राबिया बसरी का जन्म अल कैसिय वंश के एक गरीब परिवार में ९५।७१३-७१४ में हुआ था। वाल्यावस्था में ही कोई उन्हें चुरा ले गया था और दासी के रूप में बेच दिया था परंतु उनकी धर्मनिष्ठा तथा पवित्रता के कारण मुक्ति प्राप्त हो गई थी। तत्पश्चात् उन्होंने एकांतवास तथा कौमार्य जीवन अपना लिया था। कुछ समय मरुभूमि में भ्रमण करने के उपरांत बसर में जाकर निवास किया जहाँ उनके अनेक शिष्य थे। उनमें से मलिक बिन दीनार, सुफियान अल सावरी और सूफी शैख अल बल्खी के नाम उल्लेखनीय हैं। राबिया को ईश्वरीय कृपाओं पर अटूट विश्वास था। अतएव वे किसी का उपहार स्वीकार नहीं करती थीं। एक बार उन्होंने कहा था 'क्या ईश्वर किसी दरिद्र को उसकी दरिद्रता के कारण भुल जाएगा अथवा धनी को उसके धन के कारण स्मरण रखेगा? जब वह मेरी स्थिति से सुपरिचित है तो उसे फिर मुझे क्या याद दिलाना है? 'मुझे ईश्वर से भौतिक पदार्थ माँगते लज्जा आती है क्योंकि सब कुछ उसका ही है। मै कैसे उन लोगों से उपहारस्वीकार करूँ जिनके पास अपनी कोई वस्तु नहीं हैं।'
उनका जीवन कठोर तपस्या और अध्यात्मवाद से सुसंपन्न था। अन्य सूफियों की भाँति उनमें भी चमत्कार प्रदर्शन की विशेषता पाई जाती थी। अध्यात्मवाद की परंपरा को राबिया बसरी की सबसे बड़ी देन यह है कि उन्होंने ईश्वरप्रेम द्वारा भक्ति का प्रचार किया। पूर्ववर्तीं सूफी नरक के भय तथा स्वर्ग की लालसा में ईश्वरभक्ति करते थे। उनका हृदय ईश्वरप्रेम से शून्य था। राबिया ने लालसा और भय का खंडन किया और नि:स्वार्थ प्रेमभक्ति का प्रसार किया। यह सिद्धांत तत्पश्चात् सूफीवाद का एक महत्वपूर्ण अंश बन गया। एक अवसर पर राबिया ने कहा था कि 'हे मेरे ईश्वर, मैं तेरी उपासना केवल तेरे ही लिए करती हूँ अतएव अपने अमर सौंदर्य के दर्शन से वंचित न कर'। सन् १८५।८०१ में उनका स्वर्गवस हुआ। बसरा में उनकी समाधि है।
सं. ग्रं. - फरीदुद्दीन अतर : तज़किरत-उल-औलिया (संपादित निकल्सन) १,५९-७३; मुहम्मद जिहनी : मशाहिर-उलनिसा (लाहौर, १९०२) २२५; मौलाना अबदुर्रहीम जाभी : नफ़्हातुल उसं (नवलकिशोर) ५५२; इमाम ग़्जााली : अहमाउल उलूम अद्दीन (मिस्र) ९,२६७,२६९, २९१, ३०८; अल मक्की : कुत-अल-कुलूब (मिस्र,१३१०) १,१०३, १५६, इत्यादि, २,४०,५७ इत्यादि, दारा शिकोह, सफ़ीनतुल औलिया (उर्दू अनुवाद, कराची, १९६१) २५९-२६१; मौलाना गुलाल सर्वर : खज़ीनतुल आस्फ़िया (नवलकिशोर) २, ४१०-४१५; इंसाइक्लोपीडिया ऑव इस्लाम (लंदन, १९३६) ३, १०८९-१०९१, मार्गरेट स्मिथ : रबिया दि मिस्टिक ऐंड हर फेलो सेंट्स इन इस्लाम (कैंब्रिज, १९२८)। (मुहम्मद उमर)