रायटर्स विश्व का सर्वप्रथम और सबसे बड़ी अंतरराष्ट्रीय समाचार एजेंसी। पाल जूलियस द रायटर नामक एक जर्मन द्वारा १८५० में सर्वप्रथम आचेन (जर्मनी) में स्थापित 'रायटर्स' की कहानी अपने ढंग की अकेली एक ऐसी अंतरराष्ट्रीय संस्था की कहानी है जिसके संस्थापक ने विश्व के समक्ष अपने अदम्य साहस, सूझ-बूझ एवं कार्यपटुता का अभूतपूर्व मौलिक उदाहरण उपस्थित किया है।

१९वीं सदी के मध्य तक यूरोप में सभी देशों के बीच तारसंबंध स्थापित नहीं हुए थे। इस कारण एक स्थान से दूसरे स्थान को समाचार भेजने में बहुत अधिक समय - कभी कभी कई महीनों का - लग जाता था। जब समुद्री यातायात के साधन सुलभ हुए तो समाचारों का प्रेषण समुद्री डाक द्वारा होने लगा पर इसमें भी कभी कभी कई सप्ताह का समय लग जाता था, क्योंकि तब तक जहाजों में भाप के इंजनों का प्रयोग शुरू नहीं हुआ था और उनका आवागमन वायु एवं मौसम की अनुकूलता पर निर्भर रहता था।

जिस समय रायटर के मन में आचेन में एक समाचार एजेंसी स्थापित करने का विचार आया उस समय पेरिस और ब्रुसेल्स तथा वर्लिन और आचेन के बीच सीधा तार संबंध स्थापित हो चुका था। आचेन और ब्रुसेल्स के बीच करीब १०० मील का फासला था। रायटर ने सोचा कि तार द्वारा जो समाचार पेरिस से ब्रुसेल्स आते हैं, वे यदि कबूतरों द्वारा ब्रुसेल्स से आचेन लाए जाएँ तो रेल की तुलना में कम से कम ६ घंटे का समय बच सकता है। इसी विचार से उसने अप्रैल, १८५० में आचेन के अपने एक मित्र एवं कबूतर व्यापारी हेनरिक जेलेर से ४० ऐसे कबूतरों की माँग की जो आचेन और ब्रुसेल्स के बीच डाकिए का कार्य अच्छी तरह कर सकें।

प्रत्येक पक्ष में जब ब्रुसेल्स का बाजार बंद होता था या पेरिस के अंतिम बाजार भाव तार द्वारा ब्रुसेल्स आ जाते थे, तब रायटर का ब्रुसेल्स स्थित एजेंट उन्हें पतले कागजों पर लिखकर रेशम की छोटी छोटी थैलियों में बंद कर देता था। बाद में ये थैलियाँ कबूतरों के पंखों में बाँधकर उन्हें आचेन की ओर उड़ा दिया जाता था। ब्रुसेल्स से आनेवाली दैनिक डाकगाड़ी (मेल ट्रेन) के आचेन पहुँचने के करीब ६-७ घंटे पूर्व ही ये कबूतर आचेन पहुँच जाते थे, जहाँ रायटर अपने परिवार के साथ उनकी प्रतीक्षा में रहता था।

कबूतरों के आचेन पहुँचते ही रायटर, उसकी पत्नी तथा उनका १३ वर्षीय पुत्र उन बाजार भावों की कई नकलें तैयार कर उन्हें हाथों हाथ स्थानीय ग्राहकों के पास भेज देते थे। बाहर के ग्राहकों के पास समाचार भेजने के लिए रायटर स्टेशन के तारघर में जाकर स्वयं समाचार भेज देता था।

पर रायटर की यह योजना केवल ८-९ माह तक ही चल सकी क्योंकि बाद में ब्रुसेल्स और आचेन तथा पेरिस और बर्लिन के बीच सीधा तार संबंध स्थापित हो गया। जब अन्य शहर भी बाद में तार से संबंधित हो गए तो १८५१ के प्रारंभ में रायटर अपनी अब तक की अर्जित थोड़ी सी जमापूँजी लेकर लंदन चला आया।

