रामदास कछवाहा, राजा अकबर के दरबार में पहले पाँच सदी मंसब का पद प्राप्त हुआ। जब राजा टोडरमल मुनइम खाँ की सहायता के लिए बिहार की ओर गया तो रामदास ने नायब दीवान का कार्य किया। अकबर की मृत्यु पर इसने राजकुमार सलीम के सिंहासनारूढ़ होने का पक्ष लिया। जहाँगीर के शासनकाल में अधिक सम्मान प्राप्त हुआ। १६११ में गुजरात के सूबेदार अब्दुल्ला खाँ का सहायक नियुक्त हुआ और रणथंभोर दुर्ग की अध्यक्षता मिली। मलिक अंबर के विद्रोह में यह भाग खड़ा हुआ। सम्राट् जहाँगीर इसपर बहुत कुपित हुआ और गुजरात से बुलाकर इसे बंगश पर आक्रमण करने भेजा। वहीं १६१३ ई. में उसकी मृत्यु हुई।