राधास्वामी फाउंडेशन की स्थापना १८६१ ई. में वसंत पंचमी के दिन शिवदयाल सिंह साहब द्वारा की गई जो स्वामी जी महाराज के नाम से विख्यात थे। स्वामी जी महाराज का जन्म आगरा में २४ अगस्त, सन् १८१८ को हुआ था। स्वामी जी महाराज ने छोटी उम्र में ही सच्चे धर्म के सिद्धांतों की व्याख्या प्रारंभ कर दी तथा कुछ चुने हुए लोगों को धार्मिक अभ्यासों की विभिन्न विधियों रीतियों में भी दीक्षित करने लगे। रायबहादुर सालिगराम साहब उन चुने हुए लोगों में से एक थे। आप १८५८ ई. में स्वामी जी महाराज के शिष्य हो गए और आपके आग्रह से ही सन् १८६१ में राधास्वामी सत्संग की स्थापना की गई।
सन् १८७८ में रायबहादुर सालिगराम साहब स्वामी जी महाराज के स्थान पर आए जो हजूर महाराज नाम से जाने जाते थे। सत्संग आंदोलन ने आपके समय में विचारणीय उन्नति की और जगत्प्रसिद्ध हो गया, यहाँ तक कि विदेश में स्थित लोग भी आपके विषय में जान गए और आपकी मर्यादा करने लगे।
सन् १८९८ में पंडित ब्रह्मशंकर मिश्र साहब हुजूर साहब के स्थान पर आए जो महाराज साहब के नाम से जाने जाते थे। महाराज साहब ने सत्संग के साधारण कामकाज की देखरेख के लिए एक कौंसिल की स्थापना की ओर सत्संग की संपत्तियों के लिए एक ट्रस्ट निर्मित किया। १९०७ में महाराज साहब की मृत्यु के बाद श्री कामताप्रसाद सिन्हा साहब, जो सरकार साहब नाम से जाने जाते हैं, राधास्वामी सत्संग के चतुर्थ नेता बने। आप बहुत अल्प समय तक ही जीवित रहे और सन् १९१३ में आपकी मृत्यु के पश्चात् श्री आनंदस्वरूप साहब आए जो कि साहब जी महाराज नाम से जाने हैं।
राधास्वामी सत्संग के स्थायी प्रमुख कार्यालय की नींव सन् १९१५ में दयालबाग में श्री साहब जी महाराज द्वारा एक शहतूत के वृक्षारोपण द्वारा डाली गई।
साहब जी महाराज ने दयालबाग कालोनी में शैक्षिक और औद्योगिक संस्थाओं की स्थापना की जो आगरे से करीब एक मील दूर है। साहब जी महाराज द्वारा दयालबाग में स्थापित संस्था सारे देश में विख्यात हो गई।
१९३६ में साहब जी महाराज के स्थान पर श्री गुरुचरनदास मेहता आए जो मेहता जी साहब के नाम से जाने जाते थ। सभी दिशाओं में विचारणीय प्रगति हुई, विशेषकर शिक्षा और कृषि के क्षेत्र में। इस समय दयाल बाग विश्वविद्यालय भी है।
राधास्वामी सत्संग मुख्य रूप से एक धार्मिक समाज है और केवल वे लोग जो भगवान् की अनुभूति करना चाहते हैं और उसके लिए आध्यात्मिक अभ्यास के इच्छुक हैं, इसके सदस्य बन सकते हैं। ऐसे लोगों को मांसाहार और मद्यपान को छोड़ने की शपथ लेनी पड़ती है और आध्यात्मिक अभ्यास सीखना पड़ता है-वे आध्यात्मिक अभ्यास जो सबद योग के अंतर्गत उपनिषद् काल में भी सिखाए जाते थे और प्राचीन भारतीय संन्यासियों ने भी जिन्हें आदि काल से ही अपनाया था, जैसे कबीर साहब, नानक साहब, जगजीवन साहब आदि। यह सभा अपना साहित्य हिंदी और अंग्रेजी दोनों भाषाओं में प्रकाशित करती है। पर कुछ किताबें बँगला और तेलुगू में भी मिलती हैं। सभा पाँच साप्ताहिक प्रकाशित करती है, उदाहरणार्थ 'प्रेम प्रचारक' हिंदी, उर्दू, तेलुगू और तमिल में तथ दयालबाग हेराल्ड अंग्रेजी में।
भारत के विभिन्न भागों में इसकी ५७५ सत्संग शाखाएँ हैं। दयालबाग र्स्टार्स, दयालबाग की सभी चीजें देश के प्रमुख शहरों में बिकती हैं। इसके अतिरिक्त विभिन्न राज्यों में उनका अपना स्कूल और चिकित्सालय भी है जो इस सोसाइटी और उसके सदस्यों द्वारा संचालित होता है।
संघ के सभी अंतरजातीय सदस्य एक साथ भोजन करते हैं तथा अंतरजातीय विवाह भी प्रचलित है। इस सोसाइटी में शिक्षितों की प्रतिशतता बहुत ऊँची है और समाजसुधार के मामलों में, यथा विधवाविवाह, वैवाहिक सुधार आदि, यह सोसाइटी सदैव ही अग्रणी रही है। इसने राजनीतिक आंदोलनों में अपने को व्यस्त नहीं रखा, न उसका कोई राजनीतिक उद्देश्य ही रहा।
दयालबाग कालोनी में प्रति वर्ष् का प्रारंभिक और अंतिम दिन मौन आराधना और दयामय भगवान् के प्रशस्ति गीतों से प्रारंभ किया जाता है। तत्पश्चात् सभी सदस्य अपने अपने कार्यों के लिए चले जाते हैं और अपना संपूर्ण दिवस ईमानदारी पूर्वक दिए गए कर्तव्यों को पूर्ण करने में व्यतीत करते हैं, चाहे वह आफिस का कार्य हो या कारखाना, अस्पताल या स्कूल का। दिवस की समाप्ति पर रात्रि में उस कालोनी का प्रत्येक सदस्य, चाहे पुरुष हो या स्त्री, युवक हो या वृद्ध, सभी उस करुणामय भगवान् को कोटि कोटि धन्यवाद देते हैं।
दयालबाग कालोनी की स्थापना उच्च आदर्शों को लेकर हुई, अत: वहाँ पर हमें सुसंगठित समाज का दर्शन मिलता है। इसके सदस्य आध्यात्मिक और मानवीय पुनर्जीवन के लिए उच्च सिद्धांतों के अनुसार कार्य करते हैं और शांतिपूर्वक जीवनयापन करते हुए अपने तथा अपने पड़ोसियों के साथ सामंजस्यपूर्ण जीवन व्यतीत करते हैं। (बिमलराम यादव (जादौ))