रामानुजन एषुत्तच्छन, तुंचत्तु मलयालम कवि (सोलहवीं शताब्दी)। उनकी कृतियाँ भक्ति आंदोलन का अंग हैं जो पंद्रहवीं एवं सोलहवीं शताब्दियों में विकसित हुआ। केरल के सामंत सरदारों या सेनानायकों के परस्पर विनाशकारी युद्धों के कारण अराजकतापूर्ण स्थिति पैदा हुई जिससे नैतिक आदर्शों मे व्यापक अवनति हुई। एषुत्तच्छन ने मलयालम साहित्य में एक नए युग का संदेश दिया और मलयालम साहित्य को अपनी दो प्रमुख रचनाओं 'अध्यात्म रामायणम्' और 'भारतम्' द्वारा समृद्ध बनाया। वह प्रथम महान् कवि था जिसने ब्राह्मणों के धार्मिक एवं साहित्यिक एकाधिकार को तोड़ा वह नायर होने के कारण ब्राह्मणेतर था। रूढ़िवादी धार्मिक एवं साहित्यिक वर्ग के लोगों ने उसकी रचना पर अनेक आक्षेप किए। फिर भी वह केरल का बहुत ही लोकप्रिय कवि हुआ। उसमें गहन साहित्यिक विद्वत्ता और कठोर आध्यात्मिक अनुशासन था। उसकी रचनाएँ किलिप्पाट्टु (शुंकगीति) शैली में लिखी हुई हैं। अध्यात्म रामायणम् उसी नाम के संस्कृत महाकाव्य का स्वतंत्र अनुवाद है जिसकी रचना १४वीं शताब्दी में किसी अज्ञात लेखक ने की थी। एषुत्तच्छन का वाल्मीकि रामायण की अपेक्षा इस पुस्तक की निष्पक्ष साहित्यिक श्रेष्ठता का चुनाव तत्कालीन भक्तियुक्त वातावरण से अवश्य ही प्रभावित हुआ होगा। केरल में इस पुस्तक की जनप्रियता की तुलना हिंदीभाषी जनता के मध्य रामचरितमानस की लोकप्रियता से की जा सकती है। महाकाव्य के कलात्मक गुणों को कुछ सीमा तक भक्तिरस की प्रधानता ने निर्बल बना दिया है।

उसका द्वितीय महाकाव्य भारतम्, जो व्यास के महाकाव्य का अद्वितीय संक्षिप्त विवरण है, इस प्रकार की भक्ति के अत्यधिक बोझ के दोषों से मुक्त है। मलयालम भाषा की साहित्यिक क्षमता सबस पहले एषुत्तच्छन की रचनाओं में भली भाँति दृष्टिगोचर हुई। उसके पूर्व भी मलयालम साहित्य ने अपने को तमिल और संस्कृत की गहरी पकड़ से स्वतंत्र करने की प्रवृत्तियाँ प्रदर्शित की थी। एषुत्तच्छन ने इन प्रवृत्तियों को सक्रिय सहयोग प्रदान किया। उसने भाषा को शुद्ध किया और उसे उत्कृष्ट भावनाओं तथा उच्च विचारों को व्यक्त करने का प्रभावशाली सृजनात्मक उपकरण बनाया। उसने सरल द्रुविदियन छंदों का प्रयोग महान् सुगमता से किया। (जी. बालमोहन तंपी)