राव रत्नहाड़ा राव भोज हाड़ा का पुत्र। १६०८ में जहाँगीर की सेवा में पहुँचा, और इसे संरबुलंदराय की उपाधि दी गई। राणा अमर सिंह के विरुद्ध राजकुमार खुर्रम का सहायक नियुक्त हुआ। दक्षिण पर होनेवाले आक्रमणों में भी इसकी नियुक्ति हुई, और पदोन्नति हुई। राजकुमार शाहजहाँ के विद्रोही होने पर इसने बड़ी निष्ठा से सम्राट् की ओर से युद्ध किया। सरबुलंदराय को पाँचहजारी ५००० सवार का मंसब प्राप्त हुआ। इसके साथ 'रावराजा' की सम्मानित उपाधि मिली। शाहजहाँ के सत्तारूढ़ होने पर यह महावतखाँ खानखाना के साथ काबुल में उज़बेगों के उपद्रवों का दमन करने के लिए नियुक्त हुआ। तेलंगाना पर भी अधिकार करने के लिए भेजा गया था। बाद में शाहजहाँ ने इसे दरबार में बुलवा लिया। १६२९ ई. में बालाघाट में इसकी मृत्यु हो गई।