राधावल्लभ 'विप्रवल्लभ' राधावल्लभ जोशी 'विप्रवल्लभ' का जन्म संवत् १८८८ वि. ज्येष्ठ शुक्ल चतुर्दशी को डुमरॉव (बिहार) में हुआ था। इनके पूर्वज विजयराम जयपुर के महाराज जयसिंह के दरबार में प्रतिष्ठित ज्योतिषी थे। उनके द्वितीय पुत्र पुष्करनाथ अपने एकमात्र पुत्र काशीनाथ को साथ लेकर जगन्नाथ जी के दर्शनार्थ जगन्नाथ पुरी पहुँचे। वहाँ से लौटते समय डुमराँव के राजदरबार में पुष्करनाथ जी को पर्याप्त सम्मान मिला। वे राधाकृष्ण के भक्त थे और तानपुरा बजाकर ललित कंठ से कीर्तन गाया करते थे। डुमराँव में भूमि, आवास तथा वृत्ति की व्यवस्था होने पर वहीं बस गए। वृद्धावस्था में वृंदावन जाकर उन्होंने शरीरत्याग किया। काशीनाथ ने स्थायी रूप से डुमराँव को अपना निवासस्थान बनाया। इनके दो पुत्र उत्पन्न हुए। प्रथम ब्रजकिशोर तथा द्वितीय राधावल्लभ। राधावल्लभ ने काशी में संस्कृत तथा हिंदी काव्य का अध्ययन किया। तदनंतर डुमराँव के राज्यधीश राधाप्रसाद सिंह के आश्रित कवि हुए। 'विप्रवल्लभ' तथा 'वल्लभ' इनके काव्यनाम थे। इन्हें लंबी आयु प्राप्त हुई थी।

विप्रवल्लभ रीतिकाव्य परंपरा के अच्छे कवि थे। इन्होंने आचार्य केशवदत्त तथा बिहारी को कई स्थलों पर स्मरण किया है और स्पष्ट स्वीकार किया है कि उक्त दोनों कवियों का इनपर काफी प्रभाव पड़ा है। इनका 'अंगरत्नाकर' नखशिख परिपाटी का उत्तम ग्रंथ है। इनकी भाषा में पूर्वीपन की झलक अधिक है।

कृतियाँ - रसिकरंजन रामायण, रसिकोल्लास भागवत, महिम्नलतिका, अंगरत्नाकर, गंगामृत तरंगिणी, अमृतषष्ठिका, खड्गावली, कृष्णलीलामृतध्वनि आदि। (रामरक्ष पाल)