारा और विभिन्न विश्वविद्यालयों द्वारा समिति की ये परीक्षाएँ मान्य हैं।

समिति के परीक्षाकेंद्रों की संख्या ४००० से ऊपर है। वर्ष में तीन बार - सितंबर, फरवरी और अप्रैल में - परीक्षाएँ होती है। प्रति वर्ष तीन लाख से अधिक परीक्षार्थी समिति की विभिन्न परीक्षाओं में सम्मिलित होते हैं।

अब तक ४० लाख से अधिक परीक्षार्थी समिति की परीक्षाओं में सम्मिलित होकर हिंदी का ज्ञान प्राप्त कर चुके हैं।

८००० से अधिक राष्ट्रभाषा प्रचारकों का सक्रिय सहयोग समिति को प्राप्त है। निष्ठावान हिंदीप्रेमी प्रचारक हिंदी के प्रचारक्षेत्र में अपनी अवैतनिक सेवाएँ देते हैं। उसी प्रकार ४००० से अधिक केंद्र व्यवस्थापक निस्वार्थ सेवा द्वारा प्रचारकार्य को आगे बढ़ाते हैं।

समिति ने पाठ्य पुस्तक निर्माण कार्य के अंतर्गत लगभग सौ पुस्तकें प्रकाशित की हैं। साहित्य-निर्माण योजना के अंतर्गत राष्ट्रभाषा कोश, फ्रेंच स्वयं शिक्षक, भारतीय वाङ्मय के तीन भाग, सोरठ तेरा बहता पानी, धरती की ओर, लोकमान्य तिलक, मिर्ज़ा गालिब आदि पुस्तकें प्रकाशित हुई हैं।

देवनागरी माध्यम से विभिन्न भारतीय भाषा सीखने सिखाने की दृष्टि से 'भारत भारती' नामक पुस्तकमाला प्रकाशित हा चुकी हैं 'रजत जयंती साहित्य' के रूप में 'रजत जयंती ग्रंथ' के अलावा 'कविश्री माला' के अंतर्गत २५ ग्रंथ प्रकशित किए गए हैं। प्रमुख भारतीय भाषाओं के दो दो कवियों पर स्वतंत्र रूप से एक ग्रंथ प्रकाशित किया गया है। 'कविश्री माला' विशेष लोकप्रिय बनी। समिति का अपना एक सुव्यवस्थित प्रेस है। इसकी लागत लगभग ४ लाख रुपया है।

समिति की ओर से प्राय: प्रति वर्ष राष्ट्रभाषा प्रचार सम्मेलन का आयोजन भारत के विभिन्न स्थानों पर होता है, जहाँ हजारों की संख्या में प्रतिनिधि इकट्ठे होकर राष्ट्रभाषा की समस्याओं पर विचार विनिमय करते हैं।

समिति प्रति वर्ष हिंदीतर भाषी किसी ऐसे विद्वान् को १५०१ रु. का महात्मा गांधी पुरस्कार दती है जिसने अपनी लेखनी द्वारा राष्ट्रभाषा हिंदी की सेवा की हो। अब तक के पुरस्कृत विद्वान् ये हैं - आचार्य क्षितिमोहन सेन, महर्षि श्रीपाद दामोदर सातवलेकर, बाबूराव विष्णु पराडकर, आचार्य विनोवा भावे, पं. सुखलाल संघवी, पंडित संत रामजी, आचार्य काका कालेलकर, अनंत गोपाल शेवड़े तथा डा. रांगेय राघव।

समिति की प्रेरणा पर सम्पूर्ण भारत में १४ सितंबर को 'हिंदी दिवस' मनाया जाता है। समिति ने सन् १९४९ से इसके आयोजन का प्रबंध किया है।

समिति के मुखपत्र 'राष्ट्रभाषा' में राष्ट्रभाषा प्रचार संबंधी विभिन्न जानकारी दी जाती है। समिति की साहित्यिक पत्रिका 'राष्ट्रभारती' सन् ५१ से निकलती आ रही है। यह अंतरप्रांतीय भारतीय साहित्य की प्रतिनिधि मासिक पत्रिका है।

समिति की प्रवृत्तियों में राष्ट्रभाषा महाविद्यालय सबसे पुरानी प्रवृत्ति है। राष्ट्रभाषा रत्न के अध्यापन की इसमें व्यवस्था है। इसके साथ ही गत ९ वर्ष से नागा प्रदेश के भाई बहनों के दल वर्धा बुलाए जाते हैं, और उन्हें हिंदी का ज्ञान कराया जाता है। अब तक लगभग ८० नागा भाई बहन हिंदी सीखकर वहाँ हिंदी का प्रचार कर रहे हैं।

समिति के पास एक समृद्ध पुस्तकालय है जिसमें लगभग १५ हजार पुस्तकें हैं। साथ में एक अच्छा वाचनालय भी है। (मं.रा.प्र.)