रावण लंका का प्रतापी और अत्यंत शूरवीर राक्षस सम्राट्। यह ऋषि पुलस्त्य का पौत्र तथा विश्रवा का पुत्र था। इसकी माता का नाम कैकसी था। इसे दो भाई और थे - कुंभकर्ण तथा विभीषण। मंदोदरी तथा धान्यमालिनी उसकी दो स्त्रियाँ थीं। इनके सिवा उसने युद्ध में परास्त कर अनेक देवों, गंधर्वों आदि की कन्याओं से भी विवाह किया था, उसके कई पुत्र थे, जिनमें मुख्य थे मेघनाद, अक्ष, अतिकाय, नरांतक, देवांतक आदि।
कामिल बुल्के के मतानुसार 'रावण और उसकी राक्षस प्रजा का विंध्य प्रदेश तथा मध्य भारत में निवास करनेवाली अनार्य जातियों से कुछ न कुछ संबंध अवश्य था।' कहते हैं, इसके दस मुँह और बीस हाथ थे। इसने कठिन तपस्या के उपरांत ब्रह्मा से यह वरदान प्राप्त किया था कि नर और बानर को छोड़कर यह किसी के हाथ मारा न जा सके। इस प्रकार अत्यंत शक्तिशाली और अजेय बनकर यह उद्दाम प्रकृति का तथा अत्याचारी हो गया। अपनी बहन शूर्पणखा के अपमान तथा राम द्वारा खरदूषण के वध से क्रुद्ध होकर इसने गोदावरी तट पर स्थित पंचवटी से सीता का हरण कर लिया। राम ने सुग्रीव और हनुमान की सहायता से बानरों की सेना तैयार कर लंका पर चढ़ाई कर दी। रावण ने दृढ़ता से युद्ध करते हुए राम के प्रचंड शस्त्रास्त्रों का सामना किया किंतु अंत में उसकी पराजय हुई। उसकी मृत्यु से सुर, नर, मुनि, सबके दु:ख दूर हुए और समस्त संसार को उसके आतंक से छुटकारा मिला।
यद्यपि अपने कुकृत्यों तथा अनाचारों के कारण उसकी गणना राक्षस श्रेणी में की जाने लगी थी, तथापि वस्तुत: वह उच्च वंश में उत्पन्न अत्यंत पराक्रमी, साहसी और राजनीतिनिपुण महापुरुष था। वह वेदों का पारंगत विद्वान् और विविध शास्त्रों का ज्ञाता था। उसके नाम से प्रचलित ऋग्वेद का एक भाष्य और वेदों का एक पदपाठ भी उपलब्ध है। निम्न ग्रंथ उसके लिखे बताए जाते हैं, यद्यपि इस संबंध में कुछ मतभेद भी है - कुमारतंत्र, अर्कप्रकाश, इंद्रजाल, ऋगवेद भाष्य, प्राकृत कामधेनु, प्राकृत लंकेश्वर आदि। (मुकुंदीलाल श्रीवास्तव)