अंगज (अलंकार)
सात्विक अलंकारों
का एक भेद है। भरत
ने अपने नाट्यशास्त्र
में सर्वप्रथम इसका
उल्लेख किया है।
अंगज अलंकारों
में नायिकाओं
के उन आंगिक विकारों
या क्रियाव्यापारों
को परिगणित
किया जाता है
जिनसे तारुण्य
प्राप्त करने पर
उनके मन में उद्भूत
एवं विकसित काम
भाव का पता चलता
है। नाट्यशास्त्र
(२४।६) में भाव, हाव
तथा हेला को
एक-दूसरे से उद्भूत
एवं सत्व के विभिन्न
रूप कहा गया है
और इसीलिए इन्हें
शरीर से संबद्ध
माना गया है।
आगे इसकी व्याख्या
करते हुए नाट्यशास्त्र
(२४।७) में भरत ने कहा
है सत्व शरीर
से संबद्ध है, भाव
सत्व से उत्पन्न होता
है, हाव की उत्पत्ति
भाव से और हेला
की हाव से है।
अंगज अलंकार
के संस्कृत काव्यशास्त्र
में उपर्युक्त आधार
पर तीन भेद निश्चित
किए गए हैं-
- भाव अलंकार__धनंजय
ने भरत को आधार
मानते हुए कहा
है, निर्विकारात्मकात्सत्वादभावस्तत्राद्यविक्रिया
(दशरूपक, २।३३) अर्थात्
निर्विकार चित्त
में यौवनोद्गम
के समय आरंभ
होने वाला विकार
रूप आदि स्पंद ही
भाव है। जिस प्रकार
बीज का आदि विकार
अंकुर के रूप में
फुटने के पहले
स्थूलता आदि के
रूप में प्रकट होता
है उसी प्रकार
यौवनोद्गम
के साथ मन में
जिस कामविकार
का वपन होता
है वही
‘भाव’
कहलाता है।
- हाव अलंकार__भरत
ने (ना. २४।९) कहा है,
सत्व भाव के उद्रेक
के साथ अन्य व्यक्ति
के प्रति व्यंजित
होता है और
इसी की विभिन्न
स्थितियों से
संबद्ध हाव देखे
जा सकते हैं। धनंजय
के अनुसार हेलादय
शृंगारोहावोक्षिभ्रूविकारकृत
(दशरूपक २।३४) अर्थात्
भाव की वह विकसित
अवस्था जिसमें भोगेच्छा
प्रकाशक कटाक्षपात
आदि विकार प्रकट
होने लगते हैं,
हाव कहलाती
हैं। मन में अवस्थित
भाव ही हाव रूप
में विशेष व्यक्त
हो जाता है।
संस्कृत के पंडित
भानुदत्त ने लीलाविलासादि
दस अलंकारों
को हाव कहा
है। नारी की
स्वाभाविक चेष्टा
को वह हाव मानते
हैं। पुरुषों में
भी लक्षित होने
वाले विब्वोक,
विलास, विच्छित्ति
तथा विभ्रम केवल
उपाधि स्वरूप ही
उनमें होते हैं।
यद्यपि संस्कृत में
हाव को अंगज
अलंकार का भेद
कहा है तथापि
हिंदी में हाव
शब्द का प्रयोग
पूरे सात्विक
अलंकारों के
लिए होता है।
३. हेला
अलंकार__भरत
(वा. २४।११) ने, ललित
अभिनय द्वारा अभिव्यक्त
शृंगार रस
पर आधारित
प्रत्येक व्यक्ति के
भाव को हेला
की संज्ञा दी है।
धनंजय ने हेला
का लक्षण इस प्रकार
दिया है, स एव. हेला
सुव्यक्तशृंगाररससूचिका
(दसरूपक २।३४), अर्थात्
शृंगार की सहज
संकेतक अभिव्यक्ति।
हिंदी में हेला
को हाव के अंतर्मन
माना गया है।
(कै. चं. श.)