रामन प्रभाव प्रकाश और वर्ण ने मुझे सदैव आकर्षित किया है। वस्तुत: मैंने अपना जीवन ही प्रकाशिकी (Optics) के अनुसंधान में लगा दिया है। इस क्षेत्र में हमें ज्ञानेंद्रियों से बड़ी सहायता मिलती है। १९२१ ई. के अंतिम दिनों में इस क्षेत्र में कार्य करने के लिए मुझे नई दिशा मिली और मैंने पारदर्शक माध्यम द्वारा गुजरनेवाले प्रकाश के विसरण (diffusion) पर विधिवत् अनुसंधान करने की योजना हाथ में ली। आगामी वर्षों में ज्ञान के क्षेत्र में मौलिक प्रगति की संभावना से इस योजना को मैंने नियमित रूप से कार्यान्वित किया।

१९३० ई. में मुझे प्रकाश के विसरण और मेरे ही नाम से अभिहित प्रभाव की खोज के सम्मान में भौतिकी का नाबेल पुरस्कार मिला। उक्त प्रभाव को अत्यंत सरल शब्दों में प्रस्तुत किया जा सकता है। एकवर्णी प्रकाश (monochromaic light) का एक किरणपुंज (beam), जो सामान्यत: पारदचाप लैंप (mercury arc lamp) से प्राप्त होता है, ठोस, द्रव, या गैस अवस्था के गवेषणाधीन पदार्थ का चंक्रमण (traverse) करता है। पदार्थ के आभ्यंतर (interior) में विसरित यह प्रकाश, जो नियमित रूप से पारगत (transmitted) प्रकाश से भिन्न दिशा में निर्गत होता है, स्पेक्ट्रमदर्शी द्वारा जाँचा जाता है। इस प्रकार से देखे हुए स्पेक्ट्रम में ऐसा नई रेखाओं का व्यूह (array) दिखाई पड़ता है, जो पदार्थ को प्रदीप्त करनेवाले किरणपुंज में नहीं होता।

इस खोज के प्रकाशन के आगामी वर्षों में स्वदेश और विदेश में इस क्षेत्र में बड़ी सक्रियता उत्पन्न हुई। नए उपकरण में नए प्रकाशस्रोत और नव तकनीकों के साथ स्पेक्ट्रमिकी की एक नई शाखा का जन्म हुआ तथा व्यापक साहित्य का सृजन हुआ। यह प्रश्न उठना सहज है कि इन गतिविधियों का फल क्या हुआ? इसका उत्तर भी कठिन नहीं है। प्रकाश स्रोत के स्पेक्ट्रम की प्रत्येक नई रेखा के उदगम का कारण प्रकाश का प्रकीर्णन (scattering) करनेवाले अणुओं के घूर्णन, या कंपन की विशिष्ट पद्धति है, अत: नई रेखाओं का प्रतिमान (pattern) अणु के विशिष्ट घूर्णन, या कंपन स्पेक्ट्रम को निरूपित करता है। स्पेक्ट्रम अणु की संरचना से, अर्थात् अणु को गठित करने वाले परमाणुओं की संख्या, संहति और ज्यामितिय स्थिति से, निर्धारित होता है और कंपन स्पेक्ट्रम तो परमाणुओं को संबद्ध करने वाले रासायनिक बलों की प्रकृति और सामर्थ्य से भी निर्धारित होता है। अत: प्रकाश प्रकीर्णन का अध्ययन हमें अणु संबंधी विशिष्ट सूचनाएँ देता है और उसका चरम संगठन (ultimate constitution) भी प्रकट करता है।

प्रकाश प्रकीर्णन के स्पेक्ट्रम का अध्ययन पदार्थ की संरचना के अध्ययन में बहुत ही समर्थ साधन सिद्ध हुआ है। इससे आणविक रूप तथा संरचना संबंधी और परमाणुओं के बीच विशिष्ट रासायनिक बंध के अस्तित्व से संबंधित सूचनाएँ अविलंब मिलती हैं। अनेक प्रकारों से, जैसे विलयन, तापन, या अन्य अणुओं से अभिक्रिया द्वारा, अणु की संरचना में हुए बदलाव का अनुसंधान भी किया जा सकता है। वस्तुत: प्रकाश प्रकीर्णन का अनुप्रयोग रसायन की प्रायोगिक और सैद्धांतिक दोनों शाखाओं में होता है। कुछ वर्षों से वैश्लेषिक रसायन के क्षेत्र में एक समर्थ साधन के रूप में इसकी मान्यता बढ़ने लगी है।

सभी गैसों और विशेषत: हाइड्रोजन, नाइट्रोजन, ऑक्सीजन जैसी सरल अणुवाली गैसों के अनुसंधान से, जिनके घूर्णन प्रकाश प्रकीर्णन के रूप में प्रकट होते हैं, भौतिकी के मौलिक महत्व के परिणाम प्राप्त हुए हैं। नवविकसित तकनीकों से जटिल संरचनावाली गैसों के अणुओं का परीक्षण भी संभव हुआ है और उनके आणविक स्वरूप के संबंध में अत्यंत यथार्थ सूचनाएँ मिली हैं। द्रवों में प्रकाश प्रकीर्णन के अनुसंधान से आणविक व्यवहार (molecular behaviour) संबंधी दुष्प्राप्य ज्ञान उपलब्ध हुआ है। वस्तुत: कुछ चौंकानेवाली खोजें भी हुई हैं, जैसे इस बात का प्रमाण कि उच्च श्यानता (viscosity) के द्रव मापनीय दृढ़ता (rigidity) का प्रदर्शन करते हैं और यह एक प्रकार से उनका ठोस सा व्यवहार है। क्रिस्टल भौतिकी (Crystal Physics) के क्षेत्र में भी प्रकाश प्रकीर्णन के अध्ययनों से मौलिक प्रगति हुई है। क्रिस्टलों के प्रकाश प्रकीर्णन से प्रकट होता है कि क्रिस्टलों के कंपन स्पेर्क्टम की प्रकृति असाधारण रूप से सरल होती है। बंगलोर में अभिनव अनुसंधानों से प्रकट हुआ है कि क्रिस्टल में होनेवाले परमाणवीय कंपन उस प्रतिमान के होते हैं जो क्रिस्टल की परमाणवीय और आणविक संरचना से निर्धारित होता है ओर जिसका क्रिस्टल के बाह्य स्वरूप, या आकार से काई संबंध नहीं होता। क्रिस्टल भौतिकी के क्षेत्र में इन परिणामों का अतिशय महत्व है। (चंद्रोखर वेंकट रामन)