लंदन में रायटर ने सर्वप्रथम यूरोप के बाजारों की तेजी-मंदी के समाचार वहाँ के स्टाक एक्सचेंज को देना शुरू किया। रायटर की सेवा से स्टाक एक्सचेंज बहुत संतुष्ट था क्योंकि उसे अब समाचार पहले की अपेक्षा अधिक जल्दी ही नहीं मिलते थे वरन् वे अधिक विश्वसनीय भी होते थे।

रायटर ने इस कार्य के लिए यूरोप के प्राय: सभी देशों की राजधानियों एवं प्रमुख शहरों में अपने आदमी नियुक्त कर रखे थे जो वहाँ के समाचार जल्दी से जल्दी लंदन भेज देते थे। बाद में रायटर ने लंदन के स्टाक एक्सचेंज के भाव यूरोपीय देशों को भेजना भी शुरू किया।

बाजारों की तेजी मंदी के समाचारप्रेषण का रायटर का कार्य जब अच्छी तरह जम गया, तब उसने यह अनुभव किया कि भावों की तेजी-मंदी वस्तुत: राजनीतिक, सामाजिक एवं अन्य घटनाओं पर निर्भर रहती है, अत: बाजार भाव के अतिरिक्त अन्य समाचार भी बेचना चाहिए।

१८५५ में इंग्लैंड में समाचारपत्रों पर से 'स्टॉप ड्यूटी' हटा ली जाने के कारण लंदन तथा अन्य शहरों से नए नए समाचारपत्रों का प्रकाशन आरंभ हुआ। वह रायटर के लिए अच्छा अवसर था। अब उसने विविध समाचारपत्रों से संबंध स्थापित करने का विचार किया। प्रारंभ में उसे अपने प्रयत्नों में कोई सफलता नहीं मिली। सबसे पहले जब वह 'टाइम्स' के संपादक से मिला तो उसकी उपेक्षा की गई। उस समय भी 'टाइम्स' के अपने संवाददाता प्राय: सभी बड़े शहरों एवं देशों में थे। 'टाइम्स' के संपादक को विश्वास ही नहीं हुआ कि रायटर जैसा एक साधारण व्यक्ति 'टाइम्स' की सुसंगठित एवं सुव्यवस्थित प्रणाली में कोई योगदान दे सकेगा। अन्य समाचारपत्रों से भी उसे निराशा ही हाथ लगी।

अंत में लाचार होकर उसने लंदन के छह समाचारपत्रों को इस आशा से दो सप्ताह तक 'परीक्षण' के लिए अपनी सेवाएँ नि:शुल्क देना स्वीकार किया कि यदि उन्हें रायटर की सेवाओं से संतोष हुआ तो बाद में वे उसके साथ कंट्राक्ट कर लेंगे।

रायटर का अनुमान ठीक निकला। दो सप्ताह के अंदर ही वे पत्र उसके ग्राहक हो गए और कुछ ही दिनों में स्थिति यहाँ तक पहुँची कि 'टाइम्स' के अतिरिक्त इंग्लैंड का अन्य कोई समाचारपत्र रायटर की सेवाओं से अछूता न रहा। जो समाचार पहले केवल 'टाइम्स' में प्रकाशित होते थे वे अब कभी-कभी रायटर के कारण 'टाइम्स' से पहले ही अन्य समाचारपत्रों में प्रकाशित होने लगे। निदान १३ अक्टूबर, १८५८ को 'टाइम्स' ने भी रायटर से समझौता किया कि वह उसे भी अपने समाचार दिया करे।

क्रमश: रायटर का कार्यक्षेत्र बढ़ता गया और उसे दूर दूर के देशों और नगरों में अपने संवाददाता तथा प्रतिनिधि रखने पड़े। ऐसा करना व्यावसायिक दृष्टि से भी आवश्यक था क्योंकि उस समय यूरोप में रायटर के प्रतिद्वंद्वी भी कम नहीं थे। जर्मन में बुल्फ ओर फ्रांस में हवास नामक एजेंसियाँ भी अपना कार्य सफलतापूर्वक चला रही थीं। इन तीनों कंपनियों में आपस में ईर्ष्या व द्वेष की भावना उत्पन्न न होने पाए अत: रायटर के सुझाव पर तीनों ने आपस में यह समझौता कर लिया कि वे अपने अपने क्षेत्र के समाचार एक दूसरे को दिया करेंगी। तीनों का यह समझौता करीब ५० वर्ष तक सफलतापूर्वक चलता रहा।

१८९९ में रायटर की मृत्यु के बाद उसके बड़े पुत्र हर्बर्ट रायटर ने पिता का कार्यभार सँभाला। उसकी योग्यता एवं कुशलता का ही यह परिणाम था कि रायटर्स ने सुव्यवस्थित एवं सुदृढ़ अंतरराष्ट्रीय समाचार एजेंसी का रूप ग्रहण किया।

क्रमश: रायटर्स ने इतनी उन्नति की कि इस सदी के आरंभ में उसकी वार्षिक आय दो लाख पौंड तक पहुँच गई थी। पर प्रथम महायुद्ध काल में उसे गहरी आर्थिक विषमता से गुजरना पड़ा। इस समय यूरोप के कई देशों से रायटर्स का संबंध टूट गया और युद्ध के कारण उसके अनेक ग्राहक भी छूट गए। आवागमन के साधन बंद हो जाने के कारण दूर देशों में स्थित रायटर्स के प्रतिनिधियों को समाचार भेजने में कठिनाई होने लगी। इसके साथ ही साथ इसी समय कुछ देशों में एक ओर तो यह अफवाह फैल गई कि रायटर्स एक सरकारी संस्था है और उसका संचालन ब्रिटिश सरकार द्वारा अपने स्वार्थ के लिए होता है। दूसरी ओर ब्रिटेन में इस बात की आलोचना हेने लगी कि रायटर्स द्वारा ब्रिटेन के कुछ समाचार बाहर भेज दिए जाते हैं। इन सब बातों से रायटर्स की स्थिति डावाँडोल सी हो गई।

इसी बीच १९१५ में हर्बर्ट रायटर की मृत्यु हो जाने तथा रायटर वंश का कोई और व्यक्ति न रहने के कारण आगामी कुछ वर्षों तक रायटर्स का भविष्य अनिश्चित सा रहा।

१९४१ में ब्रिटेन, आस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड के समाचारपत्रों ने मिलकर समाचारप्रेषण करनेवाली एक स्वतंत्र अंतरर्राष्ट्रयी संस्था के रूप में रायटर्स ट्रस्ट बना लिया जिसके द्वारा आजकल रायटर्स का संचालन होता है। बाद में द्वितीय महायुद्धोपरांत भारत के समचारपत्र भी रायटर्स ट्रस्ट के भागीदार बन गए।

रायटर्स ट्रस्ट की स्थापना के समय निम्न दो बातों पर विशेष ध्यान रखा गया और उन्हें ट्रस्ट के दस्तावेज में भी सम्मिलित किया गया - १. रायटर्स कभी किसी एक व्यक्ति या गुट के अधिकार में नहीं जाने पाएगा; २. रायटर्स की स्वतंत्रता, एकता तथा निष्पक्षता बराबर कायम रहेगी।

रायटर्स अपने इन सिद्धांतों पर बराबर दृढ़ है और शायद यही कारण है कि पूँजीवादी और कम्युनिस्ट, हिंदू और मुस्लिम, अरब और यहूदी, पूर्वी और पश्चिमी - सभी क्षेत्रों में उसकी मान्यता है और रायटर्स को उनका विश्वास प्राप्त है। रायटर्स की निष्पक्षता एवं अंतरर्राष्ट्रीयता का एक और प्रमाण यह भी है कि रायटर्स के देश विदेश स्थित कार्यालयों में कम करनेवाले कर्मचारी तथा प्रतिनिधि किसी एक देश के न होकर विविध देशों के हैं और उनका उद्देश्य किसी एक देशविशेष के हानि लाभ के लिए समाचारों को प्रेषण नहीं वरन रायटर्स के लंदन स्थित प्रदधान कार्यालय को संसार के प्राय: सभी देशों के सभी प्रकार के महत्वपूर्ण समाचार भेजना है। किसी भी देश में कोई महत्वपूर्ण घटना होने पर उसकी सूचना दो मिनट के अंदर ही रायटर्स द्वारा विश्व के सभी प्रमुख समाचारपत्रों के कार्यालयों में पहुँच जाती है। (महेंद्रराजा जैन